Contents
बच्चों की शुरुआती आंखों की जांच (Early Eye Test) से उनकी आंखों के स्वास्थ्य का अंदाज़ा लगाया जाता है, जो एक नेत्र रोग विशेषज्ञ (ophthalmologist) या एक ऑप्टोमेट्रिस्ट (optometrist) द्वारा किया जाता है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि छोटे बच्चों की आंखों का टेस्ट उनके जन्म के बाद से ही शुरू हो जाना चाहिए।
अगर उनकी आंखों की जांच में देरी की जाती है, तो उन्हें आने वाले समय में चश्मा लग सकता है और चश्मा लगने के बाद उनके चश्मे का नंबर लगातार बढ़ता चला जाता है। बच्चे अपने शुरुआती जीवन में आंखों से देखकर ही सबकुछ सीखते हैं। इसलिए बच्चों का अर्ली आई टेस्ट और नियमित आंखों की जांच होना बहुत ज़रूरी है।
बच्चों की ऑंखों में ये आम समस्याएं हैं जो अक्सर देखने को मिलती हैं, जैसे
भेंगापन को स्क्विंट (Squint) या क्रास-आईज़ (Crossed-Eyes) या लेज़ी-आईज़ (Lazy-Eyes) भी कहते हैं। इसमें दोनों ऑंखें अलग-अलग दिशाओं में इशारा करती हैं। एक ऑंख सीधे इशारा करते वक्त दूसरी ऑंख अंदर, बाहर, ऊपर या नीचे की तरफ इशारा कर सकती है। यह हर समय हो सकता है या आ और जा सकता है। वक्त रहते इलाज करने पर ही इसका असर होता है, जिसमें चश्मा, पैचिंग और व्यायाम शामिल होते हैं।
एंब्लियोपिया भेंगापन, रिफरेक्टिव एरर्स या मोतियाबिंद का कारण होता है। इस स्थिति में एक ऑंख दूसरी ऑंख की तरह स्पष्ट तस्वीर नहीं दिखा पाती। ठीक से या समय पर इलाज नहीं किये जाने से दृष्टि खराब होने भी संभावना होती है, जिसका इलाज चश्मे या पैचिंग से किया जाता है।
दृष्टिवैषम्य/एस्टिग्मेटिज्म बचपन में होने वाला एक सामान्य नेत्र रोग है, जो दृष्टि धुंधली बनाता है। यह स्थिति कॉर्निया के असमान आकार या कभी-कभी ऑंख के अंदर लेंस की वक्रता की वजह से होती है। एक असमान आकार का कॉर्निया या लेंस प्रकाश को रेटिना पर ठीक से फोकस करने से रोकता है, जिससे दृष्टि किसी भी दूरी से धुंधली हो जाती है। इससे ऑंखों पर दबाव पड़ने से सिरदर्द हो सकता है। एस्टिग्मेटिज्म अक्सर अन्य दृष्टि रोगों जैसे मायोपिया और हाइपरोपिया के साथ होता है। ये दृष्टि स्थितियां रिफरेक्टिव त्रुटियों से जुड़ी हैं, क्योंकि ऐसे में ऑंखें झुकती हैं या प्रकाश को रिफरेक्टिव करती हैं।
एक व्यापक ऑप्टोमेट्रिक टेस्ट में दृष्टिवैषम्य के लिए टेस्ट शामिल होगा। ज़रूरी होने पर आपका ऑप्टोमेट्रिस्ट आपको चश्मा या कॉन्टैक्ट लेंस दे सकता है, जो ऑँखों में प्रकाश के जाने के तरीके को बदलकर दृष्टिवैषम्य में सुधार करता है। धुंधली दृष्टि इसका सामान्य लक्षण है।
