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मोतियाबिंद के निदान के लिए यदि आपको कभी आपके चिकित्सक ने सर्जरी की सलाह दी है, तो आप यह मान लीजिए की आपका नेत्र चिकित्सक आपकी इस परेशानी को हल करने के लिए संभवत: फेकमूल्सीफिकेशन या “फेको” सर्जरी का ही प्रयोग करेगा। फेकमूल्सीफिकेशन में आंख के प्राकृतिक लेंस का पायसीकरण (liquifying) या द्रवीकरण किया जाता है। यह मोतियाबिंद को दूर करने के लिए एकदम नई, आधुनिक और अत्यंत सुरक्षित और भरोसेमंद तकनीक है। आँख का लेंस आईरिस के पीछे स्थित होता है, जो कि साफ और तेज छवियों के निर्माण के लिए प्रकाश को रेटिना पर केंद्रित करने में मदद करता है।
हालांकि, बढ़ती उम्र के साथ लेंस सख्त हो जाता है और फिर यह अपनी एडजस्ट करने की क्षमता को खो देता है। पूरा लेंस एक लेंस कैप्सूल के अंदर होता है। जैसे-जैसे आप बड़े होते हैं, ऑक्सीडेटिव प्रक्रियाएं होती हैं। लेंस कैप्सूल में प्रोटीन और मृत कोशिकाएं जमा होने लगती हैं, जिससे लेंस धुंधला हो जाता है। इससे प्रकाश एकाग्र नहीं हो पाता और धुंधलेपन के कारण चारों ओर बिखर जाता है और फिर दृष्टि धुंधली हो जाती है। इस पूरी प्रक्रिया का नतीजा यह रहता है कि यह स्पष्ट और तेज दृष्टि देने की क्षमता खो देता है।
फेकमूल्सीफिकेशन सर्जरी की तकनीक पहली बार 1967 में डॉ चार्ल्स डी केलमन द्वारा शुरू की गई थी। इस तकनीक ने मोतियाबिंद के प्रबंधन और दृश्य पुनर्वास में क्रांति ला दी है। प्रौद्योगिकी और उपकरणों के प्रकारों में अपग्रेड के साथ तकनीक में काफी सुधार हुआ है। इसलिए, तब से लेकर अब तक सर्जरी के परिणामों में बहुत बदलाव आए है। अब हमारे पास बहुत छोटे चीरे हैं। फोल्डेबल लेंस की क्वालिटी भी काफी विकसित हुई है। आज की जाने वाली अधिकांश मोतियाबिंद की सर्जरी फेकमूल्सीफिकेशन सर्जरी के द्वारा ही होती है। इसके पीछे का कारण इसके उत्कृष्ट दृश्य परिणाम, रोगी की सुरक्षा और दक्षता है।
विजन सर्जरी के लिए दृष्टि कमजोर हो जाने से पहले एक व्यक्ति को कई वर्षों तक मोतियाबिंद हो सकता है। आपका नेत्र विशेषज्ञ पहले आपको चश्मा पहनने का सुझाव दे सकता है। यह अस्थायी आधार पर दृष्टि में सुधार करने में मदद करता है। लेकिन जैसे ही लेंस धुंधला होता है, दृष्टि में गिरावट आने लगती है।
जैसे-जैसे मोतियाबिंद डेवलप होता है और इसकी स्थिति खराब होने लगती है। इस दौरान आप नीचे दिए गए लक्षणों को अनुभव कर सकते है :
जबकि, अगर किसी छोटे व्यक्ति या डायबिटिक को मोतियाबिंद होता है, तो यह बहुत तेज गति से बढ़ता है। इसलिए नेत्र रोग विशेषज्ञ ऐसे मामलों में जल्द ही फेकमूल्सीफिकेशन सर्जरी की सिफारिश कर सकते है। यदि रोगी किसी अन्य नेत्र रोग से पीड़ित है, तो भी सर्जरी की सिफारिश की जा सकती है। यह उम्र से संबंधित मैक्यूलर डिजनरेशन हो सकता है। ऐसे मामले में मोतियाबिंद एक पूरे आई एग्जामिनेशन के साथ प्रवेश करता है।
जब लक्षण इतने बिगड़ जाते हैं कि दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों को करना मुश्किल हो जाता है, तो सर्जरी करवाना बेहद जरुरी हो जाता है, फिर आपका नेत्र विशेषज्ञ मोतियाबिंद की गंभीरता और आपको किस प्रकार की सर्जरी की आवश्यकता है, यह तय करने के लिए एक पूरा ओकुलर टेस्ट करने की व्यवस्था करता है।मोतियाबिंद की बुरी स्थिति के लिए एक्स्ट्राकैप्सुलर एक्सट्रैक्शन की पुरानी विधि को व्यापक रूप से पसंद किया जाता है। इसके अलावा यदि दोनों आंखों में मोतियाबिंद है, तो हर एक का अलग-अलग इलाज किया जाता है।
