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कॉर्निया आंख के अंदर का एक ट्रांसपेरेंट हिस्सा है, जो आइरिस, पुतली और आगे का हिस्सा ढकता है। कॉर्निया का काम हमारी आंखों में जाने वाले प्रकाश को रिफ्रेक्ट करना या मोड़ना है। कॉर्निया में शरीर के दूसरे हिस्सों की तरह बल्ड वेसल्स ना होकर प्रोटीन और कोशिकाएं होती हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि बल्ड वेसल्स कॉर्निया को ढक सकती हैं। इससे प्रकाश को रिफ्रेक्ट करने में आने वाली दिक्कतों की वजह से विज़न से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं। कॉर्निया को पोषण देने के लिए कोई ब्लड वेसल्स नहीं होती, इसलिए आंख के आगे के हिस्से में आंसू और नेत्रोद यानि एक्वेस ह्यूमर कॉर्निया को ज़रूरी पोषण देने का काम करते हैं।
कॉर्निया को पांच परतों एपिथेलियम, बोमन परत, स्ट्रोमा, डेसिमेट की झिल्ली और एंडोथेलियम में में बांटा गया है। कॉर्निया की पहली परत यानी एपिथेलियम कोशिकाओं की एक परत होती है, जो कॉर्निया को ढकने, आँसू से पोषण-ऑक्सीजन लेने और इसे पूरे कॉर्निया में पहुंचाने के लिए जिम्मेदार है। यह बाहरी पदार्थ को जाने से रोककर आंखों की मदद भी करता है। कॉर्निया हल्की खंरोच से जल्दी ठीक हो जाते हैं, लेकिन ज़्यादा खंरोच से कॉर्निया पर निशान बन जाते हैं, जिससे विज़न से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं।
कॉर्निया आंखों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटाणुओं, गंदगी और अन्य चीजों के खिलाफ एक रुकावट का काम और कुछ यूवी किरणों को फ़िल्टर करने में भी मदद करता है। ध्यान रखें कि कॉर्निया यूवी किरणों को ज्यादा मात्रा में फ़िल्टर नहीं कर सकता है, इसलिए बाहर जाते वक्त आपको धूप का चश्मा पहनने की सलाह दी जाती है। आपको कभी भी नंगी आँखों से सीधे सूरज की रोशनी की तरफ नहीं देखना चाहिए, क्योंकि इससे आपकी आँखों को ज़्यादा नुकसान होता है। आँख की कई बीमारियां कॉर्निया से जुड़ी होती हैं, जिनमें से कुछ का इस प्रकार हैं।
कॉर्निया कई बीमारियों, इंफेक्शन्स, टिशू के टूटने, जेनेटिक, या परिवार में पास होने वाली समस्याओं की वजह से प्रभावित हो सकता है।
कॉर्नियल प्रॉब्लम के लक्षण:
कुछ लक्षण आंखों की गंभीर समस्या की वजह बन सकते हैं, इसलिए आपको इनमें से कोई भी लक्षण दिखने पर डॉक्टर के पास जाने की सलाह दी जाती है। कंडीशन के खराब होने का इंतजार न करें, क्योंकि इससे आंखों की समस्या और बढ़ सकती है।
केराटाइटिस बैक्टीरिया, वायरस या कवक (fungi) के कॉर्निया में जाने से होता है। चोट के बाद इनके प्रवेश से इंफेक्शन और सूजन भी हो सकती हैं। इसके अलावा खराब या गलत कॉन्टैक्ट लेंस पहनने से भी यह समस्या हो सकती हैं।
लक्षण:
एंटीबायोटिक्स या ऐंटिफंगल आई ड्रॉप्स के इस्तेमाल से इसे ठीक किया जा सकता है। इसके इलाज के लिए आपको कुछ एंटीवायरल दवाएं या स्टेरॉयड आई ड्रॉप भी दी जा सकती हैं।
ओक्यूलर हर्पीस वायरल फीवर की तरह बार-बार हो सकती है। इसका कारण हर्पीस सिम्प्लेक्स वायरस l (HSV l) है। यही कारण है जो सर्दी-जुकाम की वजह भी बनता है। यह सेक्शुअली ट्रांसमिटेड हर्पीस सिम्प्लेक्स वायरस ll (HSV ll) की वजह से भी हो सकता है। इसके कारण जेनिटल हर्पीस हो सकता है, जिसे जननांग दाद भी कहते हैं।
