Contents
- 1 एनोफ्थाल्मिया और माइक्रोफथाल्मिया – Anophthalmia Aur Microphthalmia
- 2 माइक्रोफथाल्मिया – Microphthalmia
- 3 माइक्रोफथाल्मिया के कारण – Microphthalmia Ke Kaaran
- 4 माइक्रोफथाल्मिया का उपचार – Microphthalmia Ka Upchar
- 5 एनोफथाल्मिया – Anophthalmia
- 6 एनोफथाल्मिया के कारण – Anophthalmia Ke Kaaran
- 7 एनोफथाल्मिया के प्रकार – Anophthalmia Ke Prakaar
- 8 एनोफथाल्मिया का निदान – Anophthalmia Ka Nidaan
- 9 एनोफथाल्मिया का उपचार – Anophthalmia Ka Upchar
- 10 निष्कर्ष – Nishkarsh
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एनोफ्थाल्मिया और माइक्रोफथाल्मिया – Anophthalmia Aur Microphthalmia
माइक्रोफथाल्मिया (Microphthalmia) और एनोफ्थाल्मिया (Anophthalmia) ऑंखों बीमारी में ऑंख के आकार में कमी के साथ ऑर्बिट में आँख की खराबी और आँख की अनुपस्थिति (absence) जैसी समस्याएँ आती हैं। नीचे माइक्रोफथाल्मिया और एनोफ्थाल्मिया में क्या अंतर है, इसके लक्षण और कारण क्या हैं आदि चीज़ों के बारे में बताया गया है।
माइक्रोफथाल्मिया – Microphthalmia
ग्रीक भाषा से लिये गये माइक्रोफथाल्मोस शब्द में माइक्रो का मतलब छोटा और ऑप्थाल्मोस का मतलब ऑंख होता है, जिसे “छोटी ऑंख” भी कहते हैं।
असल में इस आई डिसऑर्डर में एक ऑंख या दोनों ऑंखें छोटी और ऑंखों के कार्य असामान्य होते हैं, जिसे क्रमशः एकतरफा माइक्रोफथाल्मिया (unilateral microphthalmia) और द्विपक्षीय माइक्रोफथाल्मिया (bilateral microphthalmia) कहते हैं। कभी-कभी ऐसी स्थिति बच्चों में विज़न लॉस या दृष्टिहीनता (ब्लाइंडनेस) की वजह बन सकती है। यह पूरी आबादी के लगभग 3 से 11% नेत्रहीन बच्चों को प्रभावित करता है।
अचानक विज़न में कोई बदलाव दिखने पर आपको तुरंत डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए है। समय रहते किये गए किसी भी बीमारी के इलाज से बेहतर परिणाम मिलते हैं।
माइक्रोफथाल्मिया के कारण – Microphthalmia Ke Kaaran
माइक्रोफथाल्मिया के कई कारण हैं जैसे:
- हर्पीस सिम्प्लेक्स, रूबेला जैसे संक्रमण और प्रेग्नेंसी के दौरान साइटोमेगालोवायरस (CMV) बच्चों में माइक्रोफथाल्मिया रोग का मुख्य कारण बनते हैं।
- भ्रूण शराब सिंड्रोम (फेटल एल्कोहल सिंड्रोम) भी इसके कारणों में से एक है, लेकिन इसे साबित करने के लिए अनिर्णायक सबूत हैं।
- कभी-कभी आनुवंशिक कारकों द्वारा माइक्रोफथाल्मिया गुणसूत्रों में असामान्यताएं पैदा कर सकती हैं।
- ट्रिप्लोइड सिंड्रोम
- 13q विलोपन सिंड्रोम
- मोनोजेनेटिक मेंडेलियन विकार
मनुष्यों में वार्डेनबर्ग सिंड्रोम टाइप 2 भी एक प्रकार की माइक्रोफथाल्मिया स्थिति है। माइक्रोफथाल्मिया में म्यूटेशन ट्रांसक्रिप्शन फैक्टर (MITF) से जुड़े इस सिंड्रोम की वजह है, जो बॉडी में कोरॉइड विदर की विकृति का कारण बनता है। इससे कांच के हास्य द्रव जल में निकासी से तरल पदार्थ और ऑंख के आकार में कमी आती है, जो माइक्रोफथाल्मिया की स्थिति का कारण बनता है।
