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आंखों का बैंक या आई बैंक (Eye Bank) सिर्फ नए डोनर से मानव कॉर्निया को इकट्ठा करने के लिए एक जगह है, जिसे कॉर्नियल दोष से प्रभावित नेत्रहीनों की आंखों में ट्रांसप्लांट किया जा सकता है। यह आंखों की ट्रांसप्लांट सर्जरी की ज़्यादातर सफलता सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षित, गुणवत्ता वाले ऊतक देने की प्रक्रिया में सभी चरणों के लिए जिम्मेदार है।
यह पूरी तरह से गुणवत्ता विश्वास व्यवस्था का प्रदर्शन करते हैं। यह जहाँ तक संभव है, सुरक्षित तरीके से गुणवत्ता वाले ऊतक देने के लिए उच्चतम अंतरराष्ट्रीय मानकों की पुष्टि करता है और आदर हासिल करने और डोनर के दान पर विचार करने के लिए सबसे बड़े नैतिक मानकों को बनाए रखने की दिशा में काम करता है।
यह एक नॉन-प्रोफिट ऑर्गेनाइज़ेशन हो भी सकती है और नहीं भी। यह मानव ऑक्युलर टिशूज़ और कोशिकाओं के डोनेशन, खरीद, परीक्षण, संरक्षण, स्टोरेज, प्रसंस्करण और वितरण में शामिल है। इनका इस्तेमाल कॉर्निया ट्रांसप्लांट, ऑक्युलर सर्जरी, रिसर्च और शिक्षा में किया जाना है।
आई बैंक खुद चलाया जाने वाले संगठन हैं, जिन्हें कभी-कभी अस्पताल से जोड़ा जा सकता है। ऐसे आंखों के बैंक अस्पताल के पास होते हैं, जैसे- एम्स दिल्ली में नेशनल आई बैंक। एक अंदाज़े के हिसाब से भारत में लगभग 40 से 50 लाख लोगों को कॉर्नियल रोग की वजह से अंधापन है।
अंधेपन के कई कारण से हो सकते हैं और यह पूर्ण या आंशिक हो सकता है। इसमें कॉर्निया आंख के काले गोल भाग के सामने एक आर-पार दिखाई देने वाली एक परत होती है। यह हमें देखने योग्य बनाने के लिए रेटिना पर छवियों को केंद्रित करने में मदद करता है। एक बार आंखों के डोनर से एक का इस्तेमाल करके उनके कॉर्निया को ट्रांसप्लांट करने के बाद रोगी की दृष्टि वापिस लाई जा सकती है। डोनर के मरने के बाद आंखों से कॉर्निया निकालकर किसी जरूरतमंद की आंखों में लगाया जा सकता है।
सन् 1944 में यू.एस. के डॉक्टर टाउनली पैटन ने कई सफल कॉर्नियल ट्रांसप्लांट किये, जिसके बाद उन्हें लगा कि आंखों के संग्रह और संरक्षण की एक औपचारिक व्यवस्था ज़रूरी है। उनके मन में आंखों के बैंकों को शामिल करने का विचार आया और सन् 1944 तक पैटन ने दृष्टि बहाली के लिए न्यूयॉर्क में दुनिया के पहले आंखों के बैंक की स्थापना की। जबकि भारत ने अपने पहले आई बैंक की नींव सन् 1945 में रखी थी। चेन्नई के इस रीज़नल इंस्टीट्यूट ऑफ ऑप्थल्मोलॉजी के संस्थापक डॉक्टर आरईएस मुथैया हैं। जागरूकता अभियान के बाद से ही सामाजिक कार्यकर्ता और डॉक्टर रुके नहीं हैं।
नेत्रदान के सभी अलग-अलग चरण आंखों के बैंक द्वारा पूरे किए जाते हैं, जैसे-
अनुरोध
आंखों के बैंक को किसी आंखों के अस्पताल, उसकी प्रोक्यूरमेंट यूनिट या किसी दूसरे ऐसे विभाग से एक कॉल आएगी कि जिस व्यक्ते ने आंखें दान करने का फैसला लिया था उसकी मृत्यु हो गई है और दान के लिए शुरुआती मानदंड पूरे हो गए हैं। इसके लिए आंखों के बैंक कम समय में वहां पहुंचते हैं और परिजनों से संपर्क करके सहमति लेकर ऊतक को ठीक करते हैं। आमतौर पर इस प्रक्रिया को डोनर की मृत्यु के समय से 2 से 4 घंटे के अंदर पूरा करना ज़रूरी होता है।
निकट संबंधी
स्थानीय प्रोक्यूरमेंट यूनिट या ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेशन या आंखों के बैंक के कर्मचारी राष्ट्रीय कानून से परिभाषित अपने परिजनों के संपर्क में रहते हैं और मृत व्यक्ति के कॉर्निया डोनेशन के लिए सहमति लेते हैं।
सहमति
सहमति लेने के बाद सबसे पहला काम होना चाहिए कि परिजनों से मेडिकल-सोशल हिस्ट्री को पूरा करने के लिए कहा जाए। यह फैमिली हिस्ट्री टिश्यू लेने की योग्यता निर्धारित करने के लिए विवरण के साथ नेत्र बैंक प्रदान करता है। कभी-कभी पूरी आंख को हटाने के लिए अलग-अलग सहमति प्रथाएं हो सकती हैं, (कुछ राज्यों में ओक्युलर ग्लोब को अंग माना जाता है) जबकि कुछ सिर्फ कॉर्निया (ऊतक के रूप में माना जाता है) की दोबारा लेने के लिये अनुमति देते हैं।
डोनर का चिकित्सा इतिहास
सहमति मिलने पर संबंधित मेडिकल रिकॉर्ड लिए जाते हैं, जिसके बाद आंखों के अस्पताल इनकी समीक्षा करते हैं। इसके लिए पूरी डोनर प्रोफ़ाइल बनाई जाती है। मौत के कारणों पर पूरा ध्यान दिया जाता है। व्यक्ति को दी जाने वाली सभी दवाओं और खून की कमी होने का पूरा ध्यान रखा जाता है।
शारीरिक जांच
अगक कोई मेडिकल मतभेद नहीं पाया जाता है, तो नामित मेडिकल कर्मचारी या आई बैंक के टेक्नीशियन डोनर की आंखों का फिज़ीकल टेस्ट करते हैं। यह फिज़ीकल इंस्पेक्शन डोनर प्रोफाइल के अलग होता है। यह एक इंफेक्शन डिजीज़ या व्यवहार के शारीरिक लक्षणों को देखने के लिए एक स्क्रीनिंग है, जो रिसीवर यानि आंखें लेने वाले व्यक्ति को खतरे में डाल सकता है, जैसे नसों में दवा का इस्तेमाल। डोनर के खून का सैंपल लेकर एचआईवी I, II, हेपेटाइटिस बी, सी और सिफलिस की जांच की जाती है।
सुधार
डोनर और उसकी आंखों के कॉर्निया या दूसरे आंख के ऊतकों को दोबारा लेने की प्रक्रिया के लिए तैयार किया जाता है। यह सुनिश्चित किया जाता है कि जीवाणुरहित क्षेत्र गंदा और कॉर्निया खुद जीवाणुरहित है। पुनर्प्राप्ति के दौरान डोनर के साथ हमेशा सम्मान और मर्यादा के साथ व्यवहार किया जाता है।
स्टोरेज
एक बार कॉर्निया हटाये जाने के बाद ऊतक को स्टोरेज मीडियम में रखा जाता है, जिसमें ऊतक को व्यवहार्य रखने के लिए रसायन होते हैं, जो बैक्टीरिया के विकास को कम करते हैं। तब टेक्नीशियन कॉर्निया को मूल्यांकन के लिए आंखों के बैंक की प्रयोगशाला में ले जाकर आंखों के बैंक प्रथाओं के आधार पर शॉर्ट टर्म या लॉन्ग टर्म स्टोरेज करता है। आंखों के कुछ बैंक इसे चार डिग्री सेल्सियस (हाइपोथर्मिक स्टोरेज) पर स्टोर करते हैं, जिसकी अधिकतम स्टोरेज समय सीमा चौदह दिनों की होती है। इसे ऑर्गन कल्चर स्टोरेज में अधिकतम पांच हफ्ते तक स्टोर किया जा सकता है, जिसके तहत संरक्षित कॉर्निया या ऊतकों का इस्तेमाल सिर्फ गिनी-चुनी सर्जरी के मामलों में किया जा सकता है, जिसका तापमान लगभग 31 डिग्री सेल्सियस होता है।
मूल्यांकन
खासतौर से प्रशिक्षित टेक्नीशियन माइक्रोस्कोप से कॉर्निया और ऊतकों का मूल्यांकन करते हैं, ताकि ट्रांसप्लांट के लिए जारी होने से पहले आई बैंक के सख्त मानदंडों को पूरा किया जा सके।
योग्यता निर्धारण
नेत्र बैंक के मेडिकल डायरेक्टर या बराबर प्राधिकारी डोनर के रिकॉर्ड की समीक्षा करके योग्यता का आखिरी निर्धारण करते हैं।
टिशू का रिलीज़ होना
अगर कोई ऊतक रिलीज़ हो जाता है, तो कॉर्निया को एक कंटेनर में 2 से 8 डिग्री के बीच तापमान के साथ सील किया जाता है, जिससे यह जम न जाए (हाइपोथर्मिक संरक्षित कॉर्निया के लिए) या उन्हें कमरे के तापमान पर कॉर्निया को सही-सलामत रखने के लिए खास डिज़ाइन के कंटेनर में संरक्षित किया जाता है (ऑर्गन संवर्धित कॉर्निया के मामले में)।
लेबलिंग
टिशू को एक संख्या के साथ एक खास पहचान दी जाती है, जिससे आंखों के बैंकों के लिए डोनर से रिसीवर तक ऊतक को ट्रैक करने में आसानी होती है। बाद में इसे निर्धारित सर्जरी तिथि के लिए एक खास ऊतक सहमति के जवाब में ट्रांसप्लांट के लिए किसी सर्जन या दूसरे आंखों के बैंक में भेज दिया जाता है।
जांच करना
आंखें दान करने वाले के परिवारों और आंखें लेने वालों के साथ अनुरूप और समर्थन ज़रूरी है। नेत्रदान से पहले उसके दौरान और बाद में नेत्रदान करने वालों के परिवारों को सहायता दी जाती है। हालांकि आंखें लेने वालों की पहचान गुप्त रखी जाती है। सिर्फ एक डोनर ही रिसीवर के परिवार से पूछ सकता है कि ट्रांसप्लांट से कितने लोगों की मदद की गई और वह कैसे प्रगति कर रहे हैं। उसी तरह कॉर्नियल रिसीवरों की निगरानी की जाती है और अचानक आई कोई दिक्कत गंभीर प्रतिकूल प्रतिक्रिया या कोई विसंगति उनके स्वास्थ्य को खतरे में डाल सकती है। एक ही डोनर स्रोत से ऊतक लेने वाले दूसरे रिसीवरों को एक चेतावनी दी जाती है।
आंखों के बैंक के कई विभाग होते हैं जो प्रशासन में आसानी के लिए अलग-अलग गतिविधियों का ध्यान रखते हैं और जो सुचारू कामकाज सुनिश्चित करता है। एक कुशल आंखों के बैंक के कई तरह के विभाग हो सकते हैं, जैसे-
तकनीकी विभाग
इसके कार्यों में कई जिम्मेदारियां शामिल हैं:
डोनर डेवलपमेंट
इस विभाग की जिम्मेदारियों में कई कार्य शामिल हैं:
क्वालिटी कंट्रोल
इसकी जिम्मेदारियों में कई कार्य शामिल हैं:
शिक्षण और प्रशिक्षण
इसकी जिम्मेदारियों में कई कार्य शामिल हैं:
नेत्रदान
ईबीएआई (आई बैंक एसोसिएशन ऑफ इंडिया) एक राष्ट्रीय संगठन है, जो नेत्रदान में शामिल सभी आंखों के बैंकों और संगठनों के लिए एक संसाधन केंद्र के तौर पर काम करता है। ईबीएआई के साथ लगभग 404 संगठन पंजीकृत हैं।
केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकार भी नेत्रदान के बारे में लोगों को शिक्षित करने के लिए सेमिनार और वर्कशॉप के आयोजन में मदद करते हैं। ओआरबीआईएस, लायंस क्लब, रोटरी इंटरनेशनल जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन इसकी कई एक्टिविटी को सपोर्ट करते हैं।
कॉरपोरेटों ने भी वित्तीय और दूसरे संसाधनों के साथ इसके कार्यक्रमों में सहयोग किया है। इसके अलावा कई दूसरे संगठन भी नेत्रदान की जागरूकता फैलाने में भाग लेकर किसी भी तरह से नेत्रदान की सुविधा प्रदान करते हैं। सन् 1989 में इसकी स्थापना नेत्रदान आंदोलन को बढ़ावा देने के लिए की गई थी। यह सबसे ऊंची निकाय है जो नेत्रदान को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आंखों के सभी बैंकों और नागरिकों की कोशिशों को रेगुलेट और काम करने के लिए जिम्मेदार है।
ईबीआईए पूरे भारत में आंखों के बैंकों के लिए कॉम्प्रिहेंसिव मेडिकल स्टेंडर्ड की स्थापना के लिए जिम्मेदार है। ईबीएआई ने भारत में आंखों के बैंक के टैक्नीशियनों और काउंसलर्स के प्रशिक्षण और सर्टिफिकेशन का मानकीकरण भी किया है। ईबीएआई भारत में आंखों के बैंकों के लिए मान्यता प्राप्त एजेंसी है।
नियमित तौर से आंखों के सभी बैंक का मूल्यांकन सुनिश्चित करने के लिए गुणवत्ता मानकों को बनाए रखा जा रहा है। नेत्रदान और कॉर्निया ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया डोनर और रोगियों के लिए सुरक्षित और आरामदायक है। सन् 1991 में ईबीएआई ने हॉस्पिटल कॉर्निया रिट्रीवल प्रोग्राम की शुरुआत की। इसने सन् 1999 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के सहयोग से नेत्र बैंकिंग चिकित्सा मानकों को तैयार करने में मदद की है।
उद्देश्य
ईबीएआई का गठन नेत्रदान को बढ़ाने नेत्र बैंकों की प्रक्रियाओं में समान मानकों को लागू करने के लिए किया गया था। इसके साथ ही नेत्रदान और कॉर्नियल ब्लाइंडनेस की रोकथाम के बारे में जन जागरुकता बढ़ाना भी इसका उद्देश्य था।
अगर आप अपनी आंखें दान करने के बारे में सोच रहे हैं, तो आपको उन्हें स्वस्थ रखने की कोशिश भी करनी चाहिए, जिसके लिए आपको किसी नेत्र रोग विशेषज्ञ के पास जाकर नियमित रूप से अपनी आंखों की जांच करवानी चाहिए। ज़्यादा जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट eyemantra.in पर जाएं। आई मंत्रा में अपनी अपॉइंटमेंट बुक करने के लिए अभी हमें +91-9711115191 पर कॉल करें। आप हमें eyemantra1@gmail.com पर ईमेल भी कर सकते हैं।
अपनी आंखों और हमारी सेवाओं के बारे में ज़्यादा जानने के लिए हमारे दिल्ली स्थित आईमंत्रा हॉस्पिटल पर विज़िट करें। हमारी सेवाओं में रेटिना सर्जरी, चश्मा हटाना, लेसिक सर्जरी, भेंगापन, मोतियाबिंद सर्जरी और ग्लूकोमा सर्जरी सहित और कई सेवाएं भी शामिल हैं।