टॉप आंखों के डॉक्टरों के साथ ऑनलाइन अपॉइंटमेंट और वीडियो कंसल्टेशन बुक करें
"*" indicates required fields
केराटोकोनस एक मेडिकल कंडिशन है जिसमें किसी व्यक्ति की आंख का गोल और गुंबद के आकार का कॉर्निया पतला होने लगता है, जिसकी वजह से आगे कोन जैसी गांठ का डेवलपमेंट होने लगता है।
ज्यादातर मामलों में, नेत्र विशेषज्ञों ने पाया है कि यह एक आंख को दूसरी की तुलना में अधिक प्रभावित करता है। यदि कोई व्यक्ति इस मेडिकल कंडिशन के शुरुआती स्टेज से पीड़ित है, तो एक नेत्र विशेषज्ञ उसे ट्रीटमेंट की एक विधि के तौर में कुछ टाइप के चश्मे देगा, लेकिन कुछ मामलों में, उसे “सॉफ्ट कॉन्टैक्ट लेंस” पहनने के लिए भी कहा जा सकता है और अगर यह कंडिशन एडवांस रेट से बढ़ती है, तो “कॉर्नियल ट्रांसप्लांट” की आवश्यकता भी पड़ सकती है।
केराटोकोनस आंखों की बीमारी का एक दुर्लभ रूप नहीं है, क्योंकि 2000 में से केवल 1 व्यक्ति इस मेडिकल कंडिशन से पीड़ित पाया जाता है। इसे पीड़ित व्यक्ति को कभी-कभी यह भी पता नहीं होता है कि वह “केराटोकोनस” से ग्रस्त है, क्योंकि इस कंडिशन में प्रोग्रेस की दर बहुत धीमी होती है। केराटोकोनस के कुछ प्रमुख लक्षणों का उल्लेख नीचे किया गया है:-
हालांकि केराटोकोनस का कोई स्पेसिफिक कारण ज्ञात नहीं है, परंतु यह निम्नलिखित कारणों से ज्यादा जुड़ा हुआ है:
यदि किसी व्यक्ति के परिवार के एक या अधिक सदस्य पहले से ही इस कंडिशन से पीड़ित हैं, तो उसे संबंधित व्यक्ति के लिए भी केराटोकोनस के होने की संभावना बढ़ जाती है।
यदि किसी व्यक्ति को अपनी आँखों को लगातार रगड़ने की आदत है, तो वह अपने प्रोग्रेसिव सालों में केराटोकोनस को डेवलप कर सकता है।
”ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस” की समस्या भी एक व्यक्ति में केराटोकोनस का कारण बन सकती है। जब फ्री रेडिकल्स की उत्पत्ति और एंटीऑक्सिडेंट के साथ न्यूट्रलाइजेशन के जरिए से नेगेटिव इफेक्टस को संतुलित करने की शरीर की क्षमता के बीच हाई लेवल की असमानता होने लगती है, तो व्यक्ति के शरीर में ऑक्सीडेटिव तनाव की समस्या होती है।
केराटोकोनस के निदान के लिए पहली और सबसे महत्वपूर्ण विधि आंखों की सही जांच है। इस मेडिकल कंडिशन के सटीक निदान के लिए आंखों के एग्जाम के लिए कुछ टेस्ट किए जा सकते हैं। इन टेस्ट्स का उल्लेख नीचे किया गया है: –
एक नेत्र विशेषज्ञ इस कंडिशन का शुरुआती स्टेज में ही प्रोग्रेस रेट पता लगाने के लिए किसी व्यक्ति की आंखों पर कॉर्नियल टोपोग्राफी का प्रयोग कर सकता है। इस प्रोसेस के तहत, कॉर्निया के सरफेस का कार्वेचर त्रि-आयामी नक्शा तैयार किया जाता है। मेडिकल फिल्ड में कॉर्नियल टोपोग्राफी एक नॉन- इनवेसिव टेकनीक है।
केराटोकोनस की घटना का पता लगाने के लिए एक नेत्र विशेषज्ञ “स्लिट-लैंप एग्जाम” की मदद भी ले सकता है। एक स्लिट-लैंप एक हाई पावर लाइट के सोर्स के साथ एक मेडिकल डिवाइस है। यह आंख के अंदर और बाहर की संरचनाओं का नजदीकी रूप प्रोवाइड करके एक नेत्र रोग विशेषज्ञ की मदद करता है।
एक नेत्र विशेषज्ञ “केराटोकोनस” का पता लगाने के लिए किसी व्यक्ति की आंख पर “पचीमेट्री टेस्ट” भी कर सकता है। इस टेस्ट का उद्देश्य कॉर्निया की मोटाई का अनुमान लगाना है।
