रेटिना (Retina)

ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी (ओसीटी): कार्य और फायदे – Optical Coherence Tomography (OCT): Work Aur Fayde

ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी (ओसीटी) क्या है? Optical Coherence Tomography (OCT) Kya Hai?

ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी या ओसीटी नेत्र विज्ञान (ऑपथलमॉलजिस्ट) की मेडिकल फील्ड में इस्तेमाल की जाने वाली एक तकनीक है, जिसमें आंख के रेटिना पार्ट का एक नॉन-इमेजिंग टेस्ट किया जाता है।

कई बायोमेडिकल क्षेत्रों में इस्तेमाल की जाने वाली ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी एक आधुनिक तकनीक है। इस तकनीक में मशीन आंख की रेटिना की परतों की छवि को कैप्चर करती है। ओसीटी मुख्य से इन छवियों को कैप्चर करने के लिए प्रकाश तरंगों का इस्तेमाल करती है, जिससे कारण नेत्र रोग विशेषज्ञों को कई परतों की मोटाई को मैप करने और मापने में मदद मिलती है। इसके अलावा ओसीटी को न्यूरोलॉजिकल फील्ड में भी इस्तेमाल किया जाता है। ओसीटी नेत्र रोग विशेषज्ञों को उम्र से संबंधित रेटिनल और ग्लूकोमा जैसी कुछ अन्य बीमारियों का पता लगाने में भी मदद करती है। आसान शब्दों में कहें, तो ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी (ओसीटी) मशीन एक नॉन-इनवेसिव तकनीक है, जो आंख में बिना किसी चीरे के काम करती है।

ओसीटी के बेसिक प्रिंसिपल – OCT Ke Basic Principle

आर्किटेपल ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी में एक प्रकाश स्रोत होता है, जो लो-कोहेरेंस ब्रॉडबैंड प्रकाश स्रोत होता है। इस स्रोत से निकलने वाले प्रकाश को एक इंटरफेरोमीटर में जोड़ा जाता है, जिसके बाद यह खुद को रेफरेंस आर्म और सैंपल आर्म में बांट लेता है। रेफरेंस आर्म से प्रकाश रेफरेंस मिरर में रिफ्लेक्ट होता है और सैंपल आर्म प्रकाश से टिश्यू को ट्रांसमिटेड किया जाता है, जिसकी स्टडी करने की ज़रूरत होती है।

सैंपल आर्म में ऑब्जेक्टिव लेंस भी होता है, जो उस टिश्यू पर प्रकाश को केंद्रित करने में मदद करता है। जिसकी स्टडी करना ज़रूरी है। सैंपल आर्म से निकलने वाला प्रकाश सैंपल टिश्यू से बैकस्कैटर होता है और रेफरेंस मिरर के इस्तेमाल से दोबारा रेफरेंस प्रकाश के साथ जुड़ जाता है। तब यह एक इंटरफेरेंस पैटर्न प्रोड्यूस करता है, जिसे मशीन में मौजूद प्रकाश डिटेक्टर की मदद से आसानी से पता लगाया जा सकता है। सैंपल सरफेस पर स्कैन किए गए बीम का इस्तेमाल करके क्रॉस-सेक्शनल वस्तुओं की एक द्वि-आयामी (Two-Dimensional) या त्रि-आयामी (Three-Dimensional ) छवि बनाई जा सकती है। 

पेश किये गए ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी इम्प्लीमेंटेशन दो प्रकार के होते हैं, जिनमें टाइम-डोमेन ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी और फूरियर डोमेन ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी शामिल हैं। बाद वाले के दो वर्जन स्वेप्ट-सोर्स ओसीटी और स्पेक्ट्रल-डोमेन ओसीटी हैं। स्पेक्ट्रल-डोमेन ओसीटी, टाइम-डोमेन ओसीटी की तरह है। इनमें सिर्फ इतना अंतर है कि एसडी-ओसीटी टीडी-ओसीटी के मुकाबले में स्टडी के लिए टिश्यू की ज़्यादा विस्तृत संरचना प्रदान करता है। बेहतर सेंसिटिविटी, बेहतर सिग्नल-टू-नॉइस रेशो और बेहतर सुपीरियर डेप्थ प्रदान करने के लिए एसडी-ओसीटी को सबसे अच्छा माना जाता है।

