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पीली आंखें किसी व्यक्ति के पीलिया से पीड़ित होने पर होती हैं। कोई व्यक्ति इस बीमारी से तब पीड़ित होता है, जब बहुत ज़्यादा केमिकल की वजह से उसके खून में ऑक्सीजन ले जाने वाला घटक यानी हीमोग्लोबिन टूट जाता है और बिलीरुबिन बनाता है। आमतौर पर बिलीरुबिन को लीवर से पित्त नली में जाकर आपके शरीर से बाहर निकलना चाहिए, लेकिन यह प्रक्रिया नहीं होने पर बिलीरुबिन आपकी त्वचा में फंस जाता है और पीला दिखने लगता है। सामान्य रंग से पीले रंग में बदलना आपकी आंख के सफेद हिस्से यानी श्वेतपटल (स्क्लेरा) में भी दिखाई देता है, जो पीली आंखों का कारण बनता है।
पीली आंखों के कई कारण होते हैं जो इस प्रकार हैं:
हेपेटाइटिस तब होता है, जब कोई वायरस लीवर की कोशिकाओं को प्रभावित करता है और इससे लीवर में सूजन आ जाती है। लीवर में होने वाला यह इंफेक्शन थोड़े या लंबे समय दोनों के लिए हो सकता है यानी यह कम से कम 6 महीने तक चल सकता है। हेपेटाइटिस से पहुंचने वाले नुकसान के कारण लीवर बिलीरुबिन को फिल्टर नहीं कर पाता है और पीलिया का कारण बनता है।
पित्ताशय की थैली आपके लीवर के नीचे का अंग है। कभी-कभी आपकी पित्ताशय की थैली में कठोर कंकड़ जैसी संरचनाएं बनने से पित्त नलिकाएं ब्लॉक हो जाती हैं। पित्त नलिकाओं के ब्लॉक होने पर बिलीरुबिन आपकी त्वचा में जमा हो जाता है, जो पीली आंखों की स्थिति के सबसे आम कारणों में से एक है।
शराब का ज्यादा सेवन आपके लीवर को नुकसान पहुंचाता है और कुछ मामलों में शराब के सेवन से शरीर में सूजन हो जाती है, जिससे लीवर की कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं। समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिये जाने से यह आपके लीवर को हमेशा के लिए खराब कर सकता है।
कच्चा या बिना पका भोजन खाना भी लीवर इंफेक्शन के प्रमुख कारणों में शामिल है। इसके अलावा आपको कुछ वायरस खासकर हेपेटाइटिस के कारण भी लीवर में इंफेक्शन हो सकता है।
मलेरिया मच्छर के काटने से होता है। मलेरिया मच्छर के काटने से होता है। यह स्थिति आपकी रक्त कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाती है और फिल्टर करती है। रक्त कोशिकाओं के नष्ट होने से पीलिया होता है। इसके अलावा भी पीली आंखों के कई अन्य कारण हैं, लेकिन बताए गए कारण पीली आंखों के सबसे आम कारणों में से एक हैं।
पीली आंखों की स्थिति में गंभीर कारणों के आधार पर अलग-अलग उपचार होते हैं।
प्री-हेपेटिक पीलिया:
यह स्थिति शरीर में बहुत ज़्यादा लाल कोशिकाओं के खत्म होने के कारण होती है। इस स्थिति में लीवर बिलीरुबिन की ज़्यादा मात्रा को मैनेज करने में सक्षम नहीं होता है, इसलिए यह त्वचा में बनने लगता है। यह प्रक्रिया आपके लीवर को कोई नुकसान होने से पहले होती है, लेकिन ऐसी बीमारी की तरफ ले जाने वाली प्रमुख स्थिति मलेरिया है। ऐसी स्थिति में आपको किसी भी प्रकार की समस्या होने पर डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए, क्योंकि डॉक्टर आपके लक्षणों को कम करने और कारण का इलाज करने के लिए कुछ दवाएं लिखेंगे।
इंट्रा-हेपेटिक पीलिया:
यह स्थिति तब होती है, जब वायरल हेपेटाइटिस या लीवर स्कारिंग जैसे किसी इंफेक्शन के कारण आपका लीवर पहले ही खराब हो चुका होता है। ऐसे में एंटी-वायरल दवाएं लीवर में वायरल इंफेक्शन से लड़ने में मदद करती हैं। यह दवाएं पीलिया के स्रोत को हटा देती हैं और शरीर को आगे होने वाली लीवर की दिक्कतों से बचाती हैं। शराब के ज़्यादा सेवन या लीवर को प्रभावित करने वाले विषैले पदार्थों के कारण लीवर में निशान पड़ जाते हैं, जिसका इलाज सिर्फ शराब पीना बंद करके ही किया जा सकता है।
पोस्ट-हेपेटिक पीलिया:
पीलिया का यह प्रकार पित्त नलिकाओं के ब्लॉक होने जाने पर होता है, जिसमें शरीर से बिलीरुबिन के बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं होता है। इस तरह के पीलिया का सबसे आम इलाज सर्जरी है, जिसमें सर्जन आपकी पित्ताशय की थैली से कुछ पित्त नली और अग्न्याशय (पेनक्रियाज) के एक हिस्से को निकाल देंगे।
पित्ताशय की थैली (गाल ब्लैडर) की समस्या:
पित्ताशय की थैली को हटाने का सामान्य उपाय है, अगर पित्त नलिकाएं ब्लॉक हैं, पित्ताशय की थैली में सूजन है या यह पित्त पथरी से भरा है।
अंगों के बेहतर कामकाज के लिए जीवन शैली में कुछ बदलाव करना ज़रूरी हो जाता है, जिससे इंफेक्शनों के लक्षणों को भी कम किया जा सकता है। कुछ उपायों से आपको इन लक्षणों को कम करने में मदद मिल सकती है, जैसे:
आंखों में पीलेपन के साथ कोई भी लक्षण दिखने पर तुरंत किसी नेत्र रोग विशेषज्ञ से चिकित्सा सहायता लेने की सलाह दी जाती है। इस गंभीर स्थिति के संकेत निम्नलिखित हैं:
पीली आंखें आमतौर पर पीलिया या लीवर इंफेक्शन के कारण होती हैं, लेकिन शराब का सेवन या कुछ वायरल इंफेक्शन जैसे अन्य कारण लीवर में इंफेक्शन हो सकता है। त्वचा के रंग में किसी भी तरह का बदलाव होने या बताए गए लक्षणों में से कोई भी लक्षण दिखाई देने पर चिकित्सा सहायता लेना बहुत ज़रूरी है। सुनिश्चित करें कि आप एक डॉक्टर से परामर्श करें और अपनी सभी समस्याओं के बारे में डॉक्टर को बताएं।
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