हमारी आंख में तीन मुख्य भाग होते है. सबसे पहले आता है कॉर्निया या फिर इसे हम काली पुतली कहते है। फिर आता है एक लेंस जो बिलकुल स्पष्ट या शीशे की तरह साफ होता है, फिर एक पर्दा आता है। रोशनी कॉर्निया और लेंस से होकर पर्दे पर पढ़ती है फिर इस पर्दे से एक नर्व तक जाती है। जिसको हम नेत्र-संबंधी तंत्रिका कहते है। उससे होकर जाती है ये नर्व हमारे दिमाग से जुडी होती है। और इससे हम देख पाते है. लेकिन मोतियाबिंद में आंख के अंदर जो लेंस है वो धुंधला पड़ गया है। तो आमतौर पर सफ़ेद परत आँखों में आ गई है तो आंख के अंदर जाने वाली रोशनी कुछ हद तक के लिए वही रुक गई। और इस सफेदी की वजह से, कुछ ही रोशनी पर्दे तक पहुंच रही है। इसलिए आपको धुंधला दिखना शुरू हो गया है। अब दुनिया में कोई भी ताकत इस धुंधले पन को वापिस साफ नहीं कर सकती है। सिर्फ इसलिए मोतियाबिंद का एक ही इलाज है, जोकी सबसे आम मोतियाबिंद सर्जरी है। मोतियाबिंद सर्जरी के प्रकार का उपयोग उन रोगियों में दृष्टि बहाल करने के लिए किया जाता है जिनकी दृष्टि मोतियाबिंद से बादल बन गई है, जो आंख के लेंस का एक बादल बन गया है।
Contents
- 1 कब मोतियाबिंद की सर्जरी करवानी चाहिए?- When should cataract surgery be done?
- 2 मोतियाबिंद सर्जरी की कौन-कौन-सी टैकनोलजी है?- What is the technology of cataract surgery?
- 3 आपकी सर्जरी में जटिलता होने की संभावना कब हो सकती?- When are complications likely to occur in your surgery?
- 4 लेंस के प्रकार- Type of lenses in Hindi
- 5 ज्यादातर लोग मोनोफोकल लेंस ही क्यों लगवाते है?- Why do most people wear monofocal lenses?
- 6 आई मंत्रा – Eye Mantra
कब मोतियाबिंद की सर्जरी करवानी चाहिए?- When should cataract surgery be done?
मोतियाबिंद सर्जरी के ऑपरेशन के दौरान धुंधले लेंस को निकाला जाता है और एक नए कृत्रिम लेंस जोऐक्रेलिक या सिलिकॉन का बना हुआ होता है उसको आंख के अंदर उसकी जगह लगाया जाता है। इससे रोशनी का रास्ता साफ हो जाता है और आपको दिखना शुरू हो जाता है।
पहले क्या होता था की डॉक्टर पहले कहते थे की आंख में मोतिया बनता है तो इंतजार करो की वो मोतिया पक जाए। क्योंकि आपरेशन बड़ा चीरा लगाकर किया जाता था और उसमें बाद में टांके भी आते थे। वो तरीका बहुत ही दर्दनाक तरीका था। अब समय के साथ तकनीक में भी उन्नति आने से टांके वाले आपरेशन से छुटकारा मिल गया है।
आज कल जो सबसे सामान्य तकनीक है इस मोतिया को निकलने की उसको हम लोग कहते है फेको। इस तरह की सर्जरी में आंख में एक छोटा सा चीरा लगाते है। और इस चीरे से एक मशीन जिसे फेको मशीन कहते है। उसकी सुई डालकर अल्ट्रासोनिक तरंगें से मोतिया को तोड़ के पानी बना के सोख कर निकाल देते है।
और फिर इसी छेद से एक कृत्रिम लेंस आंखों में डाल देते है, जोकि मुड़ के तह हो के उसी छोटे से चीरे से अंदर चला जाता है. और अपनी जगह जा के खुल जाता है. प्राकृतिक रूप से ये आपरेशन इतने छोटे से चीरे से होता है तो इस चीरे में किसी टांके की जरूरत नहीं होती। दर्द बहुत काम होता है। ऑलमोस्ट न के बराबर होता है। और इसके परिणाम, दृश्य परिणाम और रिकवरी बहुत ही फास्ट होती है।
मोतियाबिंद सर्जरी की कौन-कौन-सी टैकनोलजी है?- What is the technology of cataract surgery?