किसी भी उम्र में होने वाला एपिफोरा एक या दोनों ऑंखों में समस्या पैदा कर सकता है। ऑंखों में पानी आने के दो मुख्य कारण होते हैं, पहला ऑंसू नलिकाओं का बंद होना और दूसरा ज़्यादा ऑंसू निकलना। एपिफोरा लैक्रिमल ड्रेनेज की हानि की वजह से आँसू के ज़्यादा बहने का संकेत देता है। यह ऑंसू उत्पादन और ऑंसू हानि के बीच संतुलन में गड़बड़ी की वजह से होता है। एपिफोरा अक्सर फिल्म देखने और ऑंखों की सतह की कठिनाइयों से होता है, न कि लैक्रिमल ड्रेनेज की शारीरिक रुकावट के कारण। कंजक्टिवोचालासिस (Conjunctivochalasis) ऊपरी लैक्रिमल सिस्टम एपिफोरा की एक कम-मान्यता प्राप्त स्थिति है, जिसके लक्षणों में ऑंखों की रोशनी में कमी, ऑंखों के आसपास सूजन और ऑंखों में रेडनेस शामिल हैं।
हाइपरोपिया को दूरदर्शिता (farsightedness) भी कहते हैं। यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें एक बच्चा आसपास की वस्तु से ज़्यादा दूर की वस्तुओं को साफ देख सकता है। हाइपरोपिया की यह स्थिति खास हाइपरमेट्रोपिया पर लागू होती है। इसमें दूरदर्शी (farsighted) लोगों को आमतौर पर सिरदर्द या ऑंखों में खिंचाव होता है। इसके अलावा पास की सीमा में काम करते समय भेंगापन (squint) या थकान महसूस हो सकती है। ऑंख में जाने वाली प्रकाश किरणें इसके पीछे की बजाय सीधे रेटिना पर केंद्रित होने की वजह से यह दृष्टि कठिनाई होती है। दूरदर्शी व्यक्ति की ऑंख की पुतली सामान्य से कम होती है। इसके लक्षणों में ऑंखों में खिंचाव और सिरदर्द शामिल हैं।
बाल रोग मोतियाबिंद बचपन के अंधेपन की वजह से होता है, जिसे पीडियाट्रिक कैटरेक्ट भी कहते हैं। बाल मोतियाबिंद से जुडे़े अंधेपन को समय रहते और उचित प्रबंधन से ठीक किया जा सकता है। ज्यादातर मामलों का निदान नियमित जांच में किया जाता है, जबकि कुछ की पहचान माता-पिता के ल्यूकोकोरिया (leukocoria) या स्ट्रैबिस्मस (strabismus) देखने के बाद की जा सकती है। रिस्क फैक्टर में ग्लूकोमा, रेटिना डिटेचमेंट, इंफेक्शन और ज़्यादा सर्जरी की मांग शामिल है। सर्जरी के बाद बच्चों को अक्सर कॉन्टैक्ट लेंस, ऑंखों में डाले गए इंट्राओकुलर लेंस या चश्मे के कुछ क्रम की ज़रूरत होती है। एंबीलिया होने पर बच्चे को पैचिंग की ज़रूरत हो सकती है। इस इलाज में कमजोर ऑंख में दृष्टि को उत्तेजित करने के लिए मजबूत ऑंख को ढका जाता है। इसके लक्षणों में ग्रे या सफेद धुंधली पुतली, लाल आँख (रेड आई) और निस्टागमस शामिल हैं।
मायोपिया एक अपवर्तक (refractive) त्रुटि है, जिसे बच्चों में अक्सर एक नेत्र रोग के रूप देखा जाता है। मायोपिया ऑंख के प्रकाश को ठीक से रिफरेक्ट नहीं करने से होता है, जिससे छवियां स्पष्ट नहीं होती। मायोपिया में पास की चीजें साफ और दूर की चीजें धुंधली दिखती हैं। मायोपिया शब्द मायोपिया वाले लोगों को दूर की वस्तुओं को देखते वक्त पलकों को आधा बंद करने की आदत के कारण जोड़ा गया था, ताकि उन्हें स्टेनोटिक स्लिट का सहारा मिल सके। ऐसा तब होता है जब नेत्रगोलक (eyeball) बहुत बड़ा हो या कॉर्निया बहुत गोल हो। नतीजतन ऑंख में प्रवेश करने वाली रोशनी सही ढंग से समायोजित नहीं होती और दूर की चीजें धुंधली दिखाई देती हैं। अपवर्तक सर्जरी चश्मे या कॉन्टैक्ट की ज़रूरत को कम कर सकती हैं। बल्ड शुगर लेवल में बदलाव, ऑंखों में खिंचाव और सिरदर्द के लक्षणों वाले मायोपिया की सबसे लोकप्रिय प्रक्रियाओं को एक्साइमर लेजर के साथ किया जाता है।
