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केराटोकोनस क्या है? Keratoconus Kya Hai?
हमारी आंख में एक बाहरी सुरक्षा करने वाले आवरण को कॉर्निया कहते हैं। कॉर्निया आंख में गुंबद के आकार का आर-पार देखा जा सकने वाला आवरण प्रकाश को केंद्रित करने और दृष्टि के निर्माण में भी मदद करता है। आंखों में छोटे-छोटे कोलेजन फाइबर मौजूद होते हैं, जिनका काम कॉर्निया के आकार को बनाए रखना होता है। कोलेजन फाइबर कम मात्रा में एंटीऑक्सिडेंट के अभाव या मौजूदगी की वजह से कमजोर हो जाते हैं, जिसके कारण यह कॉर्निया को सही आकार में बनाए रखने की अपनी क्षमता खो देते हैं। इससे कॉर्निया बाहर निकल जाता है और शंकु जैसी संरचना बन जाती है।
कॉर्निया के एक शंकु के आकार में बदलने पर आंख की ऐसी स्थिति को केराटोकोनस कहते हैं, जो आंख की असामान्य स्थिति है। केराटोकोनस से पीड़ित व्यक्ति की दृष्टि धुंधली होती है, जिसकी वजह से उसे वस्तुओं को देखने में दिकक्त होती है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि शंकु के आकार का कॉर्निया प्रकाश को केंद्रित करने में मदद नहीं करता और धुंधली दृष्टि के कारण छवि बनाने में रूकावट पैदा करता है।
कॉर्निया के आकार में बदलाव से दृष्टि में बदलाव होता है। ऐसे में आप बिना चश्मे के स्पष्ट रूप से नहीं देख सकते। आमतौर पर केराटोकोनस को एक सामान्य आंख की स्थिति यानि निकट-दृष्टि या दूर-दृष्टि के रूप में गलत माना जाता है, क्योंकि चश्मा इस्तेमाल करते वक्त आप आराम महसूस कर सकते हैं। हालांकि कुछ लोगों के लिए यह स्थिति उतनी गंभीर नहीं होती, जबकि कुछ लोगों की इस स्थिति को आसानी से ठीक किया जा सकता है। इसमें उचित दृष्टि के लिए कॉर्नियल ट्रांसप्लांट की ज़रूरत पड़ सकती है।
केराटोकोनस के लक्षण – Keratoconus Ke Lakshan
आंखों की व्यापक परीक्षा करने से ऑप्थलमोलॉजिस्ट को केराटोकोनस का पता लगाने और बेहतर उपचार विकल्प में मदद मिल सकती है। इसके लक्षणों से निर्धारित किया जा सकता है कि आप केराटोकोनस से पीड़ित हो सकते हैं या नहीं। एक आंख खुली और दूसरी आंख बंद होने पर दोहरी दृष्टि होना, पास और दूर रखी वस्तुएं धुंधली दिखना, सिर्फ आंख के करीब रखी वस्तुएं स्पष्ट रूप से दिखना, चमकदार रोशनी के चारों तरफ हैलोज़ का दिखना, ट्रिपल घोस्ट की छवियां, प्रकाश की धारियों की मौजूदगी, चश्मे को बार-बार बदलने की ज़रूरत, दृष्टि का धुंधलापन इसके लक्षणों में शामिल है। यह आंखों के लेंस की फिटिंग में सूजन और परेशानी के कारण कॉर्निया पर निशान या ऊतक की उपस्थिति होती है।
इसके दूसरे लक्षणों में दृश्य तीक्ष्णता (Visual Acuity) में कमी, खराब दृष्टि, जिसे चश्मे के इस्तेमाल से बदला नहीं जा सकता, दृश्य धारणा की हानि, विपरीत संवेदनशीलता में कमी, फोटोफोबिया यानि लाइट से सेंस्टिविटी, आंखों में खिंचाव और जलन शामिल हैं। स्क्लेरोटिक मोतियाबिंद सहित कुछ दूसरे विकारों में घोस्ट इमेज और घटी हुई विपरीत संवेदनशीलता जैसे लक्षण भी देखे जा सकते हैं।
केराटोकोनस के कारण – Keratoconus Ke Karan
केराटोकोनस के कारण निम्नलिखित हैंः
जेनेटिक (Genetic)
ज़्यादातर बच्चों का जन्म केराटोकोनस के साथ होता है। सही देखभाल और उपचार नहीं किये जाने पर उनकी स्थिति और बिगड़ जाती है। अध्ययनों में दिए गए सुझाव के मुताबिक, केराटोकोनस सामान्य होने वाली बीमारी न होकर एक वंशानुगत बीमारी है, जो केराटोकोनस परिवार के एक सदस्य से दूसरे को हो सकता है।
