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आमतौर पर कंजक्टिवाइटिस (Conjunctivitis) को “गुलाबी आंख” या “लाल-आंख” और “आंख आना” भी कहते हैं। इसके सामान्य लक्षणों में खुजली, आंखों में जलन, दर्द या सिरदर्द जैसी समस्याएं आती हैं। कंजक्टिवाइटिस वाले लोगों की आंखों में सूजन और नेत्रगोलक यानि आईबॉल की पतली झिल्ली पर रेडनेस होती है, जिसे कंजक्टिवा कहा जाता है। सूजन से आंखों में जलन या पानी/मवाद जैसा स्राव भी हो सकता है और कभी-कभी इसमें लोगों को दर्द, सर्दी-खांसी, हल्के या गंभीर बुखार के साथ वायरल इंफेक्शन भी हो सकता है।
कंजक्टिवाइटिस आसानी से लोगों की एक आंख से दूसरी आंख में फैल जाता है, इसलिए अक्सर इसमें अपनी आंखों को हाथों से नहीं छुने की सलाह दी जाती है, क्योंकि हाथों में मौजूद गंदगी अनजाने में आपकी आंखों में जाने से आंखों की समस्या बढ़ सकती है। आंखों में मौजूद बैक्टीरिया आपके हाथ में प्रवेश करके आपके आसपास मौजूद लोगों में फैलता है। ऐसे में गलती से भी आँख को छूने पर हाथों को तुरंत धोने जैसी बातों का खास ख्याल रखना चाहिए। कंजक्टिवाइटिस कई प्रकार के होते हैं, जिनका इलाज अलग-अलग तरीकों से किया जाता है।
गुलाबी आंख के अलग-अलग प्रकार निम्नलिखित हैं, जैसे-
वायरल कंजक्टिवाइटिस से हल्का बुखार, सर्दी या खांसी हो सकती है। ऐसे कंजक्टिवाइटिस आसानी से ड्रॉपलेट्स के ज़रिए लोगों में फैलते हैं यानि आपके आस-पास किसी के छींकने या खांसने से आपकी आंखें ड्रॉपलेट के संपर्क में आ जाती हैं। वायरल कंजक्टिवाइटिस स्व-सीमित हैं, इसलिए उनके बारे में जोर देने के बजाय आपको बस वायरस को अपना काम करने देना चाहिए।
वायरल कंजक्टिवाइटिस एक वायरस है, इसलिए इसका कोई इलाज नहीं है। हालांकि इससे हुई सूजन को कम करने के लिए आप गर्म सेक (warm compresses) का इस्तेमाल कर सकते हैं, क्योंकि अक्सर इसमें मलहम या किसी अन्य समाधानों का इस्तेमाल नहीं करने की सलाह दी जाती है। इस पर ठीक से ध्यान नहीं देने से इसके एक आंख से दूसरी आंख में तेजी से फैलने की संभावना काफी बढ़ जाती है, जो इस बीमारी को ज़्यादा वक्त के लिए बढ़ा सकता है।
वायरल कंजक्टिवाइटिस के गंभीर मामलों में रोगी में फोटोफोबिया विकसित हो सकता है और झिल्ली में सूजन की वजह से किसी बाहरी चीज़ जैसी अनुभूति या केमोसिस मौजूद हो सकता है। कंजंक्टिवाइटिस के ठीक हो जाने के बाद भी कुछ वक्त तक सबपीथेलियल कॉर्नियल ऑपेसिटीज़ बनी रह सकती है।
आमतौर पर बैक्टीरियल कंजक्टिवाइटिस तेज़ होता है, जो बड़े तौर पर मॉर्बिडिटी से जुड़ा नहीं होता, लेकिन इसका सामाजिक खतरा होना स्कूल और कार्यालय के दिनों में छूटने के लिए चिंता की बड़ी वजह है। जीवाणु कंजक्टिवाइटिस के तेज़ होने का मुख्य कारण स्टैफिलोकोकस ऑरियस, स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनिया और हीमोफिलस इन्फ्लुएंजा हैं।