रेटिना में एक मुख्य धमनी और एक मुख्य नस होती है। इस नस को केंद्रीय रेटिना शिरा/नस कहते हैं। सीआरवीओ (CRVO) इस नस की रुकावट है, जो रक्त और ज़्यादा तरल पदार्थ को रेटिना में भेजने के लिए नस बनाता है। यह द्रव अक्सर मैक्युला नामक केंद्रीय दृष्टि के लिए निहित रेटिना के क्षेत्र में मिलता है। मैक्युला के हिट मारे जाने से केंद्रीय दृष्टि धुंधली हो सकती है। सीआरवीओ 2 प्रकार के होते हैं- इस्केमिक सीआरवीओ (Ischemic CRVO) और नॉन-इस्केमिक सीआरवीओ (Non-Ischemic CRVO) जो बच्चों में नेत्र रोग का कारण हो सकता है।
बच्चे का पहला आई टेस्ट जन्म के पहले 6 महीनों में कराया जाना चाहिए, जिसके बाद हर 3 साल में बच्चे की ऑंखों की जांच करानी चाहिए। स्कूल में हर दो साल में ऑंखों की जांच कराई जानी चाहिए।
अगर आपके बच्चे में कोई अपवर्तक त्रुटि या दृष्टि संबंधी अन्य समस्याएं हैं, तो उनकी ऑंखों की जांच कुछ वर्षों में या आपके नेत्र रोग विशेषज्ञ द्वारा बताए अनुसार की जानी चाहिए।
दृष्टि समस्याओं वाले बच्चों को आंखों की जांच की ज़रूरत तब पड़ती है जब उनमें यह लक्षण होंते हैं, जैसे-
नेत्र रोग विशेषज्ञों/ऑप्थामोलोजिस्ट को खासतौर से बाल रोगियों की जांच के लिए प्रशिक्षित किये जाते हैं। जिन बच्चों ने बोलना शुरू नहीं किया है उनके लिए अक्सर खास उपकरण और तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है, जिनमें बच्चे की प्रतिक्रिया की ज़रूरत नहीं होती है। ये सभी प्रक्रियाएं दर्द रहित होती हैं, जिसे खास बच्चों के लिए डिज़ाइन किया जाता है।
शिशुओं को ध्यान केंद्रित करने की क्षमता, रंग दृष्टि (कलर विज़न) और गहराई की धारणा के पहलुओं में 6 महीने की उम्र तक किसी बड़े बच्चे जितनी दृष्टि होनी चाहिए। इनकी जांच के लिए ऑप्थामोलोजिस्ट इन टेस्ट का इस्तेमाल करते हैंः
आपके बच्चे की ऑंखों की जांच के लिए सबेस अच्छा हॉस्पिटल कौन सा है?
आपके बच्चे की ऑंखों की देखभाल के लिए आई मंत्रा आई सेंटर बेस्ट आई क्लिनिकल है और दिल्ली के कुछ शीर्ष बाल रोग विशेषज्ञ, जो बच्चे के समग्र विकास के लिए स्वस्थ ऑंखों और अच्छी दृष्टि के महत्व को समझते हुए हमारे साथ काम करते हैं। पीडियाट्रिक ऑप्थल्मोलॉजी विभाग में वातावरण हमेशा सुकून भरा होता है और स्टाफ हमेशा बच्चों के साथ खेलने के लिए उत्सुक रहता है, जिससे आपके बहुमूल्य बच्चे की दिक्कत और परेशानी मुक्त ऑंखों की जांच सुनिश्चित होती है।
आंखों से जुड़ी अधिक जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट eyemantra.in पर जाएं। आई मंत्रा में अपनी अपॉइंटमेंट बुक करने के लिए +91-9711115191 पर कॉल करें या हमें eyemantra1@gmail.com पर मेल करें। हम रेटिना सर्जरी, चश्मा हटाने और मोतियाबिंद सर्जरी सहित कई अन्य सेवाएं भी प्रदान करते हैं।