माइक्रोफथाल्मिया का उपचार – Microphthalmia Ka Upchar
रोगी के माइक्रोफथाल्मिया के साथ पैदा होने की वजह से इसका कोई इलाज नहीं है। माइक्रोफथाल्मिया में ऑंख का अकार छोटा होता है, इसमें कभी-कभी प्लस ऑप्टिक्स का इस्तेमाल करने से ऑंख की रोशनी बनी रहती है।
एनोफथाल्मिया – Anophthalmia
इस स्थिति में एक या दोनों ऑंखों के अलावा दोनों नेत्रगोलक (eyeball) और ऑंख के उत्तक (ocular tissue) अनुपस्थित होते हैं।ऑंख की अनुपस्थिति से विभिन्न नेत्र इकाइयां प्रभावित होती हैं। जैसे कि एक ऑंख के गायब होने से बोनी ऑर्बिट के आकार में कमी आती है, यानी छोटी हड्डी की कक्षा और म्यूकोसल सॉकेट का कसना और पैलेब्रल विदर और छोटी पलकों में कमी। यह एक ऐसी बीमारी है जो अत्यंत दुर्लभ है और जीन में असामान्यता इस स्थिति का कारण बनती है।
एनोफथाल्मिया के कारण – Anophthalmia Ke Kaaran
एनोफ्थेल्मिया कई कारण से हो सकता है जैसे:
- जीन (Genes)
एसओएक्स 2 (Sox 2)
एसओएक्स 2 (sox2) जीन एनोफथाल्मिया के आनुवंशिक कारणों में से एक है। एसओएक्स 2 जीन का म्यूटेशन की वजह से एसओएक्स 2 एनोफथाल्मिया सिंड्रोम बनता है, जो एसओएक्स 2 प्रोटीन के उत्पादन में कमी की बड़ी वजह है। यह डीएनए के अन्य क्षेत्रों से जुड़ने वाले अन्य जीन की एक्टिविटीज़ गतिविधियों को कन्ट्रोल करता है। जीन में होने वाला व्यवधान (disruption) sox2 प्रोटीन की अनुपस्थिति की वजह से ऑंख के विकास का कारण बनता है।
इस ऑटोसोमल प्रमुख वंशानुक्रम (autosomal dominant inheritance) में एनोफ्थेल्मिया से पीड़ित लोग आमतौर पर व्यक्तियों के पहले समूह में होते हैं, जिनकी म्यूटेशन से जुड़ा कोई पारिवारिक इतिहास रहा हो। बच्चों को यह स्थिति माता-पिता में से किसी एक अंडे या शुक्राणु कोशिकाओं (स्पर्म सेल्स) के ज़रिए प्राप्त होती है, जिसमें यह म्यूटेटेड जीन होता है। एसओएक्स 2 जीन के लगभग 33 म्यूटेशन की वजह से एनोफ्थेल्मिया का रिस्क बढ़ जाता है।
आरबीपी 4 (RBP4)
खासकर गर्भावस्था में मां से विरासत में मिली इस स्थिति का बच्चे पर विशेष मातृ वंशानुक्रम इफेक्ट होता है। यह स्थिति मां और उनके बच्चे में आरबीपी4 म्यूटेशन के दौरान देखी जाती है, जिससे शिशु में विटामिन ए की कमी होती है। प्रेग्नेन्सी के इनीशियल स्टेज में विटामिन ए की कमी शिशु में एनोफ्थेल्मिया की स्थिति का कारण बनती है, क्योंकि ऑंख के विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण इनीशियल स्टेज ही होता है। प्रेग्नेन्सी के शुरुआती महीनों में रेटिनिल एस्टर के विटामिन ए की आपूर्ति से एनोफ्थेल्मिया के इस प्रकार को रोका जा सकता है।