इस टेस्ट में निम्न और उच्च रोशनी दोनों के तहत विजन की तेजी का माप, विजन एरिया का आकलन, आंखों की संरचनाओं की सूक्ष्म जांच, पुतली का फैलाव और अंतःस्रावी दबाव (IOP) का माप शामिल होता है। रोगी के ओवरऑल स्वास्थ्य पर भी विचार किया जाता है और रोगी की फिजिकल हेल्थ इस सर्जरी के परिणामों को कैसे प्रभावित करेगी, यह जानने के लिए सर्जन आपको सर्जरी से पहले पूरी तरह से फिजिकल टेस्ट करवाने का मशवरा भी दे सकता है।
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फेकमूल्सीफिकेशन सर्जरी की तैयारी के निर्देश कुछ अलग हो सकते हैं। आमतौर पर मरीजों को सर्जरी के दिन से आधी रात के बाद कुछ भी खाने या पीने के लिए मना कर दिया जाता है। आपको उन सभी नुस्खों का खुलासा करने के लिए कहा जाएगा जो किसी भी तरह से सर्जरी में हस्तक्षेप करने का कार्य करेगें। यदि रोगी ब्लड को पतला करने के लिए एस्पिरिन या कोई अन्य दवा लेता हैं, तो उन्हें आमतौर पर सर्जरी के दिन से दो सप्ताह पहले बंद करने के लिए कह दिया जाएगा। इस तरह की दवाएं आपको इंट्राऑकुलर ब्लीडिंग के जोखिम में डाल सकती हैं।
आपका नेत्र चिकित्सक इस बात को जज करने वाला सबसे और कुशल व्यक्ति हैं और वही इम समस्याओ के निदान का भी उपचार बतायेंगे। नेत्र सर्जन इंफेक्शन की संभावना को कम करने के लिए आपको सर्जरी से पहले एंटीबायोटिक बूंदों का उपयोग शुरू करने की भी सलाह दे सकते है।
एक ए-स्कैन माप जो आईबॉल की लंबाई का पता लगाता है। इसका प्रदर्शन किया जाएगा। यह निर्धारित करने में मदद करता है कि इंट्राऑकुलर लेंस में अपवर्तक शक्ति कितनी होनी चाहिए। इसके अलावा कुछ अन्य पूर्व सर्जिकल टेस्ट भी किए जायेंगे जैसे- छाती का एक्स-रे, ब्लड टेस्ट आदि। यदि रोगी को अन्य चिकित्सा संबंधी समस्याएं है, तब यूरिनलिसिस टेस्ट कराने की सलाह भी चिकित्सक दे सकते है।
ज्यादातर मोतियाबिंद सर्जरी के बाद रोगी को जल्द ही छुट्टी दे दी जाती है, इसलिए रोगी के साथ किसी अन्य व्यक्ति को भी होना चाहिए, जो सर्जरी के बाद उन्हें घर ले जाए।सर्जरी के दिन नेत्र सर्जन पूर्व-सर्जिकल टेस्ट्स की समीक्षा करेगा और पतला आई ड्रॉप, एंटीबायोटिक ड्रॉप्स और एक कॉर्टिकोस्टेरॉइड या नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रॉप नेत्र में डालेगा।
सर्जरी के दौरान दोनों आंखों को आराम से रखने के लिए दोनों आंखों में एनेस्थेटिक आई ड्रॉप डाली जाएंगी।इसके बाद लोकल एनेस्थीसिया ही दिया जाएगा। रोगी के कंधें और सिर पर स्टेराइल पर्दे लगाए जाते हैं। हालांकि आपको अभी भी लेटने और हल्के ओवरहेड पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता होगी। पलकें खुली रखने के लिए एक स्पेकुलम भी डाला जाता है।
फेकमूल्सीफिकेशन नीडल स्पेसिफिकेशन्स: EyeMantra
सर्जरी के बाद-