आमतौर पर केराटोकोनस की स्थिति वाले लोगों की दोनों आंखें प्रभावित होती हैं, जिसके चलते ऐसे लोगों को अपनी धुंधली दृष्टि ठीक करने के लिए चश्मे का इस्तेमाल ज़्यादा आरामदायक लगता है। इसके अलावा दूसरे अध्ययन बताते हैं कि केराटोकोनस दूसरे जेनेटिक डिसऑर्डर जैसे डाउन सिंड्रोम, ओस्टोजेनेसिस इंपरफेक्टा और रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा से जुड़ा है।
प्राकृतिक कारण (Natural Causes)
पहले लगी चोट या आंख की स्थिति का कोई सबूत नहीं है, जिससे कॉर्निया के आकार में बदलाव हो। अक्सर कॉर्निया का आकार किशोरावस्था, तीस साल या उससे ज़्यादा उम्र में ही बदलना शुरू हो जाता है। कॉर्निया के आकार में बदलाव की गति धीमी होने से इसमें कई साल लग जाते हैं। कॉर्निया में यह बदलाव या तो अपने आप रुक सकता है या कई सालों तक अपने आप बदलता रहेगा। कुछ लोगों में अल्ट्रा-वायलेट किरणों के ज़्यादा संपर्क में आने और आंखों की पुरानी स्थितियों के कारण भी कॉर्निया के आकार में बदलाव देखा जाता है।
आंखों में मौजूद ऊतक एलर्जी या एटोपिक आंख की स्थिति की वजह से आंखों में सूजन के साथ कई दूसरे कारकों की वजह से भी टूट सकते हैं। केराटोकोनस के कारण दृष्टि में बदलाव दो तरह से होता है, जो अनियमित दृष्टिवैषम्य यानि एस्टिगमेटिज्म और व्यक्ति की पास की दृष्टि में वृद्धि है।
अनियमित दृष्टिवैषम्य (Irregular Astigmatism)
आमतौर पर सामान्य स्थिति में कॉर्निया का आकार गुंबद की तरह होता है, जिसकी सतह चिकनी होती है। केराटोकोनस से प्रभावित किसी व्यक्ति की आंख में गुंबद जैसा दिखने वाला यह आकार शंकु के आकार में बदल जाता है और इसकी चिकनी सतह अनियमित या लहरदार हो जाती है। कॉर्निया की ऐसी संरचना अनियमित दृष्टिवैषम्य की वजह बनती है। कुछ लोगों में कॉर्निया का अगला भाग इतना फैल जाता है कि उन्हें सिर्फ आंखों के पास रखी वस्तुएं ही दिखाई देती हैं, जबकि दूर की वस्तुएं धुंधली दिखती हैं। ऐसे केराटोकोनस की वजह से व्यक्ति की निकट दृष्टि में बढ़ोत्तरी होती है।
आंखें मलना (Rubbing of Eyes)
आंखों को ज़्यादा मलने से केराटोकोनस की प्रगति दर में भी बढ़ोतरी होती है, जिससे कॉर्निया टूट जाता है और आंखों की समस्या तेजी से बढ़ती है।
हार्मोनल असंतुलन (Hormonal Imbalance)
एक अध्ययन के मुताबिक हार्मोनल असंतुलन की वजह से कॉर्निया मुक्त कणों से ऑक्सीडेटिव नुकसान के लिए ज़्यादा सेंसिटिव और कमजोर हो जाता है, जिसकी वजह से कॉर्निया का आगे का उभार केराटोकोनस का कारण बनता है।
केराटोकोनस का निदान – Keratoconus Ka Nidan
आंखों की जांच (Eye Exam)
केराटोकोनस का निदान आंख की परीक्षा से किया जाता है, जिसमें एक नेत्र रोग विशेषज्ञ यानि ऑप्थलमोलॉजिस्ट कॉर्निया के घुमाव से नापकर इसकी तुलना सामान्य कॉर्निया से करेगा। नाप के बदलाव से कॉर्निया के आकार में हुए अहम बदलाव का पता लगाया जा सकता है। कॉर्नियल सतह की मैपिंग भी इसकी सतह के अध्ययन में मदद कर सकती है और विस्तृत छवि कॉर्निया की सतह की मौजूदा स्थिति दे सकती है।
एडवांस तकनीक (Advance Techniques)