ओसीटी स्कैन का कार्य – OCT Scan Ka Work

ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी स्कैन आंख के रेटिना पर एक लाइट बीम उत्सर्जित करके काम करता है। यह स्कैन बिना आंखों के संपर्क के किया जाता है, जिसकी कार्यप्रणाली बहुत हद तक अल्ट्रासाउंड मशीन से मिलती-जुलती है, लेकिन इसमें साउंड वेव के बजाय प्रकाश किरणों का इस्तेमाल किया जाता है और स्कैनिंग के वक्त मरीज को मशीन के सामने बैठने के लिए कहा जाता है।

मरीज़ की ठोड़ी को ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी मशीन में दिए गए सपोर्ट पर रखा जाता है और स्कैन की शुरूआत एक समय में एक आंख से की जाती है। इस दौरान आंखों के सामने प्रकाश की एक चमक दिखाई देती है, जो जल्द दूर हो जाती है, जिसका मतलब है कि स्कैन पूरा हो गया है। इसके बाद यही प्रक्रिया दूसरी आंख के लिए भी दोहराई जाती है।

ओसीटी स्कैन से पहले कुछ ऑप्टिशियंस पुतली को पतला करने के लिए प्यूपिल डायलेटिंग ड्रॉप्स का इस्तेमाल करते हैं, ताकि परतों का स्कैन ज़्यादा आसानी से किया जा सके। ओसीटी स्कैन नेत्र रोग विशेषज्ञ (ऑपथलमॉलजिस्ट) को वर्षों से रेटिना की स्टडी करने और मरीज़ में रेटिना बीमारियां होने की किसी भी संभावना को कम करने में मदद करता है।

ओसीटी एप्लीकेशन – OCT Applications

ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी एक नॉन-इनवेसिव इमेजिंग टेकनीक है। यह रेटिना, रेटिना में नर्व फाइबर और ऑप्टिक नर्व सहित आंख की परतों की एक हाई-रिज़ॉल्यूशन इमेज प्रदान करता है, जो ऑपथलमॉलजी की क्लीनिकल फील्ड के लिए एक क्रांतिकारी आविष्कार रहा है। ओसीटी की मेन एप्लीकेशन रेटिनल बीमारियों का निदान और जल्द पता लगाने में मदद करती है।

मैक्युला और ऑप्टिक नर्व की इमेजिंग के लिए ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी का व्यापक रूप से इस्तेमाल किया गया है। इससे बीमारी से पीड़ित अवस्था के दौरान रेटिना के मोरफोलॉजिकल बदलावों का विश्लेषण करने में भी मदद मिलती है। साथ ही ओसीटी नेत्र रोग विशेषज्ञ को रेटिना के अंदर मौजूद फ्ल्यूड का भी पता लगाने और मोटाई में बदलाव के सबसे अनुकूल उपचार के साथ आगे बढ़ने में मदद करती है।

ओसीटी के फायदे – OCT Ke Advantages

ओसीटी के निम्नलिखित फायदे हैं, जैसे- 

उम्र से संबंधित मैक्युलर डिजनरेशन

एएमडी को साठ साल से ज़्यादा उम्र के ज़्यादातर वयस्कों में आंखों की बीमारी का प्रमुख कारण माना जाता है। ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी तकनीक में प्रोग्रेस ने इन बीमारियों को बेहतर ढंग से समझने में डॉक्टरों की बहुत मदद की है। कोरॉइडल मोटाई के एसडी-ओसीटी का इस्तेमाल करके किया गया मूल्यांकन एएमडी को सीएससीआर और पॉलीपॉइडल कोरॉइडल वैस्कुलोपैथी से अलग करने में मदद करता है। 

सेंट्रल सीरस कोरियोरेटिनोपैथी (सीएससीआर)

सेंट्रल सीरस कोरियोरेटिनोपैथी यानी सीएससीआर एक ऐसी बीमारी है, जिसे आरपीई से न्यूरोसेंसरी रेटिनल डिटैचमेंट के आधार पर पहचाना जा सकता है। ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी स्कैन करते समय न्यूरोसेंसरी रेटिना और आरपीई के बीच खाली जगह की मौजूदगी भी देखी जा सकती है। कुछ मरीज़ों में सीएससीआर को प्राकृतिक रूप से दो से तीन महीनों में ठीक किया जा सकता है, लेकिन कुछ मरीज़ों में यह स्थायी दृष्टि दोष (Permanent Visual Dysfunction) का कारण भी बन सकता है।