सर्जरी के तुरंत बाद रोगी को निगरानी के लिए आउट पेशेंट रिकवरी एरिया में इंतजार करने के लिए भेजा जाता है। आपको कम से कम 24 घंटे आराम करने की सलाह दी जाएगी। जब आपको फॉलो-अप के लिए नेत्र अस्पताल दिल्ली लौटने के लिए कहा जाएगा। सर्जरी के दिन केवल हल्का भोजन करने की सलाह दी जाती है। आपको सर्जरी के बाद भी थोड़ी-सी नींद का अहसास हो सकता है। इसके अलाव आप आंखों में हल्का खिंचाव या परेशानी भी महसूस कर सकते हैं।
आमतौर पर, दर्द से राहत के लिए कुछ ओवर-द-काउंटर दवाओं की भी सलाह दी जा सकती है, लेकिन आपको इससे पहले डॉक्टर से जांच करवानी चाहिए।यदि आप किसी अन्य दुष्प्रभाव का अनुभव करते हैं उदाहरण के लिए, गंभीर दर्द, मितली या उल्टी, तो आपको तुरंत अपने सर्जन को इसकी सूचना देनी चाहिए। ठीक होने के दौरान आप अपनी आंखों में कुछ बदलाव महसूस कर सकते हैं। कुछ रोगियों को काले धब्बे भी दिखाई देते हैं, लेकिन ये सर्जरी के बाद कुछ ही हफ्तों में गायब हो जाते हैं। डिस्चार्ज के बाद आपको आंखों में खुजली का अहसास भी हो सकता है। मरीजों अपनी आंखों को राहत पहुंचाने के लिए और अपनी पलकों पर से किसी भी कण को हटाने के लिए 15 मिनट में एक बार गर्म और नर्म कपड़े का उपयोग कर सकते हैं। इन कणों को धीरे से नरम टीशू या कपड़े से साफ किया जाना चाहिए, न कि उंगलियों से। आप दर्द और प्रकाश के प्रति थोड़े से सेसिटीव हो सकते हैं।
कुछ रोगियों में हल्की चोट के भी लक्षण देखने को मिलते है, जोकि आंखों के ठीक होने के साथ ही ठीक हो जाती है।सर्जरी के अगले दिन मरीजों को नेत्र अस्पताल आने के लिए कहा जाता है। आपका नेत्र विशेषज्ञ आईओएल से इंफेक्शन रोकने और दबाव को कंट्रोल करने के लिए आंखों के कवर को हटा देगा और एक आई ड्रॉप का निर्धारण करेगा। सर्जरी के बाद लगभग एक महीने तक इन आई ड्रॉप्स का इस्तेमाल आपको करना पड़ेगा। अगला टेस्ट आमतौर पर सर्जरी के बाद 1 सप्ताह, 3 सप्ताह और 6 से 8 सप्ताह में होता है। इस बीच, आपको 1 से 2 सप्ताह तक सोते समय आंखों को ढकने की सलाह दी जाएगी और आँखों को मलने के लिए मना किया जाएगा।
इस समय के दौरान आपको आकस्मिक रगड़ या टकराने से संभावित आंखों के आघात को रोकने के लिए विशेष स्पेशल टींटेड सनग्लासेज और वर्तमान प्रिस्क्रिप्शन पर लिखे हुए चश्में को पहनने के लिए कहा जा सकता है। अन्य प्रकार के मोतियाबिंद एक्सट्रैक्शन के विपरीत रोगी फेको सर्जरी करवाने के लगभग तुरंत बाद सामान्य गतिविधियां फिर से शुरू कर सकता हैं। आंखें पूरी तरह से ठीक हो जाने के बाद आपको कम से कम निकट दृष्टि के लिए नए करेक्टीव लेंस की जरुरत पड़ सकती है।
नेत्र विशेषज्ञ
ऑपरेशन की सफलता के लिए सही नेत्र सर्जन का चयन महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस सर्जिकल तकनीक में विशेषज्ञता ही मोतियाबिंद सर्जरी के परिणामों में मुख्य निर्णायक कारक है। फेकमूल्सीफिकेशन सर्जरी एक जटिल विधि है, जोकि सर्जरी करने वाले डॉक्टर के सर्जिकल कौशल और अनुभव पर निर्भर करती है। यह आवश्यक है कि आप एक ऐसा डॉक्टर चुनें जिसके साथ आप आराम से अपनी चिकित्सीय स्थितियों पर चर्चा कर सकें। एक अच्छा नेत्र रोग विशेषज्ञ सर्जरी के जोखिमों और लाभों के बारे में विस्तार से बताएगा, और आपकी आंखों के स्वास्थ्य और विजन की आवश्यकताओं के बारे में भी एक सफल फैसला लेने में आपकी सहायता करेगा।
अस्पताल