रिफरैक्शन, केराटोमेट्री, कॉर्नियल टोपोग्राफी और स्लिट-लैंप परीक्षा जैसी एडवांस तकनीकें केराटोकोनस का निदान में मदद करती हैं। इसके अलावा कॉर्निया की वजह से होने वाले लाइट के रिफरैक्शन से केराटोकोनस के निदान में मदद मिलती है। केराटोकोनस वाले मरीजों में धुंधली दृष्टि, मायोपिया और अनियमित दृष्टिवैषम्य (Astigmatism) होता है। ऐसे मामलों में दृष्टि में सुधार करना कठिन होता है, क्योंकि कॉन्टैक्ट लेंस और चश्मे को लगातार बदलने की ज़रूरत होती है। कॉर्नियल टोपोग्राफी का इस्तेमाल बायोमाइक्रोस्कोपी केराटोकोनस से जुड़ी जानकारी का निर्धारण नहीं करने पर किया जाता है।
केराटोकोनस का उपचार – Keratoconus Ka Upchar
कॉर्निया के आकार कई तरह के होते हैं, जैसे निप्पल कोन, ग्लोब कोन और ओवल कोन, जो कॉर्नियल आकार के निर्धारण में मदद करते हैं, ताकि आपकी आंखों की स्थिति के मुताबिक सही उपचार किया जा सके। केराटोकोनस एक आंख की स्थिति है, जिसमें आपकी स्थिति की गंभीरता पर उपचार का तरीका टिका होता है। हल्की, मध्यम या एडवांस स्थिति के आधार पर ऑप्थलमोलॉजिस्ट आपको सही उपचार प्रदान करेंगे।
- माइल्ड केराटोकोनस (Mild Keratoconus)
माइल्ड केराटोकोनस की स्थिति में किसी उपचार की ज़रूरत नहीं होती। ऐसे में सही चश्मे और कॉन्टैक्ट लेंस पहनकर दृष्टि में सुधार किया जाता है। चश्मा और कॉन्टैक्ट लेंस विकृत दृष्टि को ठीक करते हैं, लेकिन कॉर्निया के आकार में बदलाव के साथ स्पष्ट दृष्टि रखने के लिए लेंस को बदलने की ज़रूरत होती है।
- एडवांस कंडीशन (Advance Condition)
हार्ड कॉन्टैक्ट लेंस काफी कठोर होते हैं और कॉर्निया को सही ढंग से फिट करते हैं। आमतौर पर इनका इस्तेमाल केराटोकोनस में एडवांस स्थितियों के लिए किया जाता है। शुरुआत में ये लेंस असहज हो सकते हैं, लेकिन बाद में एडजस्ट हो जाते हैं। कठोर या रिगिड लेंस का दूसरा विकल्प पिगीबैक लेंस हैं, जिनमें बाहरी भाग कठोर और आंतरिक भाग सॉफ्ट होता है। ये कम असहज होते हैं, जिन्हें सही सलाह के बाद पहना जाना चाहिए।
- स्क्लेरल लेंस (Scleral Lens)
स्क्लेरल लेंस कॉर्निया के बजाय आंख के सफेद भाद (स्क्लेरा) पर बैठते हैं। यह लेंस कॉर्नियल आकार के हिसाब से खुद को एडजस्ट करते हैं और एडवांस केराटोकोनस स्थिति में इस्तेमाल किए जाते हैं, जिसमें कॉर्निया का आकार तेजी से बदलता है।
- प्रोस्थेटिक लेंस (Prosthetic Lens)
यह लेंस एडवांस तकनीक का इस्तेमाल करते हैं और कॉन्टैक्ट लेंस पहनने में असुविधा महसूस करने वाले मरीज़ों को राहत देते हैं। प्रोस्थेटिक लेंस विशेष अनुकूलित लेंस होते हैं, जो हर एक व्यक्ति के लिए अनोखे होते हैं। खास तकनीक से बनाए जाने वाले यह लेंस कॉर्निया को उच्च गुणवत्ता वाली फिटिंग देते हैं।
- कॉर्नियल कोलेजन क्रॉस-लिंकिंग (Corneal Collagen Cross-Linking)
कॉर्नियल कोलेजन क्रॉस-लिंकिंग चिकित्सीय तकनीक है, जिसमें आंख के कॉर्निया को उसके आकार बदलाव करने से रोकने के लिये ठोस किया जाता है। कॉर्निया को पहले राइबोफ्लेविन ड्रॉप्स से गीला करने के बाद यूवी किरणों के साथ इलाज किया जाता है। एपिथेलियम ऑफ और एपिथेलियम ऑन कॉर्नियल क्रॉसलिंकिंग दो प्रकार हैं। एपिथेलियम ऑफ विधि में कॉर्निया की ऊपरी परत को हटा दिया जाता है, ताकि राइबोफ्लेविन ड्रॉप्स आसानी से कॉर्निया में जा सकें।
एपिथेलियम ऑन टेकनिक में एपिथेलियम को हटाये बिना राइबोफ्लेविन ड्रॉप्स सीधे उनके ऊपर डाल दी जाती हैं, क्योंकि ड्रॉप्स को कॉर्निया की परतों में जाने में समय लगता है। आमतौर पर यह विधि कम परेशानी का कारण बनती है, लेकिन तकनीक पर एपिथेलियम के ज़रिए किसी भी तरह के इंफेक्शन का खतरा भी होता है। क्रॉस-लिंकिंग तकनीक प्रोगेसिव दृष्टि हानि को कम करके रोग के शुरुआती चरण में कॉर्निया को स्थिर करती है। यह कॉर्नियल ट्रांसप्लांट होने की संभावित संभावनाओं को भी कम करता है।
