मोतियाबिंद(Cataract)

बूढ़ा मोतियाबिंद- लक्षण, उपचार और साइड इफेक्ट- Senile Motiyabind- Lakshan, Parikshan, Upchar aur Side Effect

बूढ़ा मोतियाबिंद क्या है?- Senile cataract in Hindi

बूढ़ा मोतियाबिंद की बात करे तो यह एक विजन इम्पेरिंग बीमारी है जो उम्र बढ़ने के कारण होता है, और ये ज्यादातर वृद्धावस्था रोगी
या 50 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोगों को असर करता है। इस स्थिति में आंखों के लेंस में बादल छा जाते हैं या लेंस मोटा हो जाता है, जिससे विजन में कमी आने से समय के साथ धीरे-धीरे खराब होती जाती है। बूढ़ा मोतियाबिंद में आंशिक रूप से या पूरे तरीके से ब्लाइंड होने के संभावना है, अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया। वास्तव में ये मोतियाबिंद दुनिया भर में दृष्टि हानि का मुख्य कारण में से एक है।

बूढ़ा मोतियाबिंद के लक्षण- Symptoms of Senile Cataract in Hindi

अगर बूढ़ा मोतियाबिंद के लक्षण की बात करे तो ऐसे रोगी में अक्सर रात की और पास की विजन में धीरे-धीरे गिरावट और गड़बड़ी देखी जाती है. बूढ़ा मोतियाबिंद के मुख्य लक्षण में शामिल हैं:

विजुअल अकुटी में कमी (Decreased visual acuity)

बूढ़ा मोतियाबिंद के रोगी को चकाचौंध की सबसे ज्यादा आम शिकायत है. इसमें रोगी को चमकदार रोशनी वाले वातावरण में कंट्रास्ट संवेदनशीलता की कमी होती है. या फिर रात के दौरान रात में हेडलाइट्स की रोशनी तक बर्दाश्त नहीं हो पाती है।

मायोपिक शिफ्ट (Myopic shift)

मोतियाबिंद की प्रगति अक्सर अपरोपोस्टीरियर ऐक्सिस को बढ़ाती है और इसलिए ताले की डायोप्ट्रिक पावर, जिसके परिणाम से मायोपिक या मायोपिक शिफ्ट मामूली से मध्यम डिग्री में बढ़ जाती है।

मोनोकुलर डिप्लोपिया (Monocular diplopia)

कभी-कभी परमाणु परिवर्तन होने से लेंस के आतंरिक सतह में रहते हैं। जिसके परिणाम में लेंस के केंद्र में एक रेफ्रैक्टिल क्षेत्र होता है, जिसे “लेंस के अंदर लेंस” कहते है। और इसका परिणाम ये है की जिससे मोनोकुलर डिप्लोपिया हो सकता है। साथ ही इसे चश्मे से, प्रिज्म से या कांटेक्ट लेंस से ठीक नहीं किया जा सकता है। 

सेनाइल मोतियाबिंद के अन्य लक्षणों में शामिल है:

  • तेज रोशनी में देखने में परेशानी होना।
  • अकसर रोगी के आंखों के लेंस में काले धब्बे भी देख सकते है।

बूढ़ा मोतियाबिंद का निदान- Diagnose of Senile Cataract in Hindi

एक पूर्ण नेत्र परीक्षा करने के लिए पास की और दूर की विजुअल अकुटी से शुरुआत करेंगे। जब रोगी चमक की शिकायत करेगा तो तेज रोशनी वाले कमरे में विजुअल अकुटी का टेस्ट किया जाएगा। इसके साथ कंट्रास्ट संवेदनशीलता भी जाँच करेंगे सेनाइल मोतियाबिंद के निदान में शामिल हैं: 

ओकुलर एडनेक्सा और इंट्राओकुलर संरचनाओं की जांच(Examination of the ocular adnexa and intraocular structures)

ओकुलर एडनेक्सा और इंट्राओकुलर स्ट्रक्चर की जांच करेंगे, ताकि रोगी के मोतियाबिंद एटियलजि से जुड़ी बिमारी को और अंतिम दृश्य पूर्वानुमान को पता कर सके। 

स्विंगिंग टॉर्च परीक्षण(Swinging flashlight test)

इस परक्षिण में मार्कस गुन्न पुतली या सापेक्ष अभिवाही पुतली में दोष का पता लगाते है. जो नेत्र- संबंधी तंत्रिका के घावों को और रेटिना कितना फैला हुआ है, उसको बताता है. 

स्लिट लैंप(Slit Lamp)

स्लिट लैंप एक विशेष प्रकार का माइक्रोस्कोप है जो आपकी आंख को बड़ा करता है। आपके हेल्थ प्रोवाइडर मोतियाबिंद देखने और यह तय करने मदद करता है कि यह कितना गंभीर है। इस टेस्ट के दौरान आप अपनी ठुड्डी को चिनरेस्ट के स्लिट लैंप पर रखेंगे। आपका हेल्थ प्रोवाइडर आपकी आंख पर प्रकाश डालेगा और हेल्थ प्रोवाइडर से देखेगा।

परमाणु आकार और ब्रुनेसेंस की जांच(Examination of nuclear size and brunescence)

इस टेस्ट में फैलाव के बाद, परामाणु का आकार और ब्रुनेसेंस को मोतियाबिंद घनत्व के सूचक के रूप में देखा जाता है, जिसे फेकमूल्सीफिकेशन सर्जरी से पहले तय किया जा सकता है.