सही अस्पताल का चयन करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह एक अच्छे ऑपरेशन थियेटर की सुविधा भी मुहैया करवाता है। बेस्ट आई हॉस्पिटल इंफेक्शन से सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए किसी भी संभावित संदूषण से मुक्त होना चाहिए। यही सुखद परिवेश मरीज के अनुभव में कल्याण की भावना पैदा करेगा।
तकनीक और लेंस
आई स्पेशलिस्ट यह निर्धारित करेगा कि कौन सी सर्जिकल प्रक्रिया पूरी तरह से आई टेस्टिंग के बाद ही वांछित परिणाम देगी। प्रीमियम आईओएल इम्पलांट्स बेहतर ऑपटीक प्रदान करते हैं, इसलिए वे आमतौर पर बेहतर विजन रिजल्ट्स प्राप्त करते हैं। वे ऑप्टिकल अनियमितताओं को कम करते हैं और दृष्टिवैषम्य सहित कुछ अपवर्तक त्रुटियों को भी बेअसर करते हैं।
आँख की स्थिति
अंतिम, लेकिन सर्जिकल सफलता का सबसे कम निर्धारक नहीं, आपकी आंख का स्वास्थ्य है। यदि रोगी किसी अन्य नेत्र रोग जैसे कॉर्नियल अपारदर्शिता और बीमारियों से पीड़ित नहीं है, तो रेटिना संबंधी विकार जैसे उम्र से संबंधित मैक्यूलर डिजनरेशन, ग्लूकोमा इन मामलों में सर्जरी का परिणाम बहुत अच्छा रहता है। इसके अलावा ट्रांसप्लांट के लिए उपयुक्त आईओएल चुनकर आमतौर पर पहले से मौजूद अपवर्तक त्रुटियों की भरपाई की जा सकती है।
जोखिम
दुर्लभ से दुर्लभ मामलों में भी जटिलताएं होती हैं। कई बार एक मरीज को घाव से सहज ब्लीडिंग और सर्जरी के बाद होने वाली सूजन का बार-बार का अनुभव होता है। सर्जरी के कुछ सप्ताह बाद भी चमकती, फ्लोटर्स और दोहरी दृष्टि बनी हुई है। ऐसे लक्षणों को तुरंत सर्जन के ध्यान में लाया जाना चाहिए। कुछ समस्याओं का आसानी से इलाज किया जा सकता है, जबकि फ्लोटर्स आदि रेटिना डिटेचमेंट का संकेत हो सकते हैं।
रेटिना डिटेचमेंट एक बहुत ही गंभीर संभावित जटिलता है। रेटिना में कोई कमजोरी होने पर सर्जरी से रेटिना अलग हो जाता है। यह जटिलता कुछ हफ्तों या महीनों के बाद भी महसूस नहीं हो सकती है।
इंफेक्शन एक और संभावित जटिलता है। सबसे गंभीर एक एंडोफथालमिटिस है। यह आईबॉल में ही एक इंफेक्शन के तौर पर पनपता है। किसी समय पर व्यापक रूप से रिपोर्ट की गई यह समस्याएं बेहतर सर्जरी तकनीकों और एंटीबायोटिक दवाओं के कारण आज काफी असामान्य हो गई है।मरीजों को यह भी चिंता हो सकती है कि उनका आईओएल विस्थापित हो सकता है, लेकिन आईओएल के क्षेत्र में नवाचारों में इंट्राओकुलर लेंस विस्थापन की सीमित रिपोर्टें भी हैं।
एक और संभावित जटिलताएं ग्लूकोमा की शुरुआत हैं। यह भी संभावना है कि कैप्सूल के बचें हुए भाग में एक दूसरा मोतियाबिंद विकसित हो जाए। यह समस्या सर्जरी के एक से दो साल भी पैदा हो सकती है। YAG कैप्सुलोटॉमी का उपयोग अक्सर माध्यमिक मोतियाबिंद के लिए किया जाता है। इस आउट पेशेंट प्रक्रिया में एक लेज़र का उपयोग होता है और इसके लिए किसी चीरे की आवश्यकता नहीं होती है। लेज़र लेंस के शेष भाग में एक छोटा सा ओपनिंग बनाया जाता है, जिससे प्रकाश को प्रवेश करने की जगह मिलती है।
गौरतलब है कि इस तकनीक के नुकसान कम हैं,परंतु इसके अलावा इससे जुड़ी ज्यादातर मशीन और इंस्ट्रूमेंटेशन की लागत और उपलब्धता एक मुख्य समस्या है।
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