Contents
विट्रोरेटिनल सर्जरी आंखों की सर्जरी का एक प्रकार है, जो विट्रियस या रेटिना पर की जाती है। आधुनिक तकनीक में प्रगति के साथ इन सर्जरी की ज़्यादा सफलता दर और प्रभावशीलता ज़्यादा है। इसमें आंखों को ठीक होने के लिए कम से कम समय की ज़रूरत होती है, क्योंकि यह कम आक्रामक होती है।
सर्जरी के इस प्रकार को लेजर या पारंपरिक सर्जिकल उपकरणों की सहायता से किया जाता है, जिसमें इसे आंखों की गहराई की प्रक्रियाओं के एक खास सेट के साथ जोड़ा जाता है। आंखों से जुड़ी कई बीमारियों, जैसे उम्र से संबंधित मैक्यूलर डिजनरेशन, डायबिटिक रेटिनोपैथी, डायबिटिक विट्रियस हैमरेज, मैक्यूलर होल, एक अलग रेटिना, एपीरेटिनल मेम्ब्रेन और सीएमवी रेटिनाइटिस के लिए दृष्टि को बचाने, बढ़ाने और बहाल करने के लिए विट्रोरेटिनल सर्जरी की जाती है। विट्रोरेटिनल सर्जिकल और लेजर प्रक्रियाओं की काफी संख्या का इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन आमतौर पर विट्रोरेटिनल सर्जरी की ज़रूरत वाली स्थितियों को विट्रोरेटिनल बीमारी कहा जाता है।
विट्रोरेटिनल बीमारी आंखों की वह समस्या है, जो रेटिना और विट्रियस के तरल पदार्थ को प्रभावित करती है। रेटिना आंख की पिछली परत है, जो रिफ्लैक्शन से वस्तुओं के रूप-रंग या आकार का ज्ञान मस्तिष्क और ऑप्टिक तंत्रिका तक पहुंचाती है। इससे हम रेटिना द्वारा बनाई गई छवि को देख या पहचान सकते हैं। कांच का द्रव यानी विट्रियस फ्लूड एक जेल जैसा दिखाई देता है, जो आंख की सामने की परत (लेंस) और आंख की पिछली परत (रेटिना) के बीच में मौजूद होता है। कांच के द्रव से आंख को अपना गोल आकार बनाए रखने में मदद मिलती है, लेकिन कई संभावित कारणों से कांच का द्रव या रेटिना डैमेज हो जाने से आपकी दृष्टि असामान्य हो जाती है। इसलिए उचित उपचार से इन बीमारियों का निदान करना ज़रूरी है।
नब्बे के दशक की शुरुआत से ही विट्रोरेटिनल सर्जरी को तरक्की का रास्ता माना जाता है, क्योंकि उस समय में सामान्य नेत्र रोग विशेषज्ञ के पास रेटिनल डिटैचमेंट के लिए सर्जिकल ट्रीटमेंट का हुनर होना आम राय थी। वहीं 20वीं शताब्दी के युग में रेटिनल रीटैचमेंट के लिए कई चिकित्सा प्रक्रियाएं देखी गईं। इनमें बड़ी संख्या में उपचार शामिल थे, जिन्हें आंख के स्क्लेरल टॉप से किया जा रहा था। सर्जरी के इस प्रकार को एक सामान्य नेत्र सर्जन नहीं कर सकते, क्योंकि सिर्फ विट्रोरेटिनल विशेषज्ञ ही इस प्रकार की सर्जरी करने के लिए योग्य होते हैं।
सिर्फ कुछ निश्चित स्थितियों में विट्रोरेटिनल सर्जरी की ज़रूरत होती है। यहां सर्जिकल दृष्टिकोणों के बारे में बताया गया है, जो इन शर्तों के अनुसार हैं:
विट्रेक्टोमी का मकसद आंखों में मौजूद कांच के हास्य (विट्रियस ह्यूमर) या जेल जैसे पदार्थ को खत्म करना है। अगर कोई बाहरी कण आंख में आंतरिक भाग के नाजुक क्षेत्र को नुकसान पहुंचाता है, तो इससे असामान्य संख्या में दृष्टि से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं। हालांकि इस प्रक्रिया की मदद से दृष्टि समस्याओं को उनके शुरुआती चरण में ही खत्म किया जा सकता है। कांच के हास्य को खत्म और क्षेत्र को साफ करने के बाद सर्जन आंखों में सलाइन लिक्विड का एक प्रकार डालते हैं, जो आमतौर पर आंख को भरकर विट्रियस ह्यूमर के प्रतिस्थापन के रूप में काम करता है।