इसमें होने वाली सबसे बड़ी समस्या आंखों से मवाद का निकलना है, जिसके लिए लोगों को डॉक्टर से परामर्श करने और ज़रूरी उपचार लेने की सलाह दी जाती है। आमतौर पर लोगों को होने वाली कई प्रकार की समस्याओं के आधार पर कुछ एंटीबायोटिक आई ड्रॉप या मलहम बताए जाते हैं। दूसरों के साथ पर्सनल सामान का लेनदेन, गंदे हाथों से आंख को छूना, गंदे या पुराने मेकअप का इस्तेमाल या इसे रात भर छोड़ देना बैक्टीरियल पिंक आई होने का सबसे बड़ा कारण है।
एंटीबायोटिक दवा के इस्तेमाल से कुछ दिनों में ही आपके लक्षण गायब हो जाएंगे। बैक्टीरियल पिंक आई होने का सबसे आम तरीका है:
एलर्जी कंजक्टिवाइटिस पराग या घास की धूल जैसी कई एलर्जी की वजह से होता है। एलर्जी वाले लोगों में ऐसी निश्चित आंखों की सूजन आमतौर पर साल में एक निश्चित समय में होती है, जबकि इसकी सबसे अधिक संभावना गर्मी या गिरावट के दैरान होती है। हालांकि बारहमासी कंजक्टिवाइटिस वाले लोग अतिसंवेदनशील होने के कारण साल के हर समय इसके संपर्क में आ सकते हैं।
एलर्जी कंजक्टिवाइटिस के प्रमुख लक्षण आंखों में खुजली, जलन और परेशानी है। ऐसे में लोगों को हर वक्त अपनी आंख में धूल या रेत के कण जैसा कुछ होने का अहसास होता है। एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस से जुड़ी पॉज़िटिव बात इसका एक से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलना है और न ही ये ज्यादा गंभीर होता है।
केमिकल या रासायनिक कंजक्टिवाइटिस विषैले पदार्थों के एक फ्लश की वजह से आंख क्लोरीन स्विमिंग पूल की तरह या हानिकारक रसायनों के सीधे संपर्क में आने से होता है, जिसके कभी-कभी खतरनाक साइडइफेक्ट हो सकते हैं। एक प्रयोगशाला प्रयोग से क्षार के जलने जैसे अचानक रासायनिक जोखिम से आंख को भी लंबे वक्त के लिए नुकसान हो सकता है। ऐसी भयंकर अवस्था में बिना देर किए अपनी आंख को कई मिनट तक ताजे पानी से धोएं और फिर तुरंत चिकित्सा देखभाल लें।
रासायनिक कजंक्टिवाइटिस के इलाज के सबसे सामान्य तरीकों में से एक खारा समाधान या सामयिक स्टेरॉयड के साथ है। लेंस पहनने वालों को इस प्रेक्टिस को ठीक होने या रिकवरी तक के लिए स्थगित करने की ज़रूरत पड़ सकती है। ज़्यादातर काम पर होने वाले ऐसे मामले चिकित्सा आपात स्थिति पैदा कर सकते हैं, इसलिए केमिकल्स को संभालते वक्त या सार्वजनिक स्विमिंग पूल में तैरते वक्त भी प्रोटेक्टिव गियर पहनना ज़रूरी है।
गुलाबी आंख का घरेलू उपचार (Home Remedies For Pink Eye)
गुलाबी आंखों के लिए दवाई (Medications For Pink Eye)
आमतौर पर डॉक्टर कई एंटीबायोटिक आई ड्रॉप्स लिखते हैं और वे आपको कंजक्टिवाइटिस या इससे निपटने के लिए आपकी स्थिति के आधार पर दवाएं दे सकते हैं। इसके लिए सबसे ज़रूरी है आपकी आंखों को आराम मिलना। सुनिश्चित करें कि आप डॉक्टर के साथ अपनी अपॉइंटमेंट को बिलकुल मिस न करें, भले ही आपके हिसाब से आप ठीक हो गए हों। अगर आपके डॉक्टर ने ऐसी कोई सलाह नहीं दी है, तो अपनी दवाएं जारी रखें, क्योंकि दवाओं के छूटने से आपकी परेशानी और बढ़ सकती है। ऐसे में आपका इंफेक्शन जड़ से ठीक होने के चान्स कम हो जाते हैं।