यदि केराटोकोनस अपने शुरुआती स्टेज में है, तो इसका इलाज चश्मे या सॉफ्ट कॉन्टैक्ट लेंस की मदद से भी किया जा सकता है, लेकिन अगर यह मेडिकल कंडिशन बिगड़ती रहती है और कॉर्निया पतला होता रहता है, तो ना ही चश्मा दृष्टि को सही करने में मदद करेगा और ना ही सॉफ्ट कॉन्टैक्ट लेंस मदद करेंगे।
यह इलाज का एक नया तरीका है, जिसने इलाज में काफी संभावनाएं दिखाई हैं। ट्रीटमेंट का यह रूप केराटोकोनस के फैलाव को रोक सकता है और भविष्य में कॉर्निया ट्रांसप्लांट की जरूरत को भी रोक सकता है। कॉर्नियल कोलेजन क्रॉसलिंकिंग (सीएक्सएल) के दो प्रकार हैं, जिन्हें “एपिथेलियम-ऑफ” और “एपिथेलियम-ऑन” के रूप में जाना जाता है। हाल के दिनों में केराटोकोनस के उपचार के लिए कॉर्नियल क्रॉसलिंकिंग और इंटैक इम्प्लांट्स का कंबाइंड कॉम्बिनेशन बहुत उपयोगी साबित हुआ है।
इस मेडिकल कंडिशन के इलाज के लिए “कस्टम सॉफ्ट कॉन्टैक्ट लेंस” का ऑप्शन भी मौजूद है। इस प्रकार के कॉन्टैक्ट लेंस स्पेसिफिक किसी व्यक्ति की केराटोकोनिक आंखों के अकॉर्डिंग होते हैं और पहनने वालों के एक स्पेसिफिक सेट के मामले में हाइब्रिड कॉन्टैक्ट लेंस की तुलना में ज्यादा सूटेबल पाए गए हैं।
यदि “कस्टम सॉफ्ट कॉन्टैक्ट लेंस” केराटोकोनस की समस्या को दूर करने में मदद नही कर पाते हैं, तो ” गैस- पर्मेबल कॉन्टैक्ट लेंस” ट्रीटमेंट का एक वायबल तरीका अपनाया जाता है। इस प्रकार के कॉन्टैक्ट लेंस कॉर्निया को कवर करते हैं और कॉर्निया के विषम आकार को एक एसिमिट्रिकल इरवर्सिबल रिफ्रेक्टिव सरफेस से बदलकर किसी व्यक्ति की दृष्टि को बढ़ाते हैं।
जब केराटोकोनस एक एडवांस स्टेज में पहुंच जाए है, तो इसके ट्रीटमेंट के लिए सबसे प्रशंसनीय ऑप्शन “कॉर्निया ट्रांसप्लांट” माना जाता है। एक व्यक्ति जो इस सर्जिकल प्रोसेस से गुजर चुका है, उसकी दृष्टि की सही फिक्सिंग के लिए कुछ महीने लग सकते हैं। इस मेडिकल प्रोसेस से जुड़े कुछ रिस्क हैं। इस प्रोसेस के बाद उस व्यक्ति की आंखों में इंफेक्शन हो सकता है। इस प्रोसेस से “करप्शन रिजेक्शन” की संभावना भी जुड़ी हुई है।
“स्क्लेरल और सेमी-स्क्लेरल लेंस” केराटोकोनस से पीड़ित व्यक्ति के लिए ट्रीटमेंट का एक और अल्टरनेटिव तरीका है। जब गैस- पर्मेबल कॉन्टैक्ट लेंस का डायमीटर बड़े पैमाने पर होता है, तो उन्हें “स्क्लेरल और सेमी-स्क्लेरल लेंस” के रूप में पहचाना जाता है। इस प्रकार के कॉन्टैक्ट लेंस “स्क्लेरा” पर आराम करने के लिए काफी बड़े होते हैं। “स्क्लेरल लेंस” के मामले में, “स्क्लेरा” के एक बड़े हिस्से को कवर किया जाता है, जबकि “सेमी-स्क्लेरल लेंस” के मामले में, “स्क्लेरा” के एक छोटे हिस्से को कवर किया जाता है।
भारत में एम्स, शंकर नेत्रालय, एलवीपीईआई और आई मंत्रा सहित कॉर्निया के इलाज के लिए कई अच्छे अस्पताल हैं। आई मंत्रा अस्पताल में हम रोज़ बहुत सारे प्रोब्लेमैटिक कॉर्नियल मामलों से निपटते हैं। हमारे पास कुशल और स्पेशलाइज्ड सर्जन हैं, जोकि कॉर्निया से जुड़ी कई बीमारियों से निपटने में कही ज्यादा अनुभवी हैं। आईमंत्रा अस्पताल देश के उन कुछ आई हॉस्पिटल्स में से एक है, जोकि कॉर्निया में सुपर-स्पेशियलिटी आई सर्विसिज प्रदान करता है।
