Contents
हम में से ज़्यादातर लोग अपने जीवन के खूबसूरत और महत्वपूर्ण पलों को कैद करने के लिए तस्वीरें लेते हैं। लेकिन ये तस्वीरें एक पल के अलावा भी बहुत कुछ बता सकती हैं। आजकल तस्वीरें आंखों की बीमारी का पता लगाने में कारगर साबित हो रही हैं क्योंकि कैमरे शुरुआती स्टेज में निदान करने में सक्षम हैं।
उदाहरण के साथ समझाते हुए- कुछ साल पहले तारा टेलर ने अपनी तीन साल की बेटी के साथ एक फोटो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट की थी। उसके कुछ दोस्तों ने टेलर को बताया कि उसकी बेटी की आंख में सफेद चमक आंख की बीमारी का संकेत दे सकती है। आखिरकार उनकी बेटी को एक दुर्लभ नेत्र रोग का पता चला जिससे दृष्टि हानि हो सकती है। लेकिन आंख की बीमारी का समय पर पता लगने से उसकी आंखों की रोशनी बच गई।
उसके बाद इस ट्रेंड ने लोकप्रियता हासिल की। लोगों ने अपनी तस्वीरों को क्लिक करना शुरू कर दिया और व्यापक दर्शकों तक पहुंचने के लिए उन्हें सोशल मीडिया पर शेयर किया। बच्चों की तस्वीरों को करीब से देखने से वास्तव में मौजूदा आंखों की बीमारी के बारे में सुराग मिल सकता है।
जब कैमरे की फ्लैश लाइट ब्लड-रिच रेटिना को रोशन करता है, तो एक लाल रिफलैक्स उत्पन्न होता है। अगर दोनों आंखें कैमरे पर फोकस हों और रिफ्लेक्स का रंग लाल दिखाई दे, तो इसे एक अच्छे संकेत के रूप में पढ़ा जा सकता है। यह इंडिकेट करता है कि दोनों आंखों के रेटिना हेल्दी हैं और बाधित नहीं हैं। फ्लैश फोटोग्राफ रेटिनोब्लास्टोमा यानी सफेद पुतली के सबसे सामान्य शुरुआती संकेत का भी पता लगा सकते हैं।
कैमरे से कैप्चर हुए आंखों की बीमारी के लक्षण निम्नलिखित हैं-
एक आंख लाल हो जाना
जब कोई लाल आंख न हो या एक आंख दूसरी आंख से धुंधली दिखाई दे, तो यह स्ट्रैबिस्मस का संकेत हो सकता है। इसे एक ऐसी स्थिति के रूप में समझा जा सकता है जहां दोनों आंखें एक ही दिशा में नहीं देखती हैं या ध्यान केंद्रित नहीं करती हैं। स्ट्रैबिस्मस का इलाज ग्लास आई से किया जा सकता है, मजबूत आंख को आई पैच से ढक दिया जाता है या यहां तक कि आंख की मांसपेशियों की सर्जरी भी की जा सकती है। स्ट्रैबिस्मस को ठीक किया जा सकता है अगर इसका जल्द पता लगाया जाए और इसका इलाज किया जाए।
सफेद पुतली
सफेद पुतली को शुरुआती वॉर्निंग के रूप में देखा जाना चाहिए। इसके लिए मेडिकल टर्म ल्यूकोकोरिया है। अगर पुतली सफेद दिखाई देती है, तो यह कई गंभीर नेत्र विकारों का संकेत दे सकता है जैसे कि रेटिना डिटेचमेंट, मोतियाबिंद, या आंख के अंदर इंफेक्शन। इस स्टेस पर पुतली को “ग्लो”, “मिल्की”, “पारदर्शी”, “अर्धचंद्राकार” आदि के रूप में वर्णित किया जा सकता है। इसे रेटिनोब्लास्टोमा के शुरुआती स्टेज के संकेत के रूप में भी समझा जा सकता है। रेटिनोब्लास्टोमा एक बहुत ही दुर्लभ आंख का कैंसर है और इसे 90% समय में ठीक किया जा सकता है।
येलो रिफ्लेक्स
यह एक ऐसी बीमारी है जिसके कारण आंख की रेटिना के अंदर की रक्त वाहिकाएं मुड़ जाती हैं और टपकने लगती हैं। यह रेटिना में एक ब्लॉक का कारण बनता है जिससे दृष्टि हानि या यहां तक कि रेटिनल डिटेचमेंट भी हो जाता है। इस बीमारी का कारण येलो रिफ्लेक्स हो सकता है।
असामान्य रेड रिफलेक्सेस ज़्यादा गंभीर नेत्र विकारों की तरफ संकेत कर सकते हैं।
लोगों को तस्वीरों के माध्यम से कोट की बीमारी को रेटिनोब्लास्टोमा से अलग करना मुश्किल हो सकता है क्योंकि सफेद और पीले रंग के रिफलेक्स काफी समान दिखते हैं।
तस्वीरों में दिखाई देने वाली असामान्य लाल आंखें आंखों की समस्याओं का पता लगाने में मदद कर सकती हैं और आंखों के बारे में संभावित रूप से दृष्टि बचाने वाली जानकारी प्रदान कर सकती हैं। रेड-आई इफैक्ट अंधेरे या कम लाइट में कैप्चर किया जाता है। यह तब होता है जब व्यक्ति सीधे कैमरे में देख रहा होता है और बैकग्राउंड की लाइट कम होने पर फ्लैश चालू होती है।
तस्वीरों से रेड-आई इफैक्ट बहुत ही कॉमन और हल्का होता है। यह प्रभाव तब होता है जब कैमरा फ्लैश रेटिना से रिफलेक्ट हो जाता है। जब रोशनी आंखों में प्रवेश करती है, तो पुतली चौड़ी हो जाती है जिससे रोशनी रेटिना तक पहुंच जाती है जो आंख की आंतरिक परत है। रेटिना लाइट सिग्ननल को प्राप्त करता है और उन्हें मस्तिष्क में भेजता है जो छवि बनाता है।
तस्वीरों के मामले में फ्लैश लाइट पूरी तरह से रेटिना द्वारा अवशोषित नहीं होती है और रेड-आई इफैक्ट पैदा करते हुए वापस परावर्तित होती है। यह रेटिना में रक्त की आपूर्ति को प्रकाशित करता है जिससे आपको चित्रों में दिखाई देने वाले लाल रंग का निर्माण होता है।
फोटोरेड तकनीक का इस्तेमाल रेड-आई रिफ्लेक्स का पता लगाने के लिए किया जा सकता है। इस तकनीक में कैमरे का उपयोग नैदानिक उपकरण के रूप में किया जाता है।
माता-पिता को अपने बच्चे की आंखों के बारे में सतर्क रहना चाहिए क्योंकि सबसे खतरनाक नेत्र रोग भी बच्चों को शुरुआती स्टेज में दर्द या दृष्टि हानि का कारण नहीं बनते हैं।
आंखों की बीमारी के ज्यादातर मामलों में बच्चे की एक आंख काम कर रही होती है। ऐसे में बीमारी का पता लगाना और भी मुश्किल हो जाता है। रेटिनोब्लास्टोमा के 90% मामले ऐसे हैं जिनका पता माता-पिता ने तस्वीरों के जरिए लगाया है। वर्ष 2014 में ऐसी असामान्यताओं का पता लगाने के लिए एक ऐप विकसित किया गया था लेकिन यह ऐप सफेद और पीले रंग के रिफ्लेक्स के बीच अंतर नहीं कर सकता है। ऐप का नाम व्हाइट आई डिटेक्टर है।
ऐसे सॉफ़्टवेयर विकसित करने के लिए शोध चल रहे हैं जो तस्वीरों में ल्यूकोकोरिया और अन्य असामान्यताओं का ऑटोमेटिक पता लगा सकते हैं। वैज्ञानिकों ने बच्चों की आंखों को स्कैन करने और किसी तरह की आंखों की बीमारी का पता लगाने के लिए एक ऐप भी विकसित किया है।
अगर आप ऐसी किसी बीमारी का पता लगाने में सफल होते हैं, तो जल्द से जल्द अपने बच्चे की जांच बाल रोग विशेषज्ञ से करवाएं। डॉक्टर माता-पिता को ऐसी किसी भी असामान्यता पर नज़र रखने के लिए हर महीने रेड-आई टेस्ट कराने की सलाह देते हैं। इस तरह की किसी भी बीमारी का जल्द पता लगाने और इलाज से ठीक होने की संभावना ज़्यादा होती है।
रेड-आई रिफ्लेक्स के बीच का अंतर सबसे सतर्क होना चाहिए। माता-पिता को ऐसी किसी भी स्थिति के लिए तस्वीरों का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करना चाहिए। जैसे-जैसे हम आगे बढ़े हैं, आधुनिक तकनीक ने कैमरों से रेड-आई की समस्या को दूर कर दिया है। आधुनिक कैमरों में एक नई विशेषता होती है जिसे रेड-आई डिडक्शन फीचर के रूप में जाना जाता है। यह रेड-आई डिडक्शन फीचर कैमरे की सफेद पुतली की पहचान को रोकता है।
अपनी आंखों का इलाज करने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप अपने आंखों के डॉक्टर के पास जाएं और नियमित रूप से अपनी आंखों की जांच करवाएं। वह आपकी आंखों की बीमारी का इलाज बेहतर तरीके से कर सकेंगे। हमारे आंखों के डॉक्टरों से परामर्श करने के लिए आईमंत्रा हॉस्पिटल पर विज़िट करें। ज़्यादा जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट eyemantra.in पर जाएं।
आई मंत्रा में अपनी अपॉइंटमेंट बुक करने के लिए +91-9711115191 पर कॉल करें या हमें eyemantra1@gmail.com पर मेल करें। हमारी अन्य सेवाओं में रेटिना सर्जरी, चश्मा हटाना, लेसिक सर्जरी, भेंगापन, मोतियाबिंद सर्जरी और ग्लूकोमा सर्जरी आदि सेवाएं भी शामिल हैं।