- सर्जरी (Surgery)
सर्जिकल विकल्प में कॉर्निया को हटाना और इसे नए कॉर्निया से बदलना शामिल है, जिसे पेनेट्रेटिंग केराटोप्लास्टी कहते हैं। इस सर्जिकल प्रक्रिया में पूरे कॉर्निया को बदला जाता है। दूसरे सर्जिकल विकल्प में डीप एन्टीरियर लैमेलर केराटोप्लास्टी शामिल है, जिसमें सिर्फ कॉर्निया की बाहरी परत को डोनर के कॉर्निया से बदला जाता है और आंतरिक अस्तर को नहीं बदला जाता। इस प्रकार की सर्जरी व्यक्ति की इम्यून सिस्टम द्वारा डोनर के कॉर्निया की अस्वीकृति से बचाती है।
- इंटेक्स (Intacs)
इंटेक्स चिकित्सा उपकरण हैं, जिन्हें केराटोकोनस के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसमें इंटेक्स को कॉर्निया में डालने के बाद कॉर्निया को बढ़ाया और गुंबद के आकार में बदला जाता है। यह उपचार करवाने वाले लोगों की दृष्टि एक निश्चित स्तर पर सही हो जाती है और उपचार के बाद यह लोग चश्मे और कॉन्टैक्ट लेंस का इस्तेमाल कर सकते हैं।
- कंडक्टिव केराटोप्लास्टी (Conductive Keratoplasty)
टोपोग्राफी से निर्देशित कंडक्टिव केराटोप्लास्टी एक हाथ से चलाई जाने वाली मशीन है। इसका इस्तेमाल मशीन से निकलने वाली रेडियो तरंगों का प्रयोग करके कॉर्निया को उसके सामान्य गुंबद के आकार में लाने के लिए किया जाता है। केराटोकोनस की वजह से होने वाले अनियमित दृष्टिवैषम्य का इलाज इस विधि के इस्तेमाल से आसानी से किया जा सकता है।
- सबसे अच्छा विकल्प (Best Option)
सर्जिकल विकल्प उन लोगों के लिए सबसे बेहतर है, जिनके पास केराटोकोनस के एडवांस स्टेज हैं। दृष्टि को साफ करने के लिए चश्मा और कॉन्टैक्ट लेंस पहनकर हल्की स्थितियों को नियंत्रित किया जा सकता है। कॉर्नियल संवेदनशीलता और आंसू के बहाव को कम करने के लिए कठोर कॉन्टैक्ट लेंस के इस्तेमाल करना चाहिए, जिससे केराटोकोनस की हल्की स्थितियों को कम करने में भी मदद मिलती है। कॉन्टैक्ट लेंस से स्पष्ट दृष्टि नहीं मिलने पर सर्जिकल विकल्पों का इस्तेमाल किया जाता है। यह अपर्याप्त तीक्ष्णता, परिधीय पतलेपन और अपर्याप्त लेंस सहनशीलता के कारण हो सकते हैं।
केराटोकोनस के बचाव – Keratoconus Ke Bachav
केराटोकोनस के बचाव आंखों को यूवी किरणों से बचाकर, ठीक से फिट किए गए कॉन्टैक्ट लेंस पहनकर और आंखों को रगड़े बिना किया जा सकता है। यह केराटोकोनस को पूरी तरह से नहीं रोक सकता, लेकिन इसकी प्रोग्रेस को धीमा ज़रूर कर सकता है। आंखों के सही परीक्षण से केराटोकोनस का जल्द पता लगाने में मदद मिलती है, जो मरीज़ की प्रोग्रेस को कम करने में मदद करता है।
निष्कर्ष – Nishkarsh
केराटोकोनस के बचाव या सही परामर्श के लिए डॉक्टर से मिलने और आपकी केराटोकोनस की स्थिति के मुताबिक सबसे बेहतर उपचार लेने की सलाह दी जाती है। अधिक जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट eyemantra.in पर जाएं। आई मंत्रा में अपनी अपॉइंटमेंट बुक करने के लिए अभी +91-9711115191 पर कॉल करें या आप हमें [email protected] पर ईमेल भी कर सकते हैं। आईमंत्रा में हमारे कई वर्षों के अनुभव वाले नेत्र रोग विशेषज्ञ मोतियाबिंद सर्जरी, चश्मा हटाने, रेटिना सर्जरी सहित कई सेवाएं प्रदान करते हैं।