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मोतियाबिंद सर्जरी ऑंखों के लेंस में धुंधलापन या क्लाउडी सब्सटेंस की उपस्थिति है। यह क्लाउडी सब्स्टेंस लेंस में टूटा हुआ प्रोटीन होता है, जिसका आखिर में परिणाम धुंधली दृष्टि (blurry vision) या अंधापन (blindness) होता है। एक नेचुरल लेंस प्रकाश किरणों को रेटिना पर अपवर्तित (refract) करने का काम करता है, लेकिन मोतियाबिंद का लेंस इन किरणों को रेटिना पर ठीक से नहीं पड़ने देता, जिससे दृष्टि धुंधली हो जाती है।
यह एक बादल जैसे दिखने वाले पदार्थ के साथ लेंस को हटाकर कृत्रिम लेंस (Artificial lens) के साथ बदलने का सर्जीकल प्रोसीजर है। इसमें इस्तेमाल किये जाने वाले आर्टिफिशियल लेंस को इंट्राओकुलर लेंस (IOL) भी कहते हैं, जो स्पष्ट दृष्टि (Clear Vision) वापस लाने में मदद करता है। शुरुआती मोतियाबिंद मेडिकेटेड आईड्रॉप या चश्मे से ठीक किया जा सकता है। आखिर में मोतियाबिंद लेंस को सर्जरी के ज़रिए स्थायी रूप से हटाया जाता है, लेकिन सर्जरी मोतियाबिंद के पूरी तरह से विकसित होने पर ही की जा सकती है।
प्रक्रिया– आपको दृष्टि धुंधली होने या तेज रोशनी में देखने में परेशानी होने पर आपका डॉक्टर आपको सर्जरी करवाने की सलाह दे सकता है। मोतियाबिंद की सर्जरी में बीस मिनट लगते हैं, लेकिन नॉर्मल लाइफ में लौटने में थोड़ा वक्त लगता है। दर्द रहित और जल्द होने वाली इस सर्जरी में आपको अस्पताल में तीन से चार घंटे लग सकते हैं।
मोतियाबिंद होने पर सर्जन आपकी ऑंंख की सबसे बाहरी परत में छोटा सा कट लगाते हैं। इसके अलावा मोतियाबिंद को तोड़ने के लिए एक छोटा उपकरण या लेज़र किरणें डालते हैं। इस प्रक्रिया के बाद आपके नैचुरल लेंस को आईओएल (IOL) लेंस से बदल दिया जाता है। दोनों ऑंखों में मोतियाबिंद होने पर एक बार में एक ऑंख की सर्जरी और फिर कुछ हफ्तों के बाद अगली सर्जरी की जाती है।
मोतियाबिंद आंखों की सर्जरी का खर्च हर अस्पताल में अलग-अलग होता है। अस्पतालों में उनके द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे लेंस की क्वालिटी और अस्पताल द्वारा दी जा रही सुविधाओं के अनुसार चार्ज लिया जाता है। आमतौर पर इसकी कीमत 35 हजार से 1 लाख तक के बीच होती है। दिल्ली के टॉप पांच आंखों के हॉस्पिटल में से एक आई मंत्रा हॉस्पिटल में एक मोतियाबिंद सर्जरी केवल 25 हजार में की जाती है। आई मंत्रा सबसे अनुभवी सर्जनों के साथ सर्वोत्तम प्रकार के लेंस प्रदान करता है। यहां आपकी सर्जरी से पहले और बाद में ठीक से देखभाल की जाएगी।
मोतियाबिंद सर्जरी चीरे के आकार और सर्जरी में इस्तेमाल की जाने वाली तकनीकों के आधार पर कई प्रकार की हो सकती है। यह खासतौर पर सर्जरी होने वाली ऑंख के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है।
फेकोइमल्सीफिकेशन/फैको (Phacoemulsification/phaco)
मोतियाबिंद हटाने की इस प्रक्रिया फेकोइमल्सीफिकेशन यानि फाको को ”छोटे चीरे की मोतियाबिंद सर्जरी” भी कहा जाता है। इसमें सर्जन कार्निया (ऑंख में गुंबद के आकार की सबसे पहली परत) के किनारे पर एक छोटा सा कट बनाकर ऑंख में एक उपकरण डालता है, जो लेंस पर अल्ट्रासोनिक तरंगों का उत्सर्जन करता है। ये तरंगें मोतियाबिंद के लेंस को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ देती हैं, जिन्हें एक जांच की मदद से धीरे से बाहर निकाला जाता है। मोतियाबिंद को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ने की इस प्रक्रिया को फेकोइमल्शन (phacoemulsion) कहते हैं।
