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मंद दृष्टि को आलसी आंख (Lazy Eye) या एम्ब्लियोपिया (Amblyopia) भी कहते हैं। जैसा इसके नाम से ही पता चलता है कि यह आंखों से जुड़ी एक बीमारी है। आमतौर पर आलसी आंख यानि एम्ब्लियोपिया की बीमारी बचपन में कम उम्र के बच्चों में देखी जाती है, जिसमें इससे पीड़ित बच्चों की दृष्टि दूसरों के मुकाबले सामान्य रुप से विकसित नहीं होती।
इसका असर ज़्यादातर एक ही आंख पर पड़ता है, जिसके कारण मंद दृष्टि का मरीज़ अपनी दोनों आंखों का इस्तेमाल नहीं कर सकता। एम्ब्लियोपिया में आंखों की कम रोशनी देखने की क्षमता को भी कम कर देती है। इससे पीड़ित बच्चों का दिमाग का दो में से सिर्फ एक आंख पर केंद्रित होता है यानि “लेजी आई” एक आंख की उपेक्षा करती है और वस्तुओं को देखने के लिए दूसरी आंख का इस्तेमाल करती है। यह स्थिति खासतौर से आंख को दिमाग से जोड़ने वाली नर्व की गलत या अनुचित कनेक्टिविटी की वजह से होती है।
इन लक्षणों से एम्ब्लियोपिया की बीमारी का पता लगाया जा सकता है:
इनमें से एक या उससे ज़्यादा लक्षणों का अहसास होने पर आपको तुरंत किसी नेत्र रोग विशेषज्ञ के पास जाना चाहिए, जो आपकी एम्ब्लियोपिया का निदान करेगा। आलसी आंख वाले मरीज़ का निदान करने के लिए डॉक्टर सामान्य आंखों का परीक्षण करता है।
बच्चों में एम्ब्लियोपिया के कई कारण हो सकते हैं, जैसे
ऐसा हो सकता है कि एम्ब्लियोपिया के मरीज़ की दो आंखों में से एक में पहले से ही दूसरे से बेहतर फोकस हो, जिस वजह से कम बेहतर फोकस वाली आंख धुंधली छवि बनाने लगती है और निकट या दूरदर्शिता (Near or Farsightedness) से पीड़ित भी हो सकती है। लंबे वक्त से चलने की वजह से मरीज़ का दिमाग उसी को अपनाना शुरू कर देता है। ऐसे में कमजोर फोकस वाली आंख को “आलसी आंख” मानकर मरीज़ सिर्फ दूसरी आंख का इस्तेमाल करता है।
कई बार मरीज़ आंख की सर्जरी करवाते हैं या कुछ कारणों से उनकी आंख में चोट लग सकती है, जिसकी वजह से एक आंख स्पष्ट छवि बनाना बंद कर देती है, जिसे “लेजी आई” समझकर दिमाग दूसरी आंख से काम लेना शुरु कर देता है।
पोषण से जुड़ा एम्ब्लियोपिया किसी बच्चे को गर्भावस्था या बचपन में हुई विटामिन ए की कमी के कारण होता है। रेटिना के सही स्वास्थ्य और विकास के लिए विटामिन ए बहुत ज़रूरी होता है। विकसित देशों में शायद ही कभी पोषण से जुड़ी अस्पष्टता का मामला होता है। यह तीसरी दुनिया के देशों में एक मुद्दा है, लेकिन अमेरिका में गरीबी के बावजूद बच्चों और गर्भवती महिलाओं को एम्ब्लियोपिया से बचाने के लिए पर्याप्त पोषण दिया जाता है। इसलिए मरीज़ के शरीर में विटामिन ए की कमी आंख की समस्या की बड़ी वजह बन सकता है।
ग्लूकोमा भी एक तरह की आंख की समस्या है, जिसके कारण आंख के अंदर दबाव बनने लगता है, जिससे मरीज की नजर खराब हो सकती है। दो में से एक आंख ग्लूकोमा के लिए विकसित दबाव को संभालने में नाकाफी हो सकती है और इसलिए आलसी आंख के रूप में व्यवहार करना शुरू कर देती है।
आंख को दिमाग से जोड़ने वाली नर्व का विकास बचपन में होता है, इसलिए मरीज़ की बढ़ती उम्र के साथ ही मंद दृष्टि के पूरी तरह से ठीक होने की संभावना कम होती जाती है। सही उपचार और सावधानियों के ज़रिए सात साल की उम्र तक एम्ब्लियोपिया को ठीक किया जा सकता है, जबकि कुछ दुर्लभ मामलों में 17 साल की उम्र तक मरीज ठीक हो जाते हैं, इसलिए उम्र कोई रुकावट नहीं है। अच्छे और जल्द नतीजे लेने के लिए रोग का निदान होते ही उपचार शुरू कर देना चाहिए।
इसके उपचार के ऐसे कई विकल्प हैं, जिनसे किसी व्यक्ति की मंद दृष्टि का इलाज किया जा सकता है और सामान्य इंसानों की तरह दोनों आंखों का ठीक से इस्तेमाल करने में सक्षम बनाता है।