आज कल दुनियाभर में फेकमूल्सीफिकेशन तकनीक एक बुनियादी मानक मोतियाबिंद सर्जरी बन गई है। तो मूल रूप से मोतियाबिंद की आपरेशन की बात करते है तो मुख्य 4 तरीके की टैकनोलजी है जिन से आप ऑपरेशन कर सकते है।
मानक फेको या नियमित फेको- Standard Phaco or Regular Phaco
मानक फेको या फिर नियमित फेको में जो चीरा लगता है आंख पर ये चीरा 3.2 मिलीमीटर का होता है. जिसमे से उच्च आवृत्ति अल्ट्रासाउंड सुई डालकर मोतिये को घोल के निकाल देते है. और फिर इसी चीर से एक कृत्रिम लेंस को तह करके अंदर डाल दिया जाता है जो अंदर अंदर जाकर खुल जाता है.
माइक्रो फेको- Micro Phaco
माइक्रो फेको में वहीं सारा सिद्धांत का पालन होता है लेकिन इसमें जो चीरा है अब 3.2 मिलीमीटर से कम हो कर 2 मिलीमीटर का रह जाता है। इसका लेंस भी विषेश प्रकार का होता है, जो बहुत नरम और अत्यधिक फोल्डेबल होते है, ताकि इतने छोटे चीरे से सारा आपरेसन हो जाए।
फेमटो- Femto
इसके बाद जो टैकनोलजी है उसका नाम है फेमटो लेजर असिस्टेड मोतियाबिंद सर्जरी। जिसको संक्षिप्त रूप में फ्लेक्स या ब्लेडलेस मोतियाबिंद सर्जरी या फिर लेजर मोतियाबिंद सर्जरी भी कहा जाता है। अब इसमें नया क्या आया। फेमटो में कुछ कदम जैसे की चीरा बनाने का, लेंस को बांटना यह सब काम लेजर के द्वारा किये जाते है।
जेप्टो- Zepto
फेमटो सर्जरी के जैसे एक और टेक्नोलॉजी आई जिस्का नाम है जेप्टो मोतियाबिंद सर्जरी। जेप्टो मोतियाबिंद सर्जरी की बात करे तो मूल रूप से एक माइक्रो फेको और फेम्टो लेजर की बीच की सर्जरी है जिसमें एक एक कदम जिस कैप्सूलोटॉमी कहते हैं वो कंप्यूटर मार्गदर्शन के अंदर हो जाता है. और बाकी सारा काम माइक्रोफोन से होता है।
आपकी सर्जरी में जटिलता होने की संभावना कब हो सकती?- When are complications likely to occur in your surgery?
अक्सर मोतियाबिंद सर्जरी में जटिलता के सभवाना बढ़ जाते है जब आप मोतियाबिंद का ठीक समय पर आपरेशन ना कराए और ये अंदर ही सख्त और पकता जाए। जैसे की
– मोतियाबिंद या सफेद मोतियाबिंद
– भूरा या काला मोतियाबिंद
– उदात्त मोतियाबिंद (जो अपनी जगह से हिले होते है)
ऐसे मोतियाबिंद में क्या होता है की ज्यादा पकने की वजह से यह आस पास के क्षेत्र से चिपक जाते है। और इतने सख्त हो जाते है की यह सामान्य लेजर से यह यह फेको एनर्जी से टूट नहीं पाते। तो ऐसे में टांके वाली सर्जरी करने की जरूरत पढ़ सकती है, जिससे जटिलता के संभावना बढ़ जाती हैं।
जब भी आप डॉक्टर के पास जांच के लिए जाएंगे तो आपको बताएंगे आपकी आंखों की स्थिति, मोतियाबिंद कौन से चरण पर है, कौन-सी टैकनोलजी आपको सुविधाजनक होगी। लेकिन आज की डेट में माइक्रो फेको एक न्यूनतम मानक सर्जरी मानी जाती है।
लेंस के प्रकार- Type of lenses in Hindi
हमने जाना की कैसे टैकनोलजी लेंस जो खराब हो गया उसको निकालती है। अब जब हम लेंस को निकाल रहे है तो जाहिर है हमने इसको बदल के नया लेंस भी आंख में डालना पढ़ेगा। आजकल उसे होने वाले लेंस को हम मोटे तौर पर 3 श्रेणी में डाल सकते है:
– मोनोफोकल (MonoFocal)
– मल्टीफोकल (Multifocal)
– टोरिक (Toric)
मोनोफोकल (MonoFocal)
मोनोफोकल नाम ही बता रहा है की मोनो मतलब एक फोकल मतलब उसका एक केंद्र है। मतलब जब मोतिबिंद सर्जरी करने के बाद आप मोनोफोकल लेंस को अपनी आंख में डलवाएंगे तो आपको दूर का साफ़ दिखेगा लेकिन नजदीक का काम करने के लिए आपको चश्मा लगाना पढ़ेगा। तो यह मोनोफोकल होता है। और लगभग 95% लोग मोनोफोकल लेंस ही डलवाते है, क्योंकि यह रुख और कठोर
