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केराटोकोनस क्या है? Keratoconus Kya Hai?

केराटोकोनस एक मेडिकल कंडिशन है जिसमें किसी व्यक्ति की आंख का गोल और गुंबद के आकार का कॉर्निया पतला होने लगता है, जिसकी वजह से आगे कोन जैसी गांठ का डेवलपमेंट होने लगता है।

 

ज्यादातर मामलों में, नेत्र विशेषज्ञों ने पाया है कि यह एक आंख को दूसरी की तुलना में अधिक प्रभावित करता है। यदि कोई व्यक्ति इस मेडिकल कंडिशन के शुरुआती स्टेज से पीड़ित है, तो एक नेत्र विशेषज्ञ उसे ट्रीटमेंट की एक विधि के तौर में कुछ टाइप के चश्मे देगा, लेकिन कुछ मामलों में, उसे “सॉफ्ट कॉन्टैक्ट लेंस” पहनने के लिए भी कहा जा सकता है और अगर यह कंडिशन एडवांस रेट से बढ़ती है, तो “कॉर्नियल ट्रांसप्लांट” की आवश्यकता भी पड़ सकती है।

 

  • यह एक नॉन- इफ्लामेंट्री आंख की कंडीशन है।
  • केराटोकोनस के परिणामस्वरूप धुंधली दृष्टि (विजन) का डेवलपमेंट होता है और प्रकाश के प्रति सेंसिटिविटी बढ़ जाती है।
  • 10-25 वर्ष की आयुवर्ग के बीच आने वाले लोग ज्यादातर इस मेडिकल कंडीशन से प्रभावित होते हैं।

केराटोकोनस के लक्षण – Keratoconus Ke Lakshan

केराटोकोनस आंखों की बीमारी का एक दुर्लभ रूप नहीं है, क्योंकि 2000 में से केवल 1 व्यक्ति इस  मेडिकल कंडिशन से पीड़ित पाया जाता है। इसे पीड़ित व्यक्ति को कभी-कभी यह भी पता नहीं होता है कि वह “केराटोकोनस” से ग्रस्त है, क्योंकि इस कंडिशन में प्रोग्रेस की दर बहुत धीमी होती है। केराटोकोनस के कुछ प्रमुख लक्षणों का उल्लेख नीचे किया गया है:-

Double Vision Cataract
डिस्टोर्टेड / दोहरी दृष्टि (डबल विजन)
Increaded Sensitivity to Glare Cataract
प्रकाश के प्रति अत्यधिक सेंसिटिविटी
Cloudy Vision (2)
धुंधली दृष्टि (दृष्टि के नुकसान की ओर बढ़ना)
Eye allergies (2)
आंखों की एलर्जी
Marfan syndrome
कनेक्टीव ऊतक डिर्सोडर जैसे "मार्फन सिंड्रोम" या "एहलर्स-डानलोस सिंड्रोम"।

केराटोकोनस कारण – Keratoconus Ke Kaaran

हालांकि केराटोकोनस का कोई स्पेसिफिक कारण ज्ञात नहीं है, परंतु यह निम्नलिखित कारणों से ज्यादा जुड़ा हुआ है:

जेनेटिक्स:

यदि किसी व्यक्ति के परिवार के एक या अधिक सदस्य पहले से ही इस कंडिशन से पीड़ित हैं, तो उसे संबंधित व्यक्ति के लिए भी केराटोकोनस के होने की संभावना बढ़ जाती है।

आँखों को मलना:

यदि किसी व्यक्ति को अपनी आँखों को लगातार रगड़ने की आदत है, तो वह अपने प्रोग्रेसिव सालों में केराटोकोनस को डेवलप कर सकता है।

ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस:

​​”ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस” की समस्या भी एक व्यक्ति में केराटोकोनस का कारण बन सकती है। जब फ्री रेडिकल्स की उत्पत्ति और एंटीऑक्सिडेंट के साथ न्यूट्रलाइजेशन के जरिए से नेगेटिव इफेक्टस को संतुलित करने की शरीर की क्षमता के बीच हाई लेवल की असमानता होने लगती है, तो व्यक्ति के शरीर में ऑक्सीडेटिव तनाव की समस्या होती है।