विट्रेक्टोमी के सटीक कारण इस प्रकार हैं:-
बड़ी संख्या में मरीजों को सिर्फ सामान्य एनेस्थीसिया दिया जाता है, लेकिन सांस लेने में कठिनाई जैसे कुछ खास मामलों में लोकल एनेस्थीसिया का इस्तेमाल भी किया जाता है।
आंखों के सर्जन विट्रेक्टोमी सर्जिकल प्रक्रिया की शुरुआत आंख में तीन छोटे चारे लगाकर करते हैं। यह चीरे सर्जिकल उपकरणों के लिए प्रवेश द्वार के तौर पर लगाए जाते हैं। इन चीरों को आंख के पार्स प्लाना में लगाया जाता है, जो रेटिना के सामने और परितारिका (आईरिस) के ठीक पीछे स्थित होता है। चीरे के ज़रिए गुजरने वाले सर्जिकल उपकरणों में एक हल्का पाइप, एक इंफ्यूजन पोर्ट और एक विट्रेक्टर यानी काटने वाला उपकरण शामिल हैं।
प्रक्रिया के बाद नेत्र विशेषज्ञ एंटीबायोटिक आई ड्रॉप्स और एंटी-इंफ्लेमेटरी आई ड्रॉप्स या दवाएं लिखते हैं, जो कई हफ्तों तक चलती हैं। इस प्रक्रिया से दृष्टि बहाली के साथ ही दृष्टि को बढ़ाने में भी काफी मदद मिलती है। विट्रेक्टोमी में सफलता दर ज़्यादा है। हालांकि इसमें कुछ जटिलताएं भी हैं, जैसे रक्तस्राव, संक्रमण, मोतियाबिंद की प्रगति और आंखों के पर्दे का फटना (रेटिनल डिटैचमेंट), लेकिन यह जटिलताएं होने की संभावना दुर्लभ है।
एपीरेटिनल मेम्ब्रेन यानी ईआरएम एक मेम्ब्रेन की वृद्धि से मिलकर बना होता है, जिसमें मैक्यूला में स्थित निशान ऊतक यानी स्कार टिश्यू की समानता है। इस प्रकार की झिल्ली के बढ़ने से केंद्रीय दृष्टि में रुकावट पैदा होती है, जो आगे केंद्रीय रेटिना के आकार को भी खराब कर सकती है।
आंखों के सर्जन सिर्फ एक विट्रेक्टोमी के साथ प्रक्रिया शुरू करते हैं और प्रक्रिया को करने के बाद सर्जन फोरसेप्स के एक खास सेट का इस्तेमाल करके रेटिना से झिल्ली को धीरे से हटाते हैं। पूरी प्रक्रिया के दौरान यह सर्जन के लिए सबसे ज़रूरी उपकरण है, क्योंकि यह सबसे नाजुक ऑपरेशनों में से एक है। मेम्ब्रेनेक्टॉमी की ज़रूरत निम्नलिखित में से दो परिस्थितियों के दौरान होती है-
प्रक्रिया पूरी होने के बाद व्यक्ति की दृष्टि में सुधार धीमी गति से होता है, जिसके प्रभावी नतीजों का समय तीन से छह महीने तक हो सकता है।
प्रोलाइफरेटिव विट्रो रेटिनोपैथी यानी पीवीआर एक बहुत ही सामान्य रुकावट है, जो रेटिनल होल से संबंधित है और यह एक रुमेटोजेनस रेटिनल डिटैचमेंट के बाद होती है। प्रोलाइफरेटिव विट्रो रेटिनोपैथी की स्थिति रेटिना के आगे और पीछे की सतह पर कुछ कोशिकीय झिल्ली कांच की गुहा (विट्रियस कैविटी) के अंदर बढ़ने से होती है। झिल्लियों के यह खास सेट मूल रूप से स्कार टिश्यू होते हैं, जो रेटिना पर ट्रेक्शन छोड़ते हैं। यह सफल रिटैचमेंट प्रक्रिया करने के बाद भी रेटिनल डिटैचमेंट के कई बार होने का कारण बन सकते हैं।
पीवीआर नए रेटिनल ब्रेक के विकास या रेटिनल ब्रेक के अचानक से दोबारा खुलने का कारण बन सकता है, जिनका पहले सफलतापूर्वक इलाज किया गया था। पीवीआर का संबंध सिकुड़ी हुई झिल्लियों के कारण रेटिना की कठोरता से भी हो सकता है। इससे स्थिति को स्पष्ट और सही तरीके से संभालने के बाद भी दृष्टि की गुणवत्ता नाकाफी हो सकती है।
प्रक्रिया पूरी होने के बाद आंखों के सर्जन आंख के अंदर खास तरल पदार्थ या ग्लासेस लगाते हैं, ताकि रेटिना चपटा होकर आंख की बाहरी दीवार से जुड़ा रहे। कुछ मामलों में रेटिनल ब्रेक को ठीक से बंद करने के लिए लेजर ट्रीटमेंट सर्जन के लिए एक ज़रूरी विकल्प बन जाता है।
प्रक्रिया के बाद मरीज़ को ठीक होने में कई महीनों का समय लग सकता है। इनमें से आधे मरीज प्रभावित आंख में उपयोगी दृष्टि वापस कर सकते हैं, लेकिन एक बढ़ी हुई और स्पष्ट दृष्टि प्राप्त करने की गुंजाइश पूरी तरह कम हो जाती है। पीवीआर प्रक्रिया पूरी होने के बाद मरीज़ परामर्श के लिए लो विजन स्पेशलिस्ट की मदद ले सकते हैं।
अलग-अलग प्रकार की विट्रोरेटिनल सर्जरी में इस्तेमाल की जाने वाली तकनीकें चुनौतियों से भरी होती हैं, जिसके लिए ऊंचे दर्जे का हुनर ज़रूरी है। आंखों के सर्जनों के लिए इस तरह की सर्जरी मनोवैज्ञानिक रूप से संपूर्ण होती है। सर्जरी में सफलता के लिए ज़्यादा एकाग्रता और हुनर ज़रूरी है, क्योंकि जरा सी चूक मरीज की आंखों पर गंभीर असर डाल सकती है। इसे रेटिनल डिटैचमेंट के नाम से भी जाना जाता है, जो ज्यादातर चालिस साल से ज़्यादा उम्र के लोगों में बनी रहती है।
दृष्टि क्षेत्र में दिखाई देने वाले धब्बे या चमक रेटिनल डिटैचमेंट के खतरनाक लक्षण हैं। इन लक्षणों के कारण व्यक्ति की आंखों में अचानक धुंधली दृष्टि का विकास हो सकता है। अलग-अलग तरह की सर्जिकल प्रक्रियाएं विट्रोरेटिनल सर्जरी की श्रेणी में आती हैं, जिनका इस्तेमाल रेटिनल डिटैचमेंट की समस्या का इलाज करने के लिए किया जाता है।
पिछले दस सालों में चिकित्सा क्षेत्र में नई तकनीकों को पेश किया है, जिसके तहत विट्रेक्टोमी मशीनों में भी एक ज़रूरी सुधार देखा गया है। अगर कोई व्यक्ति विट्रोरेटिनल सर्जरी करवाना चाहता है, तो पहले उसे अपने आंखों के सर्जन से परामर्श करना चाहिए। उन्हें सर्जरी के इस रूप से जुड़े हर तरह के फायदे या नुकसान के बारे में अच्छी तरह से बात करनी चाहिए।
पारंपरिक सर्जरी की तुलना में यह सर्जरी थोड़ी महंगी है, जबकि सर्जरी के पारंपरिक तरीके के दौरान खर्च कम होता है, क्योंकि विट्रोरेटिनल सर्जरी के मामले में बहुत ऊंची तकनीक वाले चिकित्सा उपकरणों का इस्तेमाल एडवांस लेवल के साथ किया जाता है और इसमें नुकसान की कोई गुंजाइश नहीं है।
आंखों से संबंधित किसी भी समस्या की जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट eyemantra.in पर जाएं। आई मंत्रा के साथ अपनी अपॉइंटमेंट बुक करने के लिए आप हमें +91-9711115191 पर कॉल या eyemantra1@gmail.com पर मेल भी कर सकते हैं। हमारे बेस्ट और अनुभवी डॉक्टरों की टीम हमेशा आपकी आंखों के लिए सबसे अच्छा विकल्प सुझाएगी। हम रेटिना सर्जरी, चश्मा हटाना, लेसिक सर्जरी, भेंगापन, मोतियाबिंद सर्जरी और ग्लूकोमा सर्जरी सहित कई अन्य सेवाएं भी प्रदान करते हैं।