हम, आईमंत्रा आई सेंटर एक पूरे जीवन के लिए दृष्टि के सेंस के महत्व को पहचानते हैं और आपकी दृष्टि के लिए हाई क्वालिटी की केयर करने का डेडिकेशन भी रखते हैं।
दोनों आँखों में केराटोकोनस की प्रोग्रेस रेट एक दूसरे से अलग होती है, हालांकि 90% मामलों में यह रोग दोनों आंखों में ही डेवलप हो जाता है।
केराटोकोनस आपकी दृष्टि को प्रभावित करता है। इस कंडिशन के लक्षण हो सकते हैं-
हाँ, आप केराटोकोनस के साथ नॉर्मल लाइफ जी सकते हैं, ठीक वैसे ही जैसे कोई अच्छी दृष्टि वाला व्यक्ति जीता है। आपको बस सही ट्रीटमेंट करवाने की जरुरत है और आप ठीक हो जाएंगे। यह कंडिशन किसी भी और ट्रीटेबल कंडिशन की तरह ही है।
केराटोकोनस आमतौर पर कंप्लीट ब्लाइंडनेस की तरफ नहीं ले जाता है। यह समय के साथ धीरे-धीरे बढ़ता है और दृष्टि के लेवल को इतना कम कर देता है कि व्यक्ति डेली एक्टिविटीज को नहीं कर पाता है। कुछ समय बाद लेंस और चश्मा इफेक्टिवली काम नहीं करते हैं, इसलिए व्यक्ति को लास्ट में कॉर्निया ट्रांसप्लांट करवाना पड़ सकता है। एक बार सर्जरी हो जाने के बाद आपकी दृष्टि वापस पहले की तरह नॉर्मल हो जाएगी।
ड्राइविंग जैसी कुछ गतिविधियों को करने के लिए आपको अच्छी दृष्टि की जरूरत होगी, क्योंकि इसमें आपकी और दूसरों की सुरक्षा शामिल है। ड्राइविंग लाइसेंस हासिल करने के लिए हर देश के पात्रता मानदंड अलग-अलग होते हैं। इसे प्राप्त करने के लिए आपके पास कम से कम 20/40 दृष्टि (चश्मे के साथ या बिना) होनी चाहिए। आप इसके लिए पहले अपने राज्य के मोटर व्हिकल डिपार्टमेंट की जांच कर सकते हैं।
आप केराटोकोनस का जल्द निदान करवाकर उसकी प्रोग्रेस को रोक सकते हैं। यदि आप शुरुआती स्टेज में ही इसका निदान करवा लेते हैं, जब आपकी दृष्टि थोड़ी प्रभावित होती है, तो ऐसे मामलों में आपका आई डॉक्टर इसका इलाज पहले करेगा और फ्यूचर में होने वाली ब्लाइंडनेस को रोकने की कोशिश करेंगा।
हाँ, बच्चों में भी केराटोकोनस विकसित हो सकता है। कभी-कभी यह एक आंख में होता है और कभी-कभी दोनों आंखों में हो जाता है, हालांकि इसे चश्मे से कंट्रोल किया जा सकता है, लेकिन अगर सही समय पर इसका इलाज न किया जाए तो कॉर्नियल ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ सकती है।
इस बात का कोई सबूत नहीं है कि कंप्यूटर का उपयोग केराटोकोनस को खराब कर सकता है, लेकिन अपनी आंखों को डिजिटल आई स्ट्रेन से बचाने के लिए कंप्यूटर का बहुत ज्यादा इस्तेमाल नही करना ही सबसे अच्छा है।
भारत में कई बेस्ट कॉर्निया डॉक्टर हैं। आई मंत्रा में कुछ टॉप कॉर्निया डॉक्टर / सर्जन हैं। डॉ श्वेता जैन भारत में बेस्ट कॉर्निया स्पेशलिस्ट में से एक हैं। डॉ श्वेता जैन ने अब तक 1000 से अधिक केराटोकोनस ट्रीटमेंट सफलतापूर्वक किए हैं, सिर्फ यही नहीं आई मंत्रा कॉर्निया सर्जरी प्रोग्राम के रिजल्टस कई लोगों के लिए बेहतर भी साबित हुए हैं। कॉर्निया सर्जरी के बाद बेहतर दृष्टि और डीप्थ परसेप्शन की धारणा भी डेवलप हो सकती है।
ए1/10, ए1 ब्लॉक, ब्लॉक ए, पश्चिम विहार, वेस्ट दिल्ली-110063
बी62 – प्रशांत विहार, रोहिणी सेक्टर-14, सीआरपीएफ स्कूल के सामने, नॉर्थ दिल्ली