केराटोकोनस का निदान – Keratoconus Ka Nidaan

केराटोकोनस के निदान के लिए पहली और सबसे महत्वपूर्ण विधि आंखों की सही जांच है। इस मेडिकल कंडिशन के सटीक निदान के लिए आंखों के एग्जाम  के लिए  कुछ टेस्ट किए जा सकते हैं। इन टेस्ट्स का उल्लेख नीचे किया गया है: –

कॉर्नियल टोपोग्राफी (Corneal topography):

एक नेत्र विशेषज्ञ इस कंडिशन का शुरुआती स्टेज में ही प्रोग्रेस रेट पता लगाने के लिए किसी व्यक्ति की आंखों पर कॉर्नियल टोपोग्राफी का प्रयोग कर सकता है। इस  प्रोसेस के तहत, कॉर्निया के सरफेस का कार्वेचर त्रि-आयामी नक्शा तैयार किया जाता है। मेडिकल फिल्ड में कॉर्नियल टोपोग्राफी एक नॉन- इनवेसिव टेकनीक है।

स्लिट-लैंप एग्जाम (Slit-lamp exam):

केराटोकोनस की घटना का पता लगाने के लिए एक नेत्र विशेषज्ञ “स्लिट-लैंप एग्जाम” की मदद भी ले सकता है। एक स्लिट-लैंप एक हाई पावर लाइट के सोर्स के साथ एक मेडिकल डिवाइस है। यह आंख के अंदर और बाहर की संरचनाओं का नजदीकी रूप प्रोवाइड करके एक नेत्र रोग विशेषज्ञ की मदद करता है।

पचीमेट्री टेस्ट (Pachymetry test):

एक नेत्र विशेषज्ञ “केराटोकोनस” का पता लगाने के लिए किसी व्यक्ति की आंख पर “पचीमेट्री टेस्ट” भी कर सकता है। इस टेस्ट का उद्देश्य कॉर्निया की मोटाई का अनुमान लगाना है।

केराटोकोनस का ट्रीटमेंट – Keratoconus Ka Treatment

यदि केराटोकोनस अपने शुरुआती स्टेज में है, तो इसका इलाज चश्मे या सॉफ्ट कॉन्टैक्ट लेंस की मदद से भी किया जा सकता है, लेकिन अगर यह मेडिकल कंडिशन बिगड़ती रहती है और कॉर्निया पतला होता रहता है, तो ना ही चश्मा दृष्टि को सही करने में मदद करेगा और ना ही सॉफ्ट कॉन्टैक्ट लेंस मदद करेंगे।

कॉर्नियल कोलेजन क्रॉसलिंकिंग (Corneal collagen crosslinking – CXL)

यह इलाज का एक नया तरीका है, जिसने इलाज में काफी संभावनाएं दिखाई हैं। ट्रीटमेंट का यह रूप केराटोकोनस के फैलाव को रोक सकता है और भविष्य में कॉर्निया ट्रांसप्लांट की जरूरत को भी रोक सकता है। कॉर्नियल कोलेजन क्रॉसलिंकिंग (सीएक्सएल) के दो प्रकार हैं, जिन्हें “एपिथेलियम-ऑफ” और “एपिथेलियम-ऑन” के रूप में जाना जाता है। हाल के दिनों में केराटोकोनस के उपचार के लिए कॉर्नियल क्रॉसलिंकिंग और इंटैक इम्प्लांट्स का कंबाइंड कॉम्बिनेशन बहुत उपयोगी साबित हुआ है।

कस्टम सॉफ्ट कॉन्टैक्ट लेंस (custom soft contact lenses)

इस मेडिकल कंडिशन के इलाज के लिए “कस्टम सॉफ्ट कॉन्टैक्ट लेंस” का ऑप्शन भी मौजूद है। इस प्रकार के कॉन्टैक्ट लेंस स्पेसिफिक किसी व्यक्ति की केराटोकोनिक आंखों के अकॉर्डिंग होते हैं और पहनने वालों के एक स्पेसिफिक सेट के मामले में हाइब्रिड कॉन्टैक्ट लेंस की तुलना में ज्यादा सूटेबल पाए गए हैं।

गैस- पर्मेबल कॉन्टैक्ट लेंस (gas permeable contact lenses)