समय के साथ यह कंडीशन पूरे कॉर्निया में फैलकर आंखों में गहराई तक जा सकती है, जिसका कोई इलाज नहीं है। हालांकि, एंटीवायरल दवाओं और स्टेरॉयड आई ड्रॉप से इसे कंट्रोल किया जा सकता है।
यह बीमारी चिकनपॉक्स हो चुके लोगों में ज़्यादा देखी जाती है। चेचक ठीक होने के बाद खुजली दूर होना, लेकिन इसे पैदा करने वाले वायरस का शरीर में बना रहना इसका मुख्य कारण है। इस दौरान शरीर में नीचे रहने वाला वायरस कुछ वक्त के लिए खत्म होकर बाद में फिर एक्टिव हो सकता है और शरीर के स्पेसिफिक भागों, खासकर आंखों को प्रभावित कर सकता है। आपको चेहरे पर दाने हो सकते हैं, जिससे कॉर्निया में दर्द होता है।
आमतौर पर यह अपने आप या प्रिस्क्राइब की गई एंटीवायरल दवाओं और टॉपिकल स्टेरॉयड आई ड्रॉप्स से ठीक हो सकते हैं। आमतौर पर इसकी ज़्यादा संभावना उन लोगों में होती है, जिन्हें 80 साल की उम्र के बाद चेचक होता है या जिनका इम्यून सिस्टम कमजोर होता है।
कॉर्नियल एब्रेशन आपके कॉर्निया पर खरोंच आने से होता है। ऐसा अक्सर आपके आंख थपथपाने या कोई चीज के पलकों में फंस जाने से होता है, जैसे- गंदगी या कोई अन्य बाहरी पदार्थ। ऐसा होने पर आपकी आंखों में दर्द या चुभन और जलन होती है।
कारण:
अगर आपकी आंख में कुछ भी लगने पर आंखें मलने की इच्छा होती है, तो आंखों को रगड़ें नहीं, क्योंकि आपके ऐसा करने से कॉर्निया पर खरोंच आ सकती है। ऐसा होने पर इन चरणों का पालन करें:
आपके कॉर्निया में कुछ भी फंसने पर उसे खुद निकालने की कोशिश न करें। इसके लिए केवल एक डॉक्टर को प्रशिक्षित किया जाता है। अगर बताए गए स्टेप्स को फॉलो करने के बाद भी आपकी आंख में गया पदार्थ नहीं निकले, तो जल्द से जल्द अपने डॉक्टर से सलाह लें। डॉक्टर आपकी आंखें देखकर आई स्ट्रेन का इस्तेमाल करेंगे, जिससे कॉर्निया और उसकी सतह को ठीक से देखने में मदद मिलती है। कुछ भी होने पर आपका डॉक्टर उसे सही तरीके से निकाल देगा।
आंखों में खरोंच या कॉर्निया घर्षण के लक्षण:
ऐसे मामलों में आपका डॉक्टर कुछ मलहम या एंटीबायोटिक आई ड्रॉप दे सकता है, जिससे आपकी आंखों में जलन और इंफेक्शन न हो। आंखों में दर्द और रेडनेस कम करने के लिए आपको कुछ मेडिकेटेड आई ड्रॉप भी दी जा सकती हैं।
अगर कोई मामूली खरोंच है, तो वह 1-3 दिनों में ठीक हो जाएगी, लेकिन कोई बड़ी खरोंच को ठीक होने में कुछ और समय लगेगा।
आंख ठीक होने तक क्या ना करें?
मामूली खरोंच को आसानी से ठीक कर सकते हैं, लेकिन बड़ी खरोंच से इंफेक्शन, निशान और कोई दूसरी समस्या हो सकती है। ठीक से देखभाल नहीं किये जाने पर इससे लंबे समय की समस्याएं या स्थायी दृष्टि समस्याएं हो सकती हैं। इसलिए, आंख से जुड़ी किसी भी प्रकार की समस्या को लेकर हमेशा सतर्क रहना चाहिए और जितना जल्दी हो सके अपने आंखों के डॉक्टर से परामर्श करें।
कॉर्निया यानी केराटाइटिस या हर्पीज ज़ोस्टर में कई बीमारियां हो सकती हैं। अगर इनमें से किसी भी बीमारी के लक्षण दिखते हैं, तो ऐसे में आपको तुंरत डॉक्टर के पास जाना चाहिए, क्योंकि कॉर्नियल एब्रेशन आंखों को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकता है। इनसे छुटकारा पाने, भविष्य में इनसे बचने, आँखों को स्वस्थ और सुरक्षित रखने के लिए जितना जल्दी हो सके अपनी आंखों की जांच करवाएं।
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