एक्स्ट्राकैप्सुलर सर्जरी (Extracapsular Surgery)
एक्स्ट्राकैप्सुलर सर्जरी उस स्टेज में की जाती है, जब मोतियाबिंद के बढ़े हुए रूप को भंग या तोड़ा नहीं जा सकता है। मरीज़ों के लिए कई दूसरे कारणों से भी फेकमूल्सीफिकेशन प्रक्रिया ठीक नहीं है। फाको की तुलना में इस सर्जरी में बड़ा चीरा लगाया जाता है, जिसे बंद करने के लिये कुछ टांकें लगाए जाते हैं। एक्स्ट्राकैप्सुलर सर्जरी में घाव बड़ा होता है, इसलिए इसे ठीक होने में ज़्यादा वक्त लगता है और जल्द ठीक होने के लिए एक आई शील्ड की ज़रूरत पड़ सकती है। विज़ुअल कार्यों को धीमी गति से बहाल किया जाता है। इस प्रकार की रिमूवल तकनीक में दर्द को सुन्न करने के लिए एक एनेस्थेटिक इंजेक्शन की भी ज़रूरत होती है।
फेमटोसेकंड सर्जरी (Femtosecond Surgery)
मोतियाबिंद सर्जरी में इस्तेमाल करने के लिए फेमटोसेकंड सर्जरीआपके डॉक्टर के लिए एक अलग विकल्प है। यह एफडीए (FDA) द्वारा अप्रूव कंप्यूटर-गाइडेड लेजर है, जिसे सर्जन प्रोसीड करते हैं। यह उपकरण मोतियाबिंद को खत्म करने में सर्जन की मदद कर सकता है, जिसका इस्तेमाल दृष्टिवैषम्य (astigmatism) को ठीक करने के लिए की जाने वाली प्रक्रियाओं में भी किया जा सकता है।
ज़ेप्टो कैप्सुलोटॉमी डिवाइस (Zepto Capsulotomy Device)
सर्जरी के लिए जेप्टो कैप्सुलोटॉमी डिवाइस फेमटोसेकंड मोतियाबिंद सर्जरी की तुलना में काफी कम है। इसके अलावा ये खास और सटीक कैप्सुलोटॉमी बनाने के लिए एक हाथ में डिस्पोजेबल डिवाइस का अभ्यास करता है। लॉजिस्टिक चुनौतियों वाला ये डिवाइस फेमटोसेकंड लेज़र-असिस्टेड मोतियाबिंद सर्जरी की तुलना में समग्र सर्जिकल समय को कम करता है। कॉर्नियल अपारदर्शिता या छोटे विद्यार्थियों वाले रोगियों में फेमटोसेकंड लेज़र का अभ्यास नहीं किया जा सकता है, जबकि ज़ेप्टो कैप्सुलोटॉमी डिवाइस का किया जा सकता है। ये डिवाइस सर्जरी को ज़्यादा भरोसेमंद और अधिक प्रत्याशित भी बनाता है।
इंट्राकैप्सुलर कैटरेक्ट एक्सट्रैक्शन – आईसीसीई (Intracapsular Cataract Extraction – ICCE)
इसमें एक भाग में लेंस और संलग्न लेंस कैप्सूल को हटाया जाता है। बड़े चीरे और विट्रीस बॉडी पर दबाव पड़ने से इस प्रक्रिया में ज़्यादा दिक्कतें हैं, जिसकी वजह से इसे बड़े पैमाने पर बदल दिया गया है। आमतौर पर आईसीसीई इसमें इस्तेमाल किए जाने वाले माइक्रोस्कोप (microscopes) और एडवांस-टैक्नोलॉजी उपकरण आसानी से मिल जाने से इसे कई देशों में किया जाता है। लेंस हटाने के बाद एक आर्टिफिशियल प्लास्टिक लेंस को इंट्राओकुलर लेंस इम्प्लांट या पूर्वकाल कक्ष (anterior chamber) में सेट या सल्कस में सिल दिया जाता है।
पचास की उम्र के बाद लोगों में मोतियाबिंद का निदान होना लगभग सामान्य हो गया है। इस दौरान ऑंखों के प्राकृतिक लेंस में बने बादल परितारिका (आइरिस) और पुतली को पीछे ले जाते हैं।
आईसीएल जैसी पूर्व आई सर्जरी से मोतियाबिंद हो सकता है। इसके अलावा, उम्र बढ़ने (Ageing), आनुवंशिक रोग (Genetic Disease), डायबिटीज़ (Diabetes), पराबैंगनी किरणों (UV rays), विकिरण (Radiation) या ऑंख में लगी चोट से लेज़र कैटरेक्ट सर्जरी ऑंख में लेंस के ऊतक को बदल देती है। मोतियाबिंद होने पर प्रोटीन डिनेचुरेशन की वजह से ऑंखों का प्राकृतिक लेंस धुंधला हो जाता है, जो प्रकाश को लेंस से गुजरने से रोकता और दृष्टि धुंधली कर देता है।
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