यदि “कस्टम सॉफ्ट कॉन्टैक्ट लेंस” केराटोकोनस की समस्या को दूर करने में मदद नही कर पाते हैं, तो ” गैस- पर्मेबल कॉन्टैक्ट लेंस” ट्रीटमेंट का एक वायबल तरीका अपनाया जाता है। इस प्रकार के कॉन्टैक्ट लेंस कॉर्निया को कवर करते हैं और कॉर्निया के विषम आकार को एक एसिमिट्रिकल इरवर्सिबल रिफ्रेक्टिव सरफेस से बदलकर किसी व्यक्ति की दृष्टि को बढ़ाते हैं।

कार्निया ट्रांसप्लांट (Cornea transplant)

जब केराटोकोनस एक एडवांस स्टेज में पहुंच जाए है, तो इसके ट्रीटमेंट के लिए सबसे प्रशंसनीय ऑप्शन “कॉर्निया ट्रांसप्लांट” माना जाता है। एक व्यक्ति जो इस सर्जिकल प्रोसेस से गुजर चुका है, उसकी दृष्टि की सही फिक्सिंग के लिए कुछ महीने लग सकते हैं। इस मेडिकल प्रोसेस से जुड़े कुछ रिस्क हैं। इस प्रोसेस के बाद उस व्यक्ति की आंखों में इंफेक्शन हो सकता है। इस प्रोसेस से “करप्शन रिजेक्शन” की संभावना भी जुड़ी हुई है।

स्क्लेरल और सेमी-स्क्लेरल लेंस (scleral and semi-scleral lenses)

“स्क्लेरल और सेमी-स्क्लेरल लेंस” केराटोकोनस से पीड़ित व्यक्ति के लिए ट्रीटमेंट का एक और अल्टरनेटिव तरीका है। जब गैस- पर्मेबल कॉन्टैक्ट लेंस का डायमीटर बड़े पैमाने पर होता है, तो उन्हें “स्क्लेरल और सेमी-स्क्लेरल लेंस” के रूप में पहचाना जाता है। इस प्रकार के कॉन्टैक्ट लेंस “स्क्लेरा” पर आराम करने के लिए काफी बड़े होते हैं। “स्क्लेरल लेंस” के मामले में, “स्क्लेरा” के एक बड़े हिस्से को कवर किया जाता है, जबकि “सेमी-स्क्लेरल लेंस” के मामले में, “स्क्लेरा” के एक छोटे हिस्से को कवर किया जाता है।

बेस्ट केराटोकोनस ट्रीटमेंट हॉस्पिटल – Best Keratoconus Treatment Hospital

भारत में एम्स, शंकर नेत्रालय, एलवीपीईआई और आई मंत्रा सहित कॉर्निया के इलाज के लिए कई अच्छे अस्पताल हैं। आई मंत्रा अस्पताल में हम रोज़ बहुत सारे प्रोब्लेमैटिक कॉर्नियल मामलों से निपटते हैं। हमारे पास कुशल और स्पेशलाइज्ड सर्जन हैं, जोकि कॉर्निया से जुड़ी कई बीमारियों से निपटने में कही ज्यादा अनुभवी हैं। आईमंत्रा अस्पताल देश के उन कुछ आई हॉस्पिटल्स में से एक है, जोकि कॉर्निया में सुपर-स्पेशियलिटी आई सर्विसिज प्रदान करता है।

हम, आईमंत्रा आई सेंटर  एक पूरे जीवन के लिए दृष्टि के सेंस के महत्व को पहचानते हैं और आपकी दृष्टि के लिए हाई क्वालिटी की केयर करने का डेडिकेशन भी रखते हैं।

Our Team

Doctor Shweta Jain
Dr. Shweta Jain
Cataract, Retina, Glaucoma, LASIK
Dr. akansha
Dr. Akanksha Gautam
Retina Specialist
Dr. Saurabh Jain
Dr. Saurabh Jain
Cataract, Retina, Glaucoma, LASIK
Dr. Harleen
Dr. Harleen Kaur
Cataract, Retina, Glaucoma, LASIK

पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

दोनों आँखों में केराटोकोनस की प्रोग्रेस रेट एक दूसरे से अलग होती है, हालांकि 90% मामलों में यह रोग दोनों आंखों में ही डेवलप हो जाता है।

केराटोकोनस आपकी दृष्टि को प्रभावित करता है। इस कंडिशन के लक्षण हो सकते हैं-

  • धुंधली नज़र
  • डिस्टोर्टेड विजन
  • लाइट सेंसिटिविटी
  • परेशान नाइट विजन
  • क्लाउडी विजन

हाँ, आप केराटोकोनस के साथ नॉर्मल लाइफ जी सकते हैं, ठीक वैसे ही जैसे कोई अच्छी दृष्टि वाला व्यक्ति जीता है। आपको बस सही ट्रीटमेंट करवाने की जरुरत है  और आप ठीक हो जाएंगे। यह कंडिशन किसी भी और ट्रीटेबल कंडिशन की तरह ही है।

केराटोकोनस आमतौर पर कंप्लीट ब्लाइंडनेस की तरफ नहीं ले जाता है। यह समय के साथ धीरे-धीरे बढ़ता है और दृष्टि के लेवल को इतना कम कर देता है कि व्यक्ति डेली एक्टिविटीज को नहीं कर पाता है। कुछ समय बाद लेंस और चश्मा इफेक्टिवली काम नहीं करते हैं, इसलिए व्यक्ति को लास्ट में कॉर्निया ट्रांसप्लांट करवाना पड़ सकता है। एक बार सर्जरी हो जाने के बाद आपकी दृष्टि वापस पहले की तरह नॉर्मल हो जाएगी।

ड्राइविंग जैसी कुछ गतिविधियों को करने के लिए आपको अच्छी दृष्टि की जरूरत होगी, क्योंकि इसमें आपकी और दूसरों की सुरक्षा शामिल है। ड्राइविंग लाइसेंस हासिल करने के लिए हर देश के पात्रता मानदंड अलग-अलग होते हैं। इसे प्राप्त करने के लिए आपके पास कम से कम 20/40 दृष्टि  (चश्मे के साथ या बिना) होनी चाहिए। आप इसके लिए पहले अपने राज्य के मोटर व्हिकल डिपार्टमेंट की जांच कर सकते हैं।

आप केराटोकोनस का जल्द निदान करवाकर उसकी प्रोग्रेस को रोक सकते हैं। यदि आप शुरुआती स्टेज में ही इसका निदान करवा लेते हैं, जब आपकी दृष्टि थोड़ी प्रभावित होती है, तो ऐसे मामलों में आपका आई डॉक्टर इसका इलाज पहले करेगा और फ्यूचर में होने वाली ब्लाइंडनेस को रोकने की कोशिश करेंगा।

हाँ, बच्चों में भी केराटोकोनस विकसित हो सकता है। कभी-कभी यह एक आंख में होता है और कभी-कभी दोनों आंखों में हो जाता है, हालांकि इसे चश्मे से कंट्रोल किया जा सकता है, लेकिन अगर सही समय पर इसका इलाज न किया जाए तो कॉर्नियल ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ सकती है।

इस बात का कोई सबूत नहीं है कि कंप्यूटर का उपयोग केराटोकोनस को खराब कर सकता है, लेकिन अपनी आंखों को डिजिटल आई स्ट्रेन से बचाने के लिए कंप्यूटर का बहुत ज्यादा इस्तेमाल नही करना ही सबसे अच्छा है।

भारत में कई बेस्ट कॉर्निया डॉक्टर हैं। आई मंत्रा में कुछ टॉप कॉर्निया डॉक्टर / सर्जन हैं। डॉ श्वेता जैन भारत में बेस्ट कॉर्निया स्पेशलिस्ट में से एक हैं। डॉ श्वेता जैन ने अब तक 1000 से अधिक केराटोकोनस ट्रीटमेंट सफलतापूर्वक किए हैं, सिर्फ यही नहीं आई मंत्रा कॉर्निया सर्जरी प्रोग्राम के रिजल्टस कई लोगों के लिए बेहतर भी साबित हुए हैं। कॉर्निया सर्जरी के बाद बेहतर दृष्टि और डीप्थ परसेप्शन की धारणा भी डेवलप हो सकती है।

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