सुधारात्मक चश्मा या कॉन्टैक्ट लेंस (Corrective Glasses or Contact Lenses)
मंद दृष्टि या एम्ब्लियोपिया का इलाज दोनों आंखों में अलग-अलग पावर के चश्मे या कॉन्टैक्ट लेंसों के इस्तेमाल से किया जा सकता है। ठीक से काम करने वाली आंख कम पावर वाले कॉन्टैक्ट लेंस या ग्लास का इस्तेमाल करेगी, जबकि ठीक से काम नहीं करने वाली आंख यानि आलसी आंख ज्यादा पावर के साथ लेंस का इस्तेमाल करती है।
आंखों के पैच पहनना (Wearing Eye Patches)
आई पैच लेजी आई के इलाज के लिए एक तरह का आवरण होते हैं। आंखों के पैच से सामान्य या सक्रिय आंख को ढककर रखने से आलसी आंख पर वस्तुओं को देखने पर ज़ोर दिया जाता है। इससे यह आंख को दिमाग से जोड़ने वाली लगभग डेड नर्व सेल्स को फिर से सक्रिय करने में मदद करता है।
आंखों के पैच का इस्तेमाल सामान्य आंख को ढ़कने के लिए किया जाता है, जिससे आलसी आंख की दृष्टि को बेहतर बनाने में मदद मिलती है। बेहतर नतीजों के लिए पैच को रोजाना लगभग 6 से 7 घंटे तक पहनें, लेकिन पैच का इस्तेमाल करने से पहले मरीज़ को इस्तेमाल करने के समय के बारे में अपने चिकित्सक से परामर्श लेना ज़रूरी है। मरीज़ की उम्र और आलसी आंख की स्थिति की गंभीरता के हिसाब से पैच के इस्तेमाल करने की अवधि अलग हो सकती है।
बैंगरटर फ़िल्टर (Bangerter Filter)
आंखों का पैच नहीं पहन सकने वाले बच्चों के लिए बैंगरटर फिल्टर का इस्तेमाल किया जा सकता है। ये आंखों के पैच की तरह ही होते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि अगर मरीज़ आंखों के पैच के बजाय बैंगरटर फिल्टर के इस्तेमाल के लिए सहमत होता है, तो उसे पूरे दिन प्रमुख आंख पर इन फिल्टर का इस्तेमाल करना होता है, जबकि आंखों के पैच को सिर्फ 6 से 7 घंटे के लिए इस्तेमाल करने की ज़रूरत होती है। फ़िल्टर की अस्पष्टता, घनत्व और दूसरे कारकों को मरीज़ की स्थिति और उम्र की गंभीरता के मुताबिक समायोजित किया जा सकता है।
औषधीय आई ड्रॉप और दवाएं (Medicated Eye Drops and Medicines)
एम्ब्लियोपिया का निदान होने के बाद डॉक्टर मामले को देखता है और मरीज़ की मंद दृष्टि की समस्या के इलाज के लिए कुछ दवाएं और आई ड्रॉप की सलाह देता है। डॉक्टर की सलाह में बताई गई आई ड्रॉप्स और दवाओं को बीमारी के ठीक न होने तक पूरी मात्रा में लेना चाहिए। डॉक्टर द्वारा सुझाई गई आई ड्रॉप और दवाइयों को ज़्यादा या कम लेने से आंखों और दिमाग से आंखों को जोड़ने वाली नसों को गंभीर नुकसान हो सकता है।
सर्जरी (Surgery)
अगर कई दवाओं, उपचारों और एक्सरसाइज़ों के बाद भी मरीज़ की अस्पष्टता में किसी तरह का सकारात्मक बदलाव नहीं दिखाता या ठीक होने में उम्मीद से ज़्यादा वक्त लगे, तो डॉक्टर मरीज़ को एक खास सर्जरी करवाने की सलाह देते हैं। दूसरी सर्जरी के मुकाबले डॉक्टर लेजी आई को ठीक करने के लिए नसों का इलाज करते हैं। सर्जरी करते वक्त आंखों के पैच जैसे अतिरिक्त उपकरण की ज़रूरत होती है। आंखों की मांसपेशियों की लंबाई या स्थिति को समायोजित करने के लिए आलसी आंखों की सर्जरी की जाती है। इसका इस्तेमाल तब किया जा सकता है जब एम्ब्लियोपिया निम्नलिखित कारणों से होता है, जैसे-
आमतौर पर लेजी आई के लिए सर्जिकल समाधान में दृष्टि को ठीक करने के लिए अतिरिक्त रणनीतियां ज़रूरी होती हैं, जैसे- आंखों पर पट्टी बांधना। आंख की कॉस्मेटिक उपस्थिति में सुधार के लिए सर्जरी का भी इस्तेमाल किया जाता है।
एक्सरसाइज़ (Exercise)
विज़न एक्सरसाइज़ के स्टेप निम्नलिखित हैं-
यह एक्सरसाइज़ प्रभावित आंख पर पेंसिल को देखने के लिए दबाव डालकर उसे पहचान लेती है। जब तक यह आंख दैनिक गतिविधियों में शामिल नहीं होती है, तब तक मरीज़ के ठीक होने की संभावना बहुत कम होती है।
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