- अन्य जीन (Other Genes)
अन्य प्रभावशाली जीन सेऑंखों में सिमिलर इफेक्ट क्रियेट होता है। रेटिना एक्सप्रेशन में मदद करने वाले Sox2 और RBP4 के साथ OTX2, CHX 10, RAX जैसे अन्य जीन लोगों में एनोफ्थेल्मिया का कारण बनते हैं, क्योंकि इन जीनों में म्यूटेशन गंभीरता की सीमा के आधार पर माइक्रोफथाल्मिया की स्थिति बन सकता है। इसके अलावा BMP4 जीन भी एनोफ्थेल्मिया के साथ-साथ मायोपिया और माइक्रोफथाल्मिया का कारण बनता है। इस जीन से सोनिक हेजहोग तंत्र (Sonic hedgehog mechanism) का इनटेरेक्शन एनोफथाल्मिया का कारण बनता है।
क्रोमोसोम 14 (Chromosome 14)
क्रोमोसोम 14 को ऑंखों में एनोफ्थेल्मिया का एक प्रमुख स्रोत माना जाता है, जिसे हटाने से एनोफ्थेल्मिया होता है। विलोपन क्रोमोसोम में q22.1- q22.3 के क्षेत्र में होता है, जिससे क्रोमोसोम 14 के आई डेवलपमेंट पर पड़ने वाले प्रभाव का पता चलता है। क्रोमोसोम के इस विलोपन की वजह से देिखने वाले अन्य प्रभावों में “छोटी जीभ की प्रेजेंस, एक माइक्रोपेनिस के साथ डिसेन्डिंग टेस्टिकल्स और ग्रोथ और डेवलपमेंट में मंदता” और हाइपोथायरायडिज्म शामिल हैं।
पर्यावरणीय फैक्टर (Environmental Factors)
बच्चों में एनोफ्थेल्मिया पर्यावरण से जुड़े कई कारकों की वजह से होता है। गर्भावधि अधिग्रहित संक्रमण (gestational acquired infections) से पीड़ित बच्चों में एनोफ्थाल्मिया देखा जाता है। इन स्पेसिफिक वायरल इंफेक्शन में टोक्सोप्लाज्मा (Toxoplasma), रूबेला (rubella) और इन्फ्लूएंजा वायरस (influenza virus) के कुछ स्ट्रेन शामिल हैं, जो बच्चों में एनोफ्थेल्मिया का कारण बनते हैं। इसके अलावा गर्भधारण अवधि के दौरान मां में विटामिन ए की कमी, थैलिडोमाइड एक्सपोजर के साथ-साथ एक्स-रे की किरणों के साथ संपर्क एनोफ्थेल्मिया की स्थिति को इफेक्ट करते हैं।
एनोफथाल्मिया के प्रकार – Anophthalmia Ke Prakaar
एनोफ्थेल्मिया के मुख्य रूप से तीन प्रकार होते हैं
- प्राइमरी एनोफ्थेल्मिया
- सेकेंडरी एनोफ्थेल्मिया
- डीजेनेरेटिव एनोफ्थेल्मिया
एनोफथाल्मिया का निदान – Anophthalmia Ka Nidaan
इसका निदान दो तरीकों से किया जाता है
- प्रसव पूर्व निदान (Prenatal Diagnosis)
- प्रसवोत्तर निदान (Postnatal Diagnosis)
प्रीनेटल डायग्नोसिस – Prenatal Diagnosis
इसमें प्रेग्नेन्सी के दौरान अल्ट्रासाउंड और एमनियोसेंटेसिस की मदद से रोग का निदान किया जाता है। अल्ट्रासाउंड के समाधान के कारण दूसरी तिमाही (second trimester) तक रोग का निदान संभव नहीं है।
प्रेग्नेन्सी के शुरुआती 20 हफ्तों में एनोफ्थेल्मिया का पता लगाया जा सकता है।
- एमनियोसेंटेसिस (Amniocentesis): यह स्थिति क्रोमोसोम के असामान्य होने पर ही एनोफ्थाल्मिया देखी जा सकती है, लेकिन क्रोमोसोमल असामान्यताएं नोफ्थेल्मिया के मामूली मामलों में देखने को मिलती है।