गुलाबी आंखों की दवाई के दुष्प्रभाव (Side Effects of Pink Eye Medications)
इसके आम दुष्प्रभावों में आंखों में चुभन या जलन होती है। आंखों पर मरहम लगाने के बाद लोगों को थोड़े वक्त के लिए धुंधली या अस्थिर दृष्टि का अहसास हो सकता है। ज़्यादा गंभीर दुष्प्रभावों में दाने, खुजली, आंखों में जलन, रेडनेस, दर्द, आंखों या नज़दीकी क्षेत्र में सूजन और विज़न से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं।
पिंक आई दवाओं के साइड इफैक्ट्स में आते हैं:
कई लोगों के दवाएं लेने के बाद भी अन्य तरह की दिक्कतें हो सकती है। ऐसे में खुद से कुछ भी करने से पहले हमेशा डॉक्टर से परामर्श की सलाह दी जाती है।
नवजात शिशुओं में कंजक्टिवाइटिस काफी गंभीर हो सकता है, इसलिए इसके लक्षणों का पता लगते ही तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए। नवजात बच्चों में कंजक्टिवाइटिस अवरुद्ध आंसू वाहिनी, जन्म के वक्त दी गई रोगाणुरोधी से जलन या प्रसव के दौरान मां से बच्चे में पहुंचे वायरस या बैक्टीरिया के इंफेक्शन से हो सकता है। प्रसव के वक्त बिना किसी लक्षण वाली माताएं अपने बच्चों में वायरस या बैक्टीरिया को पास कर सकती हैं।
ऐसे में किसी भी गर्भवती महिला को प्रसव से पहले अपनी सेहत को लेकर ज़्यादा सावधानी और सभी चिकित्सा जांच की ज़रूरत होती है। उसे खुद की और अपने आस-पास की साफ-सफाई रखनी चाहिए, क्योंकि इस दौरान इंफेक्शन का खतरा ज़्यादा होता है। बुखार, सर्दी, या किसी दूसरे लक्षणों के दिखने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
इसके अलावा सबसे ज़रूरी है कि दूसरे व्यक्ति के किसी भी उत्पाद या वस्तु के इस्तेमाल से परहेज़ करना। इसलिए उन्हें सलाह दी जाती है कि वे किसी भी ऐसी जगह पर न जाएँ, जहां चारों ओर गंदगी और रेत हो, बल्कि इस दौरान उनसे घर पर रहने और अपनी सेहत पर ध्यान देने की अपेक्षा की जाती है। गर्भावस्था में ज़्यादा दवा नहीं लेने की सलाह भी दी जाती है, क्योंकि यह बच्चे के लिए नुकसानदायक है।
कंजक्टिवाइटिस आंख की उन समस्याओं में से है, जो आमतौर पर कई लोगों को होती है। अगर आपकी आंखें लाल हैं, तो आपको बिना किसी डर के ऊपर बताए गए सभी स्टेप्स फॉलो करने चाहिए। सबसे पहले और सबसे ज़रूरी बातों में यह सुनिश्चित करें कि आप स्वच्छता के पैटर्न का पालन करें और दूसरों से अपनी चीजों का लेनदेन न करें, क्योंकि इससे यह समस्या आसानी से लोगों में फैलती है।
ऑइंटमेंट या आई ड्रॉप लगाने के बाद भी परेशानी कम नहीं होने पर आप तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। इस दौरान नियमित आराम करें और टीवी, लैपटॉप या मोबाइल फोन की स्क्रीन पर ज्यादा वक्त बिताने से बचें, क्योंकि इनसे आपकी दृष्टि को नुकसान हो सकता है। डॉक्टर की सलाह के बिना कोई भी दवा न लें। हाइड्रेटेड रहें और अपनी आंखों को ठंडे पानी से धोते रहें। ऐसा करने से आपको खुजली कम महसूस होगी और यह आंखों में जलन को कंट्रोल करेगी।
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