है, इनके साथ सर्जरी काफी किफायती होती है और इनकी स्पष्टता भी अच्छी होती है।
मल्टीफोकल (Multifocal)
तो उसके बाद आता है मल्टीफोकल जिस का मतलब है बहुत सारे केंद्रित क्षेत्र है, इसलिए मल्टीफोकल लेंस में अलग-अलग केंद्र होते है। अब इस मल्टीफोकल में भी 2 तरह की श्रेणी है:
- बाय-फोकल (By-focal- मतलब की दो केंद्र)
- त्रि-फोकल (Tri-Focal- मतलब की तीन केंद्र)
- बाय-फोकल का मतलब है की आपको दूर का और पास का बिलकुल साफ़ दिखे। लेकिन जो मध्यवर्ती दृष्टि है यानि कंप्यूटर वाली नजर वो थोड़ी सी धुंधली हो सकती है।
- अब त्रि-फोकल की बात करे तो आपको दूर का, पास का और मध्यम का तीनो का केंद्र साफ दिखेगा।
टोरिक फोकल (Toric Focal)
अब जो तीसरे किसम के लेंस होते है वो टोरिक लेंस होते है। टोरिक लेंस का मतलब होता है सिलेंडर तो अगर किसी की आंख में सिलेंडर नंबर है तो ऐसे मामले में टोरिक लेंस पसंद किए जाते है। आम तौर पर हमारी आंख में दो नंबर होते है।
गोलाकार संख्या को तो हम जो लेंस डाल रहे है उस लेंस की शक्ति में मोनोफोकल या मल्टीफोकल में निगमित कर सकते है। लेकिन आप की आंख में अगर सिलेंडर नंबर है और नंबर 1 से ज्यादा है तो उचित है की टोरिक लेंस ही डलवाये।
सामान्य आंखों के मुकाबले सिलेंडर नंबर वाले लोगों को नजर खींची हुई दिखती है और उसको धुंधली भी दिख सकती है। अगर सामन्या मोनोफोकल लगवाएंगे तो सिलेंडर नंबर तो ठीक हो जायेगा। लेकिन खिंचाव और धुंधलापन ठीक नहीं होगी। ऐसे रोगी में टोरिक मोनोफोकल लेंस डालने से दूर की नजर स्पष्ट हो जाती है। अगर रोगी बिल्कुल ही चश्मा नहीं चहाते तो टोरिक मल्टीफोकल लेंस भी चुन सकते है पर इसका बजट थोड़ा ज्यादा होता है। इसका शुरूवाती पैकेज ही 65-70 हजार तक आ जाएगा। तो ये अलग-अलग तरह के लेंस होते है।
ज्यादातर लोग मोनोफोकल लेंस ही क्यों लगवाते है?- Why do most people wear monofocal lenses?
अब जानेगे की जब मल्टीफोकल लेंस से तीनों फोकस क्लियर होते है तो 98 प्रतिशत लोग मोनोफोकल लेंस ही क्यों लगवाते है। उसके दो कारण है:
पहला की जो मल्टीफोकल लेंस होते है इसका खर्च मोनोफोकल लेंस के मुकाबले डबल या ट्रिपल होती है।
दूसरा कारण ये है की मोनोफोकल लेंस में जो नजर स्पष्टता चाहे वो दूर की हो या रात को बहुत अच्छी होती है। पर मल्टीफोकल लेंस में रात को रोगी को छल्लें यानि रोशनी के चारों तरफ रंग बिरंगे छल्ले दिखने या चमक यानि आंख में चौंध पढ़ने लगती की शिकायत आ सकती है। तो करीब 100 में से 5 प्रतिशत लोगों को ये छल्ले दिखने की दिक्कत आ जाती है।
हालांकि शरीर कुछ समय में इन छल्लो को अनुकूल कर लेती है। तो ये समय के साथ कम या खत्म हो जाते है। तो ये 2 कारण है जिसके कारण यह लेंस इतने मशहूर नहीं है।
आखिर में एक लेंस की विशेष श्रेणी के बारे में भी आपको बताते है, EDOF यानि फोकस लेंस की विस्तारित गहराई। तो यह लेंस आपको अच्छी दूर की नजर देते है, अच्छी बीच की या मध्यवर्ती दृष्टि देती है। पास की नजर के लिए आपको हल्के नंबर की चश्मा की जरूरत पढ़ सकती है और कुछ मामलें में जरूरत नहीं पढ़ती है। इनकी खास बात यह की इनसे कोई छल्लें, चमक की शिकायत नहीं होती है और नजर की स्पष्टा काफी अच्छी होती है।
आई मंत्रा – Eye Mantra
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