कॉर्निया गुट्टाटा: लक्षण, इलाज और फेको से संबंध – Cornea Guttata: Lakshan, Ilaaj Aur Phaco Se Sambandh

Cornea Guttata

कॉर्निया गुट्टाटा क्या है? Cornea Guttata Kya Hai?

कॉर्निया गुट्टाटा एक डिजेनेरिटिव बीमारी है। यह बीमारी कॉर्नियल सतह द्वारा छोटी बूंदों के आकार के उभार के रूप में फोकल बहिर्वाह के संचय की वजह बनती है, जो इसकी शुरुआती अवस्था है। कॉर्नियल गुट्टा “फुच्स डिस्ट्रोफी” का एक शुरुआती चरण है, जो कई चरणों में होता है।

कॉर्निया गुट्टाटा मरीज़ों को कॉर्निया ट्रांसप्लांट कराने में बड़ा खतरा होता है। इस बीमारी में मरीज़ों की आंख में कॉर्निया की सतह पर बूंदों का आकार उभरा होता है। कॉर्निया गुट्टा में मौजूद फोकल आउटग्रोथ के संचय को ‘गुट्टा’ कहा जाता है।

cornea guttata

कॉर्नियल एपिथेलियम कोशिकाओं का इस्तेमाल कॉर्नियल ट्रांसप्लांट सर्जरी में किया जाता है। यह कॉर्नियल एपिथेलियम में दिकक्त पैदा करता है, जिससे सर्जरी में कॉम्प्लिकेशन्स होती हैं। कॉर्निया गुट्टा में, कोलेजन जमा होने और गुट्टा में बढ़ने से झिल्ली मोटी हो जाती है। एंडोथेलियल कोशिकाओं में कमी से एंडोथेलियल एडिमा बनता है यानी इंफ्लेमेशन या सूजन कॉर्निया में एक्वेस ह्यूमर के बहने का कारण बनती है, जिसकी वजह से ब्लर विज़न या विज़न लॉस जैसी गंभीर समस्याएं सामने आती हैं।

लक्षण – Lakshan

कॉर्नियल रोग के इस वैकल्पिक रोग को फुच्स डिस्ट्रोफी कहा जाता है। यह विज़न लॉस या विज़न इम्पेयरमेंट का कारण बनता है, क्योंकि इसका असर आंख के कॉर्निया पर होता है। इस रोग से ग्रसित व्यक्ति को इन समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है जैसे-

  • आंख में पारदर्शिता (transparency) की कमी
  • उतार-चढ़ाव और कम विज़न
  • कॉर्निया का मोटा होना
  • गंभीर दर्द
  • गंभीर मामलों में कॉम्प्रोमाइज विज़न
  • सुबह के समय छवियां ना दिखना
  • तीक्ष्णता ( acuity) में कमी 

रिस्क फैक्टर – Risk Factors

Risk Factors

आमतौर पर चालिस से ज़्यादा उम्र के लोगों में कॉर्निया गुट्टा की बीमारी देखी जाती है, जबकि युवाओं यानि तीस से चालिस साल के बीच के लोगों में यह स्थिति बहुत कम देखी जाती है। महिलाओं पर इसका प्रभाव आसानी से होता है।

कॉर्निया गुट्टाटा से पीड़ित व्यक्ति जेनेटिक फैक्टर्स के ज़रिए अपनी बीमारी से गुजरता है, यानी उनकी संतान में जीन के पास होने के पचास प्रतिशत तक चान्स होते हैं।

कॉर्निया गुट्टाटा का निदान – Cornea Guttata Ka Nidan

आंखों की जांच में स्लिट लैंप के इस्तेमाल से कॉर्निया गुट्टाटा की स्थिति की पहचान करने में मदद मिलती है। टेस्ट में कॉर्निया पर छोटी बूंद के आकार के उभार दिखाई देते हैं, लेकिन आमतौर पर केंद्रीय कॉर्निया में दोनों आंखों में गुट्टा देखा और पाया जाता है। हालांकि, एक आंख में मौजूद गुट्टा दूसरी आंख के मुकाबले संख्या में ज़्यादा और गंभीर हो सकता है। कॉर्निया गुट्टाटा की इस गंभीर स्थिति में वृद्धि से कॉर्नियल स्ट्रोमा में धुंध का बनने लगता है। कॉर्नियल स्ट्रोमा की यह बढ़ती अवस्था रंध्र को मोटा करके कॉर्निया की एंडोथेलियल कोशिकाओं के दिखने की वजह बनती है, जिससे ज़्यादा कोशिकाएं खराब हो जाती हैं।

Diagnosis

क्लीनिकल ​​निदान – Clinical Nidan

पैचिमेट्री का इस्तेमाल करके आंख की कॉर्नियल मोटाई को नापा जाता है। जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, कॉर्नियल मोटाई भी आकार में बढ़ जाती है। कॉर्नियल मोटाई के नाप से इस रोग के निदान में मदद मिलती है। कॉर्नियल मोटाई नापने का दूसरा फायदा है कि यह मोतियाबिंद सर्जरी जैसी अन्य सर्जरी में रिस्क/फायदे अनुपात के विश्लेषण में भी मदद करता है।

एंडोथेलियम और हल्के कॉर्नियल स्ट्रोमल एडिमा में बदलाव कॉर्निया गुट्टाटा मामलों का निदान जल्द करने में मदद करता है। एंडोथेलियल बदलाव और कोशिका संख्या को समझकर रोगियों को कॉर्नियल गुट्टाटा की स्थिति की गंभीरता के आधार पर गाइड किया जा सकता है। एंडोथेलियम में बदलाव के निदान के लिए स्पेक्युलर माइक्रोस्कोपी की सहायता ली जा सकती है। 

गुट्टाटा की सर्जिकल प्रक्रिया – Guttata Ki Surgical Prakriya

कार्निया गुट्टाटा के इलाज में चिकित्सा प्रक्रियाओं से कोई मदद नहीं मिल पाने पर इस स्थिति के इलाज कई सर्जिकल प्रक्रियाओं के इस्तेमाल किया जाता है। यह प्रक्रियाएं हैंः

  • पेनेट्रेटिंग केराटोप्लास्टी
  • डेसिमेट की स्ट्रिपिंग एंडोथेलियल केराटोप्लास्टी
  • डेसिमेट की झिल्ली एंडोथेलियल केराटोप्लास्टी
  • एंडोथेलियल केराटोप्लास्टी के बिना डेसीमेटोरहेक्सिस
Surgical Procedure

सर्जरी के बाद – Surgery Ke Baad

सर्जरी के कुछ हफ्तों बाद मरीज़ को और ज़्यादा बुलाया जाता है, ताकि डॉक्टर आंख के अंदर किसी भी तरह की दिकक्त की जांच कर सके। ट्रांसप्लांट हेल्थ का अंदाज़ लगाने के लिये घाव भरने और विज़न रिकवरी की पूरी तरह जांच की जाती है। इतना ही नहीं, यहां तक ​​कि दृष्टिवैषम्य यानि एस्टिगमेटिज्म को कम करने वाले टांके भी हटा दिए जाते हैं।

सर्जिकल प्रक्रियाएं जिनमें ट्रांसप्लांट प्रक्रिया शामिल है, जिसमें नॉर्मल ऑर्गन ट्रांसप्लांट सर्जरी के मुकाबले रिजेक्शन ज़्यादा होते हैं। सर्जरी के किसी भी बिंदु पर कॉर्निया ट्रांसप्लांट को आंख से रिजेक्ट किया जा सकता है, इसलिए ट्रांसप्लांट के किसी भी रिजेक्शन के इलाज के लिए जांच ज़रूरी होती है। सर्जरी के बाद कुछ मरीज़ों में ग्लूकोमा को प्रतिकूल प्रभाव के रूप में देखा जा सकता है। ग्लूकोमा की वजह से मरीज़ों को स्थायी अंधापन भी हो सकता है।

सर्जिकल प्रक्रिया के कारण कॉम्प्लिकेशन्स – Surgical Prakriya Ke Baad Complications

सर्जिकल प्रक्रिया में दिखने वाली दिक्कतों में इंफेक्शन, खून बहना, घाव खुलना और टांके की वजह से होने वाली समस्याएं हैं।

लंबे समय तक टिपिकल स्टेरॉयड का इस्तेमाल आंखों से जुड़ी अन्य समस्याओं जैसे- मोतियाबिंद और आंख के अंदर ग्लूकोमा की वजह बन सकता है। कभी-कभी सर्जरी के कारण लगातार रिबब्लिंग की ज़रूरत के साथ ग्राफ्ट के अलग होने का खतरा होता है। दृष्टि की हानि और गंभीर आंखों में दर्द गंभीर दिक्कतों का कारण हो सकता है।

कॉर्निया गुट्टाटा का फेको से संबंध – Cornea Guttata Ka Phaco Se Sambandh

फेकमूल्सीफिकेशन विधि के बाद, कॉर्निया गुट्टाटा मरीज़ों में कॉर्नियल ट्रांसप्लांट के लिए एक बड़ा रिस्क होता है। गुट्टाटा कंडीशन एंडोथेलियल कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाती है। कॉर्निया गुट्टाटा से पीड़ित मरीज़ ट्रांसप्लांट से नहीं गुजरते, क्योंकि यह कोशिकाओं के नुकसान को बढ़ाता है, जो कॉर्निया गुट्टा की स्थिति में और ज़्यादा बढ़ जाता है।

फुच्स एंडोथेलियल कॉर्नियल डिस्ट्रोफी, को एफईसीडी के रूप में भी जाना जाता है। इस बीमारी का शुरुआती चरण कॉर्निया गुट्टाटा है। यह एक बाइलेट्रल डिजेनेरेटिव कार्नियल डिजीज है, जो गंभीर मामलों में कॉर्नियल सूजन बढ़ने की वजह बनता है और एंडोथेलियल अपघटन होता है, जिससे दृष्टि की हानि होती है। कॉर्निया गुट्टाटा फुच्स डिस्ट्रोफी की शुरुआती अवस्था है, लेकिन यह स्थिति ग्लूकोमा, सूजन, दर्दनाक स्थितियों और उम्र बढ़ने में भी देखी जा सकती है।

Relation of Cornea Guttata To Phaco

 

कॉर्निया गुट्टा से पीड़ित रोगियों में फेकमूल्सीफिकेशन का संबंध कॉर्नियल ट्रांसप्लांट से है। फेकमूल्सीफिकेशन के बाद पहले साल में रोगियों की संख्या घटी है फेकमूल्सीफिकेशन के दौरान उम्र बढ़ने से कॉर्नियल ट्रांसप्लांट सर्जरी कराने वाले रोगियों की संभावना में कमी आती है।

इलाज – Ilaaj

रोग और हल्के गुट्टा की स्थिति से पीड़ित कुछ मरीज़, जिन्हें कोई कॉर्नियल स्ट्रोमल एडिमा नहीं है उन्हें हर 6 से 12 महीने में चेक-अप के लिए जाना पड़ता है। एक गंभीर मामले से पीड़ित मरीज़ की ज़ांच कई बार जानी चाहिए, ताकि इलाज सही हो। पट्टी कॉन्टैक्ट लेंस का इस्तेमाल कर रहे मरीज़ों को इंफेक्शन होने का ज़्यादा खतरा होता है, इसलिए उन्हें भी इसकी ज़्यादा जांच करवानी चाहिए। इसे आई ड्रॉप्स और हाइपरटोनिक सेलाइन या मलहम के इस्तेमाल से हटाया जा सकता है। हाइपरटोनिक सेलाइन को कॉर्निया के ऊपर मौजूद उभार से फालतु पानी को निकालने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। कॉर्निया से पानी की कमी कॉर्निया गुट्टा को कम करने में मदद करके विज़न रिकवरी में लगने वाले समय को घटाती है।

कई गतिविधियां विज़न रिकवरी में मदद करती हैं, जबकि कुछ हवा को उड़ाकर स्पष्ट दृष्टि प्रदान करने के लिए हेयर ड्रायर का इस्तेमाल करते हैं। इसके गंभीर मामलों का इलाज बैंडेज कॉन्टैक्ट लेंस के इस्तेमाल से किया जा सकता है। कॉर्निया गुट्टाटा की स्थिति अधिक गंभीर होने का मतलब फुच्स डिस्ट्रोफी का होना है, जिसके लिए सर्जरी ट्रीटमेंट इसके इलाज का आखिरी विकल्प हो सकता है।

निष्कर्ष: Nishkarsh

ट्रांसप्लांट एक ज़्यादा मुश्किल पोस्ट-ऑपरेटिव प्रक्रिया से जुड़ी है, क्योंकि यह पूरी ज़िदगी चलती है। ऐसे में इस स्थिति से ग्रस्त मरीज़ जो कॉर्निया ट्रांसप्लांट सर्जरी अपनी शुरुआती अवस्था में करवाना चाहते हैं, उनके लिये इसी साल मोतियाबिंद सर्जरी करवाना ठीक होगा।

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