प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष नेत्रगोलक (Direct and indirect ophthalmoscopy)

इस टेस्ट में सत्यता को मूल्यांकन करने के लिए पश्च ध्रुव ओकुलर(posterior pole Ocular) इमेजिंग को पढ़ाते है, जैसे कि अल्ट्रासोनोग्राफी(ultrasonography), CT Scan, या MRI तब किया जाता है जब एक जरूरी पोस्टीरियर पोल पैथोलॉजी का संदेह होता है और आंख के पिछले हिस्से की नज़र मोतियाबिंद की वजह से साफ नहीं होता है.

बूढ़ा मोतियाबिंद का इलाज- Treatment of senile cataract in Hindi

मोतियाबिंद के लिए सर्जरी ही एकमात्र प्रभावी उपचार है, जहां दोषपूर्ण आंख के लेंस को सर्जिकली हटा दिया जाता है और एक कृत्रिम लेंस के साथ बदल दिया जाता है. नेत्र रोग विशेषज्ञ के निदान करने से मोतियाबिंद की मौजूदगी का पता किया जाएगा. आमतौर पर मोतियाबिंद के शुरुआती चरणों के लिए सर्जरी का सुझाव नहीं दिया जाता है.

निदान की प्रक्रिया के दौरान नेत्र परीक्षण किए जाते है, ताकि विजुअल अकुटी और स्थिति का विश्लेषण किया जाता है की कितना गंभीर है.

मोतियाबिंद के चरण और रोगी की दृष्टि संबंधित जरूरतों पर विचार करने के बाद ही सर्जरी तय की जाएगी। सबसे अधिक use की जाने वाली शल्य चिकित्सा पद्धति को ‘फेकमूल्सीफिकेशन’ कहा जाता है, जो एनेस्थेसिया के प्रभाव में किया जाता है। इस विधि में शामिल हैं: 

  • रोगी को एनेस्थेसिया दिया जाता है, या तो इसे प्रभावी आंख के पास इंजेक्ट करके या तो एनेस्थेटिक आई ड्रॉप का उपयोग करके दिया जाता है.
  • आंख में अन्य महत्वपूर्ण साधन को डालने की सुविधा के लिए कॉर्निया में छोटे चीरे लगाए जाते हैं.
  • विशिष्ट शल्य चिकित्सा उपकरणों का उपयोग करके, लेंस कैप्सूल में एक छोटा सा छेद बनाया जाता है, जो कि लेंस को पकड़ के रखने वाली झिल्ली होती है.
  • फिर अल्ट्रासॉनिक डिवाइस का उपयोग लेंस को तरल में पायसीकारी करने के लिए किया जाता है. फिर पायसीकारी तरल को लेंस कैप्सूल के छेद से बाहर निकाला जाता है.
  • एक आर्टिफिशल लेंस को अंत में लेंस कैप्सूल में इम्प्लांट किया जाता है.
  • कॉर्निया में चीरे के घाव पर नमक का पानी लगाया जाता है, क्योंकि इससे सूजन हो जाती है और चीरे को सील करने में मदद मिलती है.
  • सर्जरी में एक घंटे से भी कम समय लगता है, और यदि कोई जटिलता पैदा करना नहीं होती है तो रोगी को उसी दिन छुट्टी दी जा सकती है. दूसरे सर्जिकल तरीके हैं, जैसे इंट्राकैप्सुलर मोतियाबिंद निष्कर्षण (Intracapsular cataract extraction) और एक्स्ट्राकैप्सुलर मोतियाबिंद निष्कर्षण (Extracapsular cataract extraction).

लेकिन इनका उपयोग आमतौर पर फेकमूल्सीफिकेशन की तुलना में नहीं किया जाता है क्योंकि इन तरीकों में आंखों में बड़े चीरों को काटने की जरूरत होती है, जबकि फेकमूल्सीफिकेशन बहुत छोटे चीरों को बनाकर किया जा सकता है.

बूढ़ा मोतियाबिंद का दुष्प्रभाव- Side effects of senile cataract in Hindi

आखिर में जानेंगे की मोतियाबिंद निकालने के लिए सर्जरी कराने वाले मरीजों को बाद में कुछ दुष्प्रभाव का अनुभव हो सकता है, जैसे,

  • सामान्य एनेस्थेटिक साइड इफेक्ट्स जैसे चक्कर आना, जी मिचलाना और सांस की तकलीफ
  • आंख में हल्की सूजन आना
  • आंख में हल्का दर्द होना या बेचैनी होना
  • आंखों में आंसू आना या खुजली का अहसास होना
  • चमकदार रोशनी के प्रति संवेदनशीलता
  • आँख में तरल पदार्थ का जमना

ये साइड इफेक्ट सर्जरी के बाद एक या दो हफ्तों से अधिक नहीं रहते हैं. अगर कोई साइड इफेक्ट ज्यादा समय तक बना रहता है, तो तुरंत डॉक्टर या सर्जन से परामर्श करें. किसी भी अन्य शल्य प्रक्रिया की तरह इलाज के बाद सही देखभाल नहीं की जाती तब भी संक्रमण की संभावना हो सकती है.

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