Eye Diseases

मंद दृष्टि (एम्ब्लियोपिया/लेजी आई): लक्षण, कारण और उपचार – Mand Drishti (Amblyopia/Lazy Eye): Lakshan, Kaaran Aur Upchar

मंद दृष्टि (एम्ब्लियोपिया/लेजी आई) क्या है?  Mand Drishti (Amblyopia/Lazy Eye) Kya Hai?

मंद दृष्टि (एम्ब्लियोपिया) को आलसी ऑंख यानी कि लेजी आई (Lazy Eye) के नाम से भी जाना जाता है। इसमें बढ़ती उम्र के साथ बच्चे की एक ऑंख दूसरी ऑंख के मुकाबले कम विकसित होती है। एम्ब्लियोपिया से ग्रस्त बच्चे का दिमाग दोनों ऑंखों पर फोकस न करके सिर्फ एक ऑंख पर फोकस करता है। इस दौरान बच्चे की ऑंख आलसी बन जाती है और कमज़ोर तंत्रिका कोशिकाओं (Weak Nerve Cells) के कारण ऑंखों से जुड़ी समस्याएं होती हैं। ऐसे में समय रहते इलाज नहीं किये जाने पर दिमाग उस ऑंख से काम लेना बंद कर देता है, जिससे स्थायी दृष्टि से जुड़ी समस्याएं होने का खतरा बढ़ जाता है।

डॉक्टर्स के मुताबिक आमतौर पर एम्ब्लियोपिया 6 से 9 साल के बच्चों में पाया जाता है। वहीं अगर 7 साल से पहले एम्ब्लियोपिया की पहचान और इलाज किए जाने पर बच्चे में पूर्ण दृष्टि सुधार (Complete Vision Correction) की संभावना बढ़ जाती है। 

एम्ब्लियोपिया के लक्षण – Amblyopia Ke Lakshan

एम्ब्लियोपिया में प्रभावित (Influenced) ऑंख को साफ व्यू और दिमाग को साफ संकेत नहीं मिलता, जिसके चलते बच्चे का दिमाग इसे अनदेखा करना शुरु कर देता है।

वहीं, कुछ मामलों में अप्रभावित ऑंख प्रभावित ऑंख को कवर करना शुरु कर देती है। ऐसे मामलों में नियमित रुप से जांच नहीं कराने तक एम्ब्लियोपिया का पता नहीं चलता, जिसके परिणामस्वरुप बच्चा ऑंख से जुड़ी किसी समस्या को जान पाने में असमर्थ रहता है।

एम्ब्लियोपिया के आम लक्षणों में शामिल हैंः

  • धुंधली दृष्टि (Blurred Vision)
  • दोगुनी दृष्टि (Doubled Vision)
  • गहराई की कमी का ज्ञान (Poor Depth Perception)
  • एक ऑंख फड़कना या बंद होना (Squint Or Shutting One Eye)

नेत्र विषेशज्ञों (Ophthalmologists) के मुताबिक साल में एक बार अपने बच्चे की ऑंखें जरूर टेस्ट करवानी चाहिए। खासकर उन लोगों को जिनकी ऑंख की समस्या से जुड़ा कोई पारिवारिक इतिहास रहा हो। आपको बता दें कि ज़्यादातर देशों में 3 से 5 साल की उम्र में बच्चों का पहली ऑंखों की जॉंच की जाती है। 

एम्ब्लियोपिया के कारण – Amblyopia Ke Karan

एम्ब्लियोपिया की बड़ी वजह विकास की उम्र में विजुअल इम्पेयरमेंट है, जिसको लेकर डॉक्टर्स का कहना है कि दिमाग प्रभावित ऑंख से आने वाली इमेज को दबा देता है। हालांकि अभी तक इसकी मुख्य वजह का पता नहीं चल पाया है।

आलसी ऑंखों के कुछ संभावित कारण हैःं

स्ट्रैबिस्मस (Strabismus)

यह ऑंखों के आसपास मासपेशियों (Muscles) में असंतुलन के कारण होता है, जिससे ऑंख मुड़ या बाहर निकल जाती है। स्ट्रैबिस्मस में मांसपेशी असंतुलन के कारण दोनों ऑंखों के लिए किसी वस्तु को एक साथ देख पाना कठिन हो जाता है। कुछ बच्चों में यह बीमारी जन्मजात और कुछ में बचपन में लगी ऑंख की चोट के कारण भी हो सकती है, जिसमें बच्चे को पास या दूर का देखने को दिक्क्त हो सकती है। 

ऐनीसोमेट्रोपिक एम्ब्लियोपिया (Anisometropic Amblyopia)

इसमें लेंस के ज़रिए आने वाला प्रकाश ऑंखों पर ठीक से नहीं पड़ता, जो एक अपवर्तक त्रुटि (Refractive Error) है। आमतौर पर इसमें कॉर्निया की सतह असमान होने से ऑंखें धुंधली हो जाती हैं, जिसका कारण दूर या पास का दृष्टिदोष (Visual Impairments) और दृष्टिवैषम्य (Astigmatism) होता है। 

ऐनीसोमेट्रोपिक एम्ब्लियोपिया से ग्रस्त बच्चे को एक ऑंख में दूसरी ऑंख के मुकाबले दूर या निकट दृष्टिदोष होने से एक ऑंख में एम्ब्लियोपिया की संभावना बढ़ सकती है।

स्टिम्यूलस डेपरिवेशन एम्ब्लियोपिया (Stimulus Deprivation Amblyopia)

इसमें एक ऑंख को देखने से रोके जाने पर वह कमज़ोर हो जाती है। वहीं कुछ मामलों में इसका प्रभाव दोनों ऑंखों में देखा जाता है, इसलिए इसे एम्ब्लियोपिया का सबसे दुर्लभ रुप कहा जाता है।

ऐसे मामलों के प्रमुख कारण हो सकते हैंः

  • आँखों में निशान
  • मोतियाबिंद, इसमें बच्चा धुंधले लेंस के साथ जन्म लेता है
  • प्टॉयसिस (Ptosis) को लटकती पलकें भी कहते हैं
  • ग्लूकोमा ऑंखों में ज़्यादा दबाव की वजह से होता है
  • विकास अवस्था में लगी ऑंख की चोट

एम्ब्लियोपिया का निदान – Amblyopia Ka Nidaan

सभी बच्चों को स्कूल जाने योग्य होने से पहले आई टेस्ट ज़रूर कराना चाहिए, जिसमें डॉक्टर कुछ बातों को सुनिश्चित करेंगेः

  • किसी भी कारण से ऑंखों में प्रवेश करने वाला प्रकाश ब्लॉक नहीं हो रहा हो।
  • दोनों ऑंखें अच्छी तरह काम कर रही हों।
  • दोनों ऑंखों की गति सही हो।

ऐसी कोई भी समस्या होने पर डॉक्टर आपको एक नेत्र विशेषज्ञ (Ophthalmologists) द्वारा बच्चे का आई टेस्ट कराने की सलाह देंगे।  

कुछ डॉक्टर्स के मुताबिक 3 साल से पहले आपको अपने बच्चे का आई टेस्ट ज़रूर करवाना चाहिए। इसमें डॉक्टर एक ऑंख की जांच के दौरान बच्चे को एक ऑंख बंद करवाकर दूसरी ऑंख पर ध्यान देंगे। इसी तरह बच्चे की दूसरी ऑंख की जांच की जाएगी। 

इसी प्रकार बड़े बच्चों या व्यस्कों (Adults) की ऑंखों की जांच के वक्त डॉक्टर अक्षर वाला आई चार्ट रखते हैं, जिसे उन्हें एक-एक करके दोनों ऑंखों से पढ़ने लिए कहा जाता है।

इस प्रकार ऑंखों की जांच से डॉक्टर दृष्टि समस्या से जुड़े इलाज के लिए दवाएं और आई ड्रॉप लिखकर देते हैं। 

एम्ब्लियोपिया के लिए उपचार- Amblyopia Ke Liye Upchar

समय से एम्ब्लियोपिया का इलाज नहीं किये जाने की वजह से पर्मानेंट विज़न प्रॉब्लम हो सकती है, जिनका उपचार इन कारणों के आधार पर किया जाता हैः

  • चश्माः आमतौर पर ऑंखों से जुड़ी समस्याओं का इलाज बच्चे को सही चश्मा लगाकर किया जाता है।
  • सर्जरीः मोतियाबिंद से पीड़ित लोगों का इलाज सर्जरी के ज़रिए किया जाता है। इसमें ऑंखों में प्रकाश या स्ट्रैबिस्मस को रोककर एक साथ काम करने से रोकते हैं, जिस तरह से उन्हें करना चाहिए।
  • आई ड्रॉप्सः इनमें एट्रोपिन भी शामिल है, जो मजबूत ऑंखों को धुंधला करके ब्रेन पर फोकस करता है।
  • आई पैचः कभी-कभी डॉक्टर बच्चे के ब्रेन का कमज़ोर ऑंख पर फोकस कराने के लिए मज़बूत ऑंख पर एक ऑंख का पैच लगाने को कहते हैं। ऐसा करने से बच्चे को कमज़ोर ऑंख से देखने में समस्या तो होगी, लेकिन समय रहते बच्चे का दिमाग कमज़ोर ऑंख पर भी फोकस करना शुरू कर देगा।

आमतौर पर आलसी ऑंखों (Lazy Eye) के नाम से फेमस एम्ब्लियोपिया 6 से 9 साल के बच्चों में होता है, जिसका कारण अविकसित ऑंख होता है। एम्ब्लियोपिया जन्मजात भी हो सकता है, जो नॉर्मली एक ऑंख को प्रभावित करता है, लेकिन कुछ मामलों में इसका असर दोनों ऑंखों में देखने को मिलता है। इससे होने वाली विज़न प्रॉब्लम बच्चे के लिए दैनिक क्रियाकलापों पर फोकस करने में दिक्कत करती है।  

डॉक्टर की सलाह – Doctor Ki Salah

डॉक्टर सलाह देते हैं कि हर माता-पिता को 3 साल की उम्र से पहले बच्चे की ऑंखों की जांच कराने चाहिए, जिससे स्कूल जाने से पहले बच्चे को किसी भी समस्या की पहचान करने में मदद मिलती है। हालांकि एम्ब्लियोपिया का मुख्य कारण अभी तक सामने नहीं आया है, लेकिन दूरदृष्टि, मंददृष्टि, मोतियाबिंद या ऑंख की चोट को इसका कारण माना जा सकता है। इससे जुड़े कुछ उपचार हमारे पास उपलब्ध हैं।

निष्कर्ष – Nishkarsh

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