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आंखों का रंग (Eye Color) हमारी आंखों में मौजूद पिगमेंट यानी मेलेनिन पर निर्भर करता है। जिन लोगों की आंखों में मेलेनिन ज़्यादा होता है, उनकी आंखों का रंग गहरा होता है, जबकि जिन लोगों की आंखों में मेलेनिन की मात्रा कम होती है, उनकी आंखों का रंग हल्का होता है। आंखों का रंग जेनेटिक, उम्र, भावनाओं या आपके आहार जैसी कई चीजों पर निर्भर करता है। ये सभी चीजें सेकेंडरी फैक्टर हैं और आंखों के रंग को गहराई से प्रभावित नहीं कर सकती हैं।
आइरिस में मौजूद पिगमेंट हमारी आंखों के रंग को निर्धारित करता है, लेकिन आंखों का रंग ज्यादातर जेनेटिक लक्षणों पर निर्भर करता है, यानी बच्चे का रंग माता-पिता के जैसा होता है। हालांकि जीन अलग-अलग तरीकों से मिश्रण और परिणाम कर सकते हैं।
आमतौर पर भूरी आंखों को “प्रमुख” और नीली आँखों को “पुनरावर्ती” कहा जाता है। अध्ययनों की मानें, तो सिर्फ जीन पर आंखों का रंग निर्भर नहीं करता है, क्योंकि जीन आपको कई नतीजे दे सकते हैं। हर माता-पिता के गुणसूत्र पर दो जोड़े जीन होते हैं, इसलिए इसकी कई संभावनाएं मौजूद हैं। माता-पिता दोनों की आंखों का रंग अलग-अलग होने पर बच्चे की आंखों का रंग भी पूरी तरह से अलग हो सकता है, लेकिन अगर माता-पिता की आंखों का रंग एक जैसा है, तो बच्चे की आंखों का रंग भी उनकी आंखों के जैसा होने की संभावना ज़्यादा होती है। कुछ मामलों में बच्चे का जन्म हेटरोक्रोमिया के साथ होता है।
हेटेरोक्रोमिया में दोनों आंखों की पुतली का रंग मेल नहीं खाता, जो अनुवांशिक विकार या आइरिस में पिगमेंट के दोषपूर्ण विकास की वजह से होता है। इसका दूसरा कारण आइरिस के नेवस का डिफ्यूज़ होना हो सकता है।
यह सोच काफी अजीब है कि हमारी आंखें अपना रंग बदल सकती हैं, लेकिन हम यह भी जानते हैं कि तेज रोशनी के संपर्क में आने पर हमारी आईरिस सिकुड़ती है और मंद रोशनी में फैल जाती है। आईरिस के सिकुड़ने और फैलने की यह प्रक्रिया हमारी आंखों का रंग बदलती है। आइरिस के आकार में बदलाव से इसमें मौजूद पिगमेंट फैल या सिकुड़ जाते हैं, जिसका असर हमारी आंखों पर पड़ता है और परिणाम को तौर पर आंख के रंग में थोड़ा बदलाव आता है। हालांकि, आंखों का रंग बदलने के पीछे इसके अलावा कई कारण हो सकते हैं, जैसे-
आमतौर पर बच्चों का जन्म नीले या भूरे रंग जैसे हल्के रंग की आंखों के साथ होता है, लेकिन बड़े होने के साथ उनकी आंखें गहरे रंग की होती जाती हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि हमारी आंखों का रंग माता-पिता के जीन और हमारे शरीर में मेलेनिन की मात्रा के स्तर से निर्धारित होता है। जैसे-जैसे हम बढ़ते हैं, पुतली के आसपास मेलेनिन का स्तर भी बढ़ता जाता है, जिसकी वजह से आंखें काली हो जाती हैं।
सूरज की रोशनी के बहुत ज़्यादा संपर्क में आने से भी हमारी आंखें काली दिख सकती हैं, क्योंकि यह आईरिस के आसपास मेलेनिन के उत्पादन को बदल देती हैं।
आंखों का रंग बदलने के पीछे हमारी भावनाएं या इमोशन्स भी शामिल होते हैं, क्योंकि यह पुतली के आकार को बदल देते हैं। आपके खुश, गुस्सा या उदास होने पर शरीर में हार्मोन रिलीज होते हैं, जो पुतली के आकार को बदल देते हैं। आमतौर पर यह देखा गया है कि जब आप खुश होते हैं, तो आपकी आंखों का रंग ज़्यादा वाइब्रेंट रंग में बदल जाता है, जबकि रोते वक्त आपकी आंखें लाल और चमकदार हो जाती हैं।
माना जाता है कि कपड़े और मेकअप भी हमारी आंखों का रंग बदलते हैं, क्योंकि जब हम कोई गहरे रंग का कपड़ा पहनते हैं और एक ही रंग का आई मेकअप करते हैं, तो हमारी आंखें ज़्यादा वाइब्रेंट और चमकदार दिखती हैं।
हमारे खाने का भी हमारी आंखों पर काफी असर पड़ता है, जैसे:
आंखों में किसी बीमारी या असामान्य कार्य के कारण से भी आंखों का रंग बदला जा सकता है। अगर आपको आंखों में सूजन, खुजली या आंखों के रंग में हद से ज़्यादा बदलाव जैसी कोई समस्या है, तो ऐसे में आपको आंखों की चिकित्सकीय जांच कराने की सलाह दी जाती है।
आप अपनी आंखों का रंग निम्नलिखित तरीकों से बदल सकते हैं, जैसे-
अस्थायी रूप से अपनी आंखों का रंग बदलने का सबसे आम तरीका है कॉन्टैक्ट लेंस पहनना। रंगीन कॉन्टैक्ट लेंस कई तरीकों से आते हैं:
अस्पष्ट (OPAQUE): यह ठोस और आर-पार नहीं देखे जा सकने वाले यानि अपारदर्शी होते हैं, जिसकी वजह से एक पूरा रंग परिवर्तन होता है। अपारदर्शी कॉन्टैक्ट लेंस में मिलने वाले सबसे लोकप्रिय रंग नीले, ग्रे, भूरे, हरे या बैंगनी हैं।
वृद्धि (ENHANCEMENT): यह आर-पार देखे जा सकने वाले यानि पारदर्शी होते हैं, जो आपकी आंखों के प्राकृतिक रंग को बढ़ाते हैं। इससे आपकी आईरिस के किनारों को डिफाइन करने में मदद मिलती है और आपकी आंखों के रंग में तीव्रता जुड़ती है, जैसे- अगर आपके पास जेड हरी आंखें हैं, तो ये लेंस रंग को बढ़ाकर आपको एमराल्ड आंखें देंगे।
दृश्यता (VISIBILITY): यह लेंस आपकी आंखों का रंग नहीं बदलते हैं, उनके पास नीले या हरे रंग के हल्के धब्बे होते हैं, जिनसे आपकी आंखों का रंग थोड़ा अलग हो जाता है।
हालांकि फैशन के इस्तेमाल किये जाने वाले डेकोरेटिव लेंस आपकी आंखों के लिए नुकसानदायक हो सकते हैं। अगर आप बिना प्रिस्क्रिप्शन के डेकोरेटिव लेंस खरीदने जाते हैं, तो आपको खराब लेंस मिल सकते हैं। ऐसे लेंसों को पहनने में कई खतरे शामिल हैं, जैसे-
बताए गए लक्षणों में से कोई भी लक्षण दिखने पर तुंरत अपने डॉक्टर से संपर्क करें। अनुपचारित लक्षण गंभीर संक्रमण की ओर ले जाता है, जिससे अंधापन भी हो सकता है।
लेंस इम्प्लांट सर्जरी नाम की एक सर्जरी का इस्तेमाल मूल रूप से दर्दनाक आंखों की चोटों और चिकित्सा स्थितियों के इलाज में किया जाता था। हालांकि इसे स्थायी रुप से आंखों का रंग बदलने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। इस सर्जरी में डॉक्टर कॉर्निया में एक छोटा सा हिस्सा काटकर आर्टिफिशियल आईरिस डालता है, जिसे मोड़कर छेद में फिट किया जाता है। इसके बाद डॉक्टर आपकी आंखों को प्राकृतिक रूप देने के लिए आर्टिफिशियल आईरिस को कॉर्निया के नीचे खोलते हैं। आजकल यह सर्जरी मेडिकल कारण के बजाय कॉस्मेटिक कारणों से ज़्यादा प्रसिद्ध है।
डॉक्टरों के मुताबिक कॉस्मेटिक कारणों से यह सर्जरी करवाने वाले लोगों को कुछ तरह की परेशानियां हो सकती हैं, जैसे-
कॉस्मेटिक सर्जरी नई होने की वजह से अभी तक इस पर काफी रिसर्च नहीं हुई है, जिससे इस सर्जरी के सुरक्षित और असरदार होने के प्रमाण भी कम हैं। इसलिए इसके बारे में डॉक्टर से बात करने और सर्जरी करवाने से पहले सभी नियमों और शर्तों को समझने की सलाह दी जाती है। लोग कॉन्टैक्ट लेंस पहनकर और सर्जरी से अपनी आंखों का रंग बदलते हैं, लेकिन अगर आपकी आंखों में कोई समस्या है, तो आपको तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
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