प्रसवोत्तर निदान – Postnatal Diagnosis
- दिमाग और ऑर्बिट को एमआरआई (MRIs) या सीटी स्कैन (CT scans) के ज़रिए स्कैन किया जा सकता है, जिससे एनोफ्थेल्मिया की स्थिति को पहचाना जा सकता है।
- डॉक्टर जेनेटिक टेस्टिंग से एनोफ्थेल्मिया की पहचान कर सकते हैं, जिन परीक्षणों में माइक्रोएरे विश्लेषण (microarray analysis) और एकल-जीन परीक्षण (single-gene testing) शामिल हैं।
- एकल-जीन परीक्षण (single-gene testing) का रोग के निदान में फेल होने पर जीनोम अनुक्रमण (genome sequencing) और माइटोकॉन्ड्रियल अनुक्रमण (mitochondrial sequencing) के बारे में सोचा जा सकता है, जो एनोफ्थेल्मिया स्थिति के मोलेक्युलर डाइग्नॉस्टिक्स में मदद करता है।
एनोफथाल्मिया का उपचार – Anophthalmia Ka Upchar
दृष्टि हानि (विज़न लॉस) के इलाज की कोई संभावना नहीं है, लेकिन ऑंख की अनुपस्थिति (absence of eye) का इलाज किया जा सकता है। हालांकि कृत्रिम ऑंख (आर्टिफिशियल आई) और कॉस्मेटिक सर्जरी जैसे तरीकों से ध्यान देने योग्य नहीं बनाया जा सकता है।
प्रोस्थेटिक आई (Prosthetic Eye)
इस स्थिति में इलाज के लिए प्रोस्थेटिक विशेषज्ञ की मदद ली जा सकती है। आमतौर पर, कंफर्मर्स और एक्सपेंडर के उपयोग से आई सॉकेट की वृद्धि और सॉकेट के विस्तार को बढ़ाया जा सकता। जीवन के पहले दो वर्षों के बाद कन्फर्मर्स को बदलने के बाद ऑंख के सॉकेट में एक आर्टिफिशियल आई लगाई जाती है। मरीज की ऑंख में कोई समस्या न हो, इसके लिए प्रोस्थेटिक आई को शराब से नहीं रगड़ा जाता है। नियमित रुप से आर्टिफिशियल आई के ठीक से फिट होने या नहीं होने की जांच की जानी चाहिए।
कॉस्मेटिक सर्जरी (Cosmetic Surgery)
कभी-कभी आई ऑर्बिट के अनुचित विस्तार होने पर बच्चों में शारीरिक विकृति देखी जाती है, जिसका इलाज सर्जरी के माध्यम से किया जा सकता है।
ज़्यादातर लोग ऊपरी पीटोसिस सर्जरी(upper ptosis surgery) के ज़रिए निचली पलक (लोअर आईलिड) को टाइट करवाते हैं। इस सर्जरी से ऑंख की संरचना जैसे कि पलकों के कार्य को बहाल करवा कर चेहरे की उपस्थिति अच्छी दिखाई जा सकती। आमतौर पर डिजेनेरेटिव एनोफ्थेल्मिया से पीड़ित लोग यह कॉस्मेटिक सर्जरी करवाते हैं।
निष्कर्ष – Nishkarsh
आई केयर प्रोफेशनल द्वारा नियमित रूप से जांच आपकी ऑंखों के इलाज का सबसे अच्छा तरीका है, जिसमें प्रोफेशनल ऑंखों की बीमारी का सर्वोत्तम तरीके से इलाज कर सकेंगे। अधिक जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट eyemantra.in पर जाएं। आई मंत्रा के साथ अपॉइंटमेंट बुक करने के लिए +91-9711115191 पर कॉल करें या [email protected] पर मेल करें। हमारी अन्य सेवाओं में रेटिना सर्जरी, स्पेक्स रिमूवल और मोतियाबिंद की सर्जरी आदि शामिल है।