डायबिटिक रेटिनोपैथी

डायबिटिक रेटिनोपैथी एक ऐसी बीमारी है, जिसमें रेटिना के वास्कुलर पार्ट में डैमेज हो जाता है, जो मुख्य रूप से लोगों के वर्किंग-एज ग्रुप की वजह से होता है। ऐसे मरीज़ों पर किए गए एसडी-ओसीटी स्कैन में सामान्य स्वस्थ आंखों की तुलना में आंखों के कोरॉयडल हिस्से का एक महत्वपूर्ण पतलापन सामने आया। ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी का इस्तेमाल करके कोरोइडल मोटाई को मापा और बीमारी की गंभीरता को निर्धारित किया जा सकता है।

इंट्राओक्युलर ट्यूमर

इंट्राओक्युलर ट्यूमर को ओसीटी तकनीक का इस्तेमाल करके भी निर्धारित किया जा सकता है। ट्यूमर सीमाओं के परिसीमन और ट्यूमर के अंदर कोरियोकैपिलारिस और लार्ज वेसल्स के विश्लेषण को एसडी-ओसीटी के इस्तेमाल से पता लगाया जा सकता है।

नर्व फाइबर

ओसीटी को नर्व फाइबर की एक स्पष्ट छवि प्रदान करने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है, क्योंकि यह रियल-टाइम इमेजिंग स्पीड पर नर्व फाइबर के क्रॉस-अनुभागीय (Cross-Sectional) और वॉल्यूमेट्रिक छवियां (Volumetric Images) की एक हाई-रिज़ॉल्यूशन छवि प्रदान करते हैं। सीटी-स्कैन और एमआरआई जैसे अन्य इमेजिंग मेथड भी अच्छी गुणवत्ता के नतीजे प्रदान करती हैं, लेकिन उनमें स्पैटियल रिसॉल्युशन देने में कमी होती है। अब ओसीटी का इस्तेमाल न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर वाले मरीज़ों पर किया जा रहा है।

अन्य बीमारियां

मैक्यूलर होल, मैक्यूलर एडिमा, रेटिनोस्किसिस और पचाइकोरॉइड जैसी कुछ अन्य बीमारियों का निदान ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी का इस्तेमाल करके किया जा सकता है, लेकिन साथ ही ओसीटी ने ग्लूकोमा और अल्जाइमर जैसी बीमारियों का पता लगाने में भी मदद की है।

ओसीटी टेक्नोलॉजी की सीमाएं – OCT Technology Ki Limitations

ऑप्टिकल कोहेरेंस के इस्तेमाल के कई फायदे हैं, लेकिन इन फायदों के साथ टेक्नोलॉजी की कुछ सीमाएं हैं, जिन्हें भविष्य में सुधारा जा सकता है।

  • सैंपल टिश्यू ओपेसिटी सैंपल की उचित इमेजिंग में हस्तक्षेप करती है, क्योंकि ओसीटी सैंपल टिश्यू को स्कैन करने के लिए एक प्रकाश किरण का इस्तेमाल करने के सिद्धांत पर काम करता है। यह कांच के रक्तस्राव (Vitreous Hemorrhage), घने मोतियाबिंद (Dense Cataracts) और कॉर्नियल अस्पष्टता (Corneal Opacities) के मामले में इसके सीमित इस्तेमाल की तरफ जाता है।
  • इस तकनीक के लिए मरीज़ का स्थिर रहना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि मरीज़ की गति से छवि की गुणवत्ता खराब हो जाती है। इसलिए नई तकनीक की मदद से कम समय अंतराल में ओसीटी मशीन स्कैन करके इस परेशानी को दूर किया जा सकता है।
  • मशीन के ऑपरेटर को हाइली क्वालिफाइड होने की ज़रूरत है, क्योंकि स्कैन मशीन के ऑपरेटर पर निर्भर करता है। ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी के लिए ऑपरेटर को डिजायर पैथोलॉजी पर छवि को सटीक रूप से रखने की ज़रूरत होती है, जिससे कभी-कभी स्कैन में एरर होता है। इसलिए आई-ट्रैकिंग उपकरणों जैसी नई तकनीकों ने समस्या को कम करने में मदद की है।

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निष्कर्ष – Nishkarsh

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