Contents
- 1 कॉर्नियल अल्सर क्या है? Corneal Ulcer Kya Hai?
- 2 कॉर्नियल अल्सर के लक्षण – Corneal Ulcer Ke Lakshan
- 3 कॉर्नियल अल्सर के कारण – Corneal Ulcer Ke Karan
- 4 रिस्क फैक्टर – Risk Factor
- 5 कॉर्नियल अल्सर से समस्या – Corneal Ulcer Se Ki Samasya
- 6 रोकथाम – Roktham
- 7 कॉर्नियल अल्सर का इलाज – Corneal Ulcers Ka Ilaaj
- 8 निष्कर्ष – Nishkrash
कॉर्नियल अल्सर क्या है? Corneal Ulcer Kya Hai?
कॉर्नियल अल्सर को केराटाइटिस भी कहते है, जो आपकी आंखों के कॉर्निया में एक खुला घाव है। कॉर्निया पुतली और आइरिस को ढकने वाली आंख की सबसे बाहरी परत है। हमारी आंखें कैमरे की तरह काम करती हैं और कॉर्निया वह खिड़की है, जिससे होकर रोशनी आंख के अंदर गुजरती है। कॉर्निया आंसुओं की एक परत से सुरक्षित रहता है, जो किसी भी बाहरी कण और इंफेक्शन से कॉर्निया को बचाता है।
कॉर्नियल अल्सर इंफेक्शन, कॉर्निया में कम आंसू, जलन, कॉन्टैक्ट लेंस का लंबे समय तक इस्तेमाल, सूखी आंखें(dry eyes) या ओकुलर हर्पीस की वजह से होता है। कॉर्निया पर सफेद या भूरे रंग के धब्बे, लाल-आंख, सूजी हुई पलकें, आंखों में ज़्यादा पानी, रेडनेस और धुंधली दृष्टि के साथ घाव काफी दर्दनाक हो सकते हैं। कॉर्नियल अल्सर और रोगों का इलाज इसके कारण पर निर्भर करता है। कॉर्निया और दृष्टि परिवर्तन को और नुकसान को रोकने के लिए कॉर्नियल अल्सर का जल्द से जल्द इलाज किया जाना चाहिए।
कॉर्नियल अल्सर के लक्षण – Corneal Ulcer Ke Lakshan
कारणों के आधार पर इसके लक्षण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में अलग होते हैं। अगर घाव बैक्टीरिया की वजह से होता है, तो यह कॉर्निया के सफेद भाग के अदंर खाली आंखों (बिना दूरबीन या चश्मे की सहायता से) को दिखाई देगा।
सभी कॉर्नियल घाव माइक्रोस्कोप के बिना नहीं दिखते। खासकर अगर वह हर्पीस सिम्प्लेक्स वायरस की वजह से होते हैं। अक्सर, कॉर्नियल अल्सर इन लक्षणों के कारण होता है, जैसे:
- आंखों में दर्द (हल्का से ज़्यादा और फिर तेज हो जाता है)
- स्क्लेरा (sclera) लाल हो जाता है और कंजक्टिवा बनाता है (आँख का सफेद भाग, जो पूरी तरह ढका हो)।
- फोटोफोबिया (प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता)
- धुंधली दृष्टि
- सूजी हुई पलकें
- आंसू
- आंख में कोई बाहरी कण महसूस होना
कॉर्नियल अल्सर के कारण – Corneal Ulcer Ke Karan
गंभीर मामलों में यह कीटाणुओं की वजह से होता है, जो पुरानी चोटों या कॉर्निया में खरोंच के ज़रिए प्रवेश करते हैं। इसका दूसरा कारण बैक्टीरिया, वायरल, फंगल या इंफेक्शन भी हो सकते हैं। अगर घाव हर्पीज सिंप्लेक्स वायरस की वजह से होता है, तो इसे डेंड्रिटिक अल्सर कहा जाता है, जो आंखों को दिखाई नहीं देगा।
हर्पीस सिंप्लेक्स वायरस, वायरस का एक सामान्य इंफेक्शन हो सकता है, जो ज्यादातर लोगों को बचपन में होता है। वायरस के लक्षणों में अक्सर मुंह के छाले, खाने की नली (फैरिन्जाइटिस) और सूजी हुई ग्रंथियां शामिल हैं। वायरस का शरीर के दूसरे हिस्सों में फैलना गैरमामूली नहीं है, लेकिन यह तभी होगा, जब आप संक्रमित क्षेत्र को छूकर अपनी आंख को छूते हैं।
कॉन्टैक्ट लेंस पहनने वालों में कॉर्नियल अल्सर ज़्यादा आम हैं, लेकिन आंखों पर कॉन्टैक्ट लेंस को रगड़ने या गंदे होने की वजह से भी ऐसा होता है। बहुत ज़्यादा खरोंच लगने से स्किन का एक हिस्सा कमजोर होकर टूट सकता है, जिससे बैक्टीरिया आक्रमण कर सकते हैं और बढ़कर ज़्यादा फैलना शुरू कर सकते हैं।
लेंस पहनने वाले ऐसे लोग, जो उनकी सही साफ-सफाई नहीं रखते, उनमें कॉर्नियल अल्सर होने की संभावना भी बढ़ जाती है। उदाहरण के लिए, सोते समय सॉफ्ट लेंस पहनने या लेंस को हटाते या ठीक करते वक्त गंदा रहने से उन कीटाणुओं के संपर्क को बढ़ता है, जो इंफेक्शन का कारण बन सकते हैं।
अध्ययनों से पता चला है कि नाइट कॉन्टैक्ट लेंस पहनना भी इंफेक्शन का एक प्रमुख कारण है। एकेंथामोएबा (एकेंथामोएबा कैराटाइटिस) आंखों का एक आम इंफेक्शन है। कॉन्टैक्ट लेंस पहनने वाले लोग, जो स्विमिंग से पहले अपने लेंस नहीं हटा हाते, उन्हें पैरासिटिक आंखों का इंफेक्शन हो सकता है।
कॉर्नियल अल्सर के कई कारण हो सकते हैं:
- एलर्जी
- कॉर्नियल घर्षण (कॉर्नियल अब्रेशन)
- वायरल, फंगल इंफेक्शन
- सूखी आंखें (ड्राई आइज़)
- इम्यून सिस्टम में खराबी
- पैरासिटिक इंफेक्शन
- मल्टीपल स्केलेरोसिस और सोरायसिस जैसी सूजन से जुड़ी बीमारियां (इंफ्लेमेटरी डिजीज)।
रिस्क फैक्टर – Risk Factor
अगर आपको सालों पहले कोई कॉर्नियल चोट लगी है, तो आपको कॉर्निया के ज़्यादा वक्त के लिए खराब होना का खतरा रहता है और आपको इस लंबे वक्त में अपनी दृष्टि में काफी बदलाव महसूस होगा। अल्सर के जोखिम को बढ़ाने वाले दूसरे कारक हैं:
- सोते समय कॉन्टैक्ट लेंस, खासकर सॉफ्ट लेंस का इस्तेमाल करना।
- सूखी आंखें होना।
- हालिया इंफेक्शन या चोट।
- गंभीर एलर्जिक रिएक्शन।
- पलकों का पूरी तरह बंद न होना।
- खेल के दौरान आंखों को सुरक्षा न दे पाना।
- कमजोर सिस्टम, जैसे अक्सर एचआईवी की वजह से होता है।
- काम या शौक, जिनमें धूल पैदा करने वाले औजारों का इस्तेमाल होता है, जैसे खेती या निर्माण कार्य।
कॉर्नियल अल्सर से समस्या – Corneal Ulcer Se Ki Samasya
कॉर्नियल अल्सर से गंभीर समस्याएं होती हैं, क्योंकि इसमें घाव का ठीक से इलाज नहीं किया जाता। अक्सर, इलाज कई तरह की समस्याओं को रोक सकता है, जैसे:
- दृष्टि की हानि
- कॉर्निया का फ्रैक्चर
- मोतियाबिंद या ग्लूकोमा से प्रभावित आंख का नुकसान
- आंख और शरीर के दूसरे भागों में इंफेक्शन फैलना
- गंभीर दर्द
- दृष्टि में परिवर्तन
- आंख के अंदर बाहरी कण के संपर्क का खतरा
- कैमिकल्स या उड़ने वाले कणों के संपर्क का खतरा
एल अल्सर को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। अगर आपको कॉर्नियल अल्सर का कोई भी लक्षण महसूस होता है, तो आपको तुरंत चिकित्सा सहायता लेनी चाहिए।
रोकथाम – Roktham
आपकी आंखों में इंफेक्शन या आंखों में किसी तरह की परेशानी महसूस होने पर आपको किसी नेत्र रोग विशेषज्ञ या ऑप्टोमेट्रिस्ट से उसी वक्त चिकित्सा सहायता लेनी चाहिए। शुरुआती इलाज से घाव को बढ़ने से रोका जा सकता है। कॉन्टैक्ट लेंस पहनने वालों को कॉन्टैक्ट लेंस को संभालने से पहले हाथ ज़रूर धोने चाहिए, जिससे कीटाणुओं और बाहरी पदार्थों को आंखों में जाने से रोका जा सके। सोते समय कॉन्टैक्ट लेंस पहनना बंद कर दें। अपनी दिनचर्या के हिसाब से अपने दैनिक काम करते वक्त आंखों का ध्यान रखने वाले उपायों के बारे में अपने आंखों की देखभाल करने वाले पेशेवर से बात करें।
कॉर्नियल अल्सर का इलाज – Corneal Ulcers Ka Ilaaj
कॉर्नियल अल्सर के इलाज के लिए डॉक्टर पहले अल्सर की गहराई का पता करेंगे। कॉर्नियल घाव बढ़ने पर इलाज में वक्त नहीं लगाना चाहिए। कारण पहले से पता है, तो इंफेक्शन फैलाने वाले संभावित इंफेक्शन को खत्म करने के लिए डॉक्टर आपको एंटीबायोटिक दवाएं भी दे सकते हैं।
एंटीबायोटिक्स आमतौर पर आईड्रॉप्स के तौर पर दिए जाते हैं, जैसे कभी-कभी एक घंटे तक आंख में डालने के लिये। कुछ मामलों में सूजन नापने के लिए कॉर्टिकोस्टेरॉइड आई ड्रॉप्स दिए जाते हैं।
कॉर्नियल घाव के गंभीर होने पर कॉर्नियल ट्रांसप्लांट (केराटोप्लास्टी) करने की ज़रूरत पड़ सकती है। इस प्रक्रिया में रोगग्रस्त या घायल कॉर्निया को हटाकर नये कॉर्निया को छोटे टांकों से ध्यान से जोड़ा जाता है। आमतौर पर सर्जरी के कुछ हफ्तों बाद इलाज के आखिर में जोड़ों को हटा दिया जाता है। ज्यादातक लोगों को सर्जरी के कुछ दिनों बाद उनकी दृष्टि में सुधार महसूस होता है। कुछ मामलों में दो दिन तक अस्पताल में रहना होता है।
आपका ऑप्टोमेट्रिस्ट सलाह दे सकता है कि:
- सेफ्टी ग्लास पहनें।
- पेनकिलर लें।
- आंखों के मेकअप से बचें।
- दूसरों के साथ कॉस्मेटिक, तौलिये या आईड्रॉप का लेनदेन न करें।
- इलाज के दौरान कॉन्टैक्ट लेंस न पहनें।
- सोते समय कॉन्टैक्ट लेंस पहनने से बचें।
- प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता जैसे लक्षणों से बचाव के लिए आइब्रो पैच पहनें।
- केराटोप्लास्टी के वक्त पानी आंखों में न जाने दें।
आपके ऑप्टोमेट्रिस्ट के साथ फॉलो-अप विज़िट के लिए हमेशा सलाह दी जाती है, फिर घाव चाहे कितना भी गंभीर क्यों न हो।
निष्कर